ब्लॉगः पारंपरिक जल भंडार ही बचा सकते हैं पानी, भारत का ग्रामीण जीवन और खेती बचाना है तो...

By पंकज चतुर्वेदी | Published: May 4, 2023 03:13 PM2023-05-04T15:13:24+5:302023-05-04T15:15:01+5:30

हमारे देश की नियति है कि थोड़ा ज्यादा बादल बरस जाएं तो उसको समेटने के साधन नहीं बचते और कम बरस जाए तो ऐसा रिजर्व स्टॉक नहीं दिखता जिससे काम चलाया जा सके। अनुभवों से यह तो स्पष्ट है कि भारी-भरकम बजट, राहत, नलकूप जैसे शब्द जल संकट का निदान नहीं है।

Only traditional water reservoirs can save water save India's rural life and agriculture | ब्लॉगः पारंपरिक जल भंडार ही बचा सकते हैं पानी, भारत का ग्रामीण जीवन और खेती बचाना है तो...

तस्वीरः ANI

इस साल मौसम को लेकर सारे पूर्वानुमान गड़बड़ा रहे हैं।  जब भारी गर्मी का अंदेशा था तो वैशाख के महीने में सावन जैसी झड़ी लग गई है। लग रहा है कि कहीं अब गर्मी और बरसात का गणित कुछ गड़बड़ा न जाए। समझ लें कोई साल बारिश का रूठ जाना तो कभी ज्यादा ही बरस जाना जलवायु परिवर्तन के दिनों-दिन बढ़ रहे खतरे का स्वाभाविक परिणाम है और भारत अब इसकी भीषण  चपेट में है। इस बार अप्रैल के पहले हफ्ते में ही सदानीरा कहलाने वाली गंगा घाटों से दूर हो गई है। प्रयागराज हो या फिर पटना, हर जगह गंगा में टापू नजर आ रहे हैं। अधिकांश छोटी नदियां सूख गई हैं। और इसका सीधा असर तालाब-कुओं-बावड़ियों पर दिख रहा है। 

स्काईमेट के अनुसार इस साल देश में सामान्य अर्थात कोई 96 फीसदी बरसात का अनुमान है। लेकिन पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में सीजन की दूसरी छमाही के दौरान सामान्य से कम बारिश होने की संभावना है। इस बीच, बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने भारत के उपजाऊ उत्तरी, मध्य और पश्चिमी मैदानी इलाकों में गेहूं जैसी फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया है। लाखों किसानों को नुकसान हुआ है। भारत के आधे से ज्यादा किसान अपने खेत में चावल, मक्का, गन्ना, कपास और सोयाबीन जैसी फसलों को उगाने के लिए वार्षिक जून-सितंबर की बारिश पर निर्भर करते हैं। स्काईमेट को आशंका है कि देश के उत्तरी और मध्य हिस्सों में बारिश की कमी का खतरा बना रहेगा।

अप्रैल महीने के अंत में केंद्र सरकार का रिकॉर्ड बताता है कि संरक्षित जलाशयों का जल स्तर बहुत कम है। उत्तर क्षेत्र, जिसमें हिमाचल, पंजाब आदि राज्य आते हैं, में 10 जलाशयों की कुल क्षमता का महज 38 प्रतिशत पानी ही बचा है। पूर्वी भारत के 21 जलाशयों में 34 प्रतिशत, पश्चिमी क्षेत्र के 49 जलाशयों में 38 प्रतिशत, मध्य भारत के 26 जलाशयों में 43 और दक्षिण के 40 जलाशयों में महज 36 प्रतिशत जल शेष है। अभी हिंदी पट्टी में बरसात होने में कम से कम 100 दिन हैं और जान लें कि अगले पंद्रह दिनों में ही जलसंकट हर दिन गहरा होता चला जाएगा।

हमारे देश  की  नियति है कि थोड़ा ज्यादा बादल बरस जाएं तो उसको समेटने के साधन नहीं बचते और कम बरस जाए तो ऐसा रिजर्व स्टॉक नहीं दिखता जिससे काम चलाया जा सके। अनुभवों से यह तो स्पष्ट है कि भारी-भरकम बजट, राहत, नलकूप जैसे शब्द जल संकट का निदान नहीं है। करोड़ों-अरबों की लागत से बने बांध सौ साल भी नहीं चलते, जबकि हमारे पारंपरिक ज्ञान से बनी जल संरचनाएं ढेर सारी उपेक्षा, बेपरवाही के बावजूद आज भी पानीदार हैं। यदि भारत का ग्रामीण जीवन और खेती बचाना है तो बारिश की हर बूंद को सहेजने के अलावा और कोई चारा नहीं है। यही हमारे पुरखों की रीत भी थी।

Web Title: Only traditional water reservoirs can save water save India's rural life and agriculture

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे