सक्रिय मतदाता ही रख सकते हैं राजनीति पर अंकुश

By विश्वनाथ सचदेव | Published: April 12, 2023 12:51 PM2023-04-12T12:51:05+5:302023-04-12T12:52:51+5:30

सोशल मीडिया के इस युग में मतदाता के हाथ में एक महत्वपूर्ण हथियार आ गया है, दिखना चाहिए कि मतदाता इस हथियार का उपयोग कर रहा है।

Only active voters can control politics | सक्रिय मतदाता ही रख सकते हैं राजनीति पर अंकुश

फाइल फोटो

Highlightsदेश में तेज हो रही राजनीति को सक्रिय मतदाता द्वारा काबू किया जा सकता है सोशल मीडिया के इस युग में मतदाता के हाथ में एक महत्वपूर्ण हथियार आ गया हैजनतंत्र की सफलता और महत्ता दोनों नागरिक की सक्रियता और जागरूकता पर निर्भर करते हैं।

चार राज्यों के चुनाव इस वर्ष हो जाएंगे और अगले साल आम चुनाव है ही यह सही है कि मतदाता के पास अपनी आवाज उठाने का मौका चुनाव के अवसर पर ही आता है, पर जनतांत्रिक व्यवस्था का तकाजा है कि मतदाता में जागरूकता होनी ही नहीं, दिखनी भी चाहिए।

सोशल मीडिया के इस युग में मतदाता के हाथ में एक महत्वपूर्ण हथियार आ गया है, दिखना चाहिए कि मतदाता इस हथियार का उपयोग कर रहा है। एक सीमा तक ऐसा हो भी रहा है, पर वैसा कुछ दिख नहीं रहा जैसा दिखना चाहिए।

संसद का बजट सत्र हाल ही में समाप्त हुआ है। इस सत्र में सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों का व्यवहार निराशाजनक रहा। सारा सत्र शोर-शराबे की भेंट चढ़ गया। आश्चर्य की बात तो यह है कि संसद की कार्यवाही में रुकावट डालने का काम दोनों पक्षों ने किया।

सत्तारूढ़ दल को किसी भी शर्त पर यह स्वीकार नहीं था कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ‘देश का अपमान’ करने की सजा पाए बिना संसद की कार्यवाही में भाग लें और लगभग समूचे विपक्ष की जिद थी कि ‘अदानी-कांड’ की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति का पहले गठन हो, फिर संसद की कार्यवाही आगे बढ़ेगी।

यह समझना आसान नहीं है कि हमारी संसद ने इस सत्र का आधे से अधिक काम, जिसमें बजट पारित करना भी शामिल है, बिना किसी बहस के, शोर-शराबे के बीच निपटा दिया। संसद का एक और सत्र धुल गया।

सवाल सिर्फ संसद चलाने के लिए होने वाले खर्च की बर्बादी का नहीं है। वैसे, एक आकलन के अनुसार संसद की कार्यवाही पर प्रति मिनट ढाई लाख रुपए खर्च होते हैं। यानी हर सत्र पर करोड़ों रुपए का खर्च और यह सब तब पानी में बह जाता है जब हमारी संसद में ऐसा कुछ होता है, जैसा इस सत्र में हुआ पर इसकी चिंता किसे है?

विधानसभाओं और संसद में निर्वाचित होकर जाने वाले राजनेता हमारे नेता नहीं, प्रतिनिधि हैं हमारा अधिकार है उनके काम-काज पर नजर रखने का वे कुछ अच्छा कर रहे हैं तो उनकी पीठ थपथपाने का और यदि वह हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप काम नहीं कर रहे तो उनसे सवाल पूछना भी हमारा कर्तव्य है।

सच बात तो यह है कि जनतंत्र की सफलता और महत्ता दोनों नागरिक की सक्रियता और जागरूकता पर निर्भर करते हैं। हम कितने सक्रिय और जागरूक हैं। आज तो विचारों की राजनीति के लिए कहीं जगह ही नहीं है।

राजनीति का मतलब ही सत्ता का खेल बन गया है, और खेल भी ऐसा जिसमें न कोई नियम है, न कोई सिद्धांत इस सिद्धांतहीन राजनीति के खिलाफ आवाज उठाना ही जनतंत्र की सार्थकता को दिखाता है। 

Web Title: Only active voters can control politics

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