वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: सपना बड़ा, लेकिन तैयारी कितनी?

By वेद प्रताप वैदिक | Published: June 17, 2019 10:53 AM2019-06-17T10:53:54+5:302019-06-17T10:53:54+5:30

अगले पांच साल में अपनी अर्थव्यवस्था में लगभग 100 प्रतिशत की वृद्धि की बात करना हवाई किले बनाने जैसी बात लगती है. इस समय अमेरिका की अर्थव्यवस्था 19.48 लाख करोड़, चीन की 12.27 लाख करोड़, जापान की 4.8 लाख करोड़ और जर्मनी की 3.69 लाख करोड़ की है.

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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: सपना बड़ा, लेकिन तैयारी कितनी?

नीति आयोग के संचालक-मंडल की बैठक में प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने एक जबर्दस्त घोषणा कर दी है. उन्होंने कहा है कि अगले पांच साल में भारत की अर्थव्यवस्था के आकार को वे लगभग दुगुना करना चाहते हैं. अभी वह पौने तीन लाख करोड़ रु . की है. उसे वे पांच लाख करोड़ रु. की करना चाहते हैं. 

उनका इरादा तो बहुत अच्छा है लेकिन उसे वह साकार कैसे करेंगे? इतनी तेज रफ्तार से आज तक दुनिया की कोई अर्थव्यवस्था आगे नहीं बढ़ी है. अभी दुनिया में कहीं किसी देश का सकल उत्पाद यदि एक-दो प्रतिशत भी आगे बढ़ जाता है तो लोगों की बांछें खिल जाती हैं. भारत के एक प्रमुख अर्थशास्त्नी ने हाल ही में दावा किया है कि सरकार ने पिछले पांच साल की आर्थिक प्रगति के जो आंकड़े पेश किए हैं, उनमें बड़ी खामी है.

अगले पांच साल में अपनी अर्थव्यवस्था में लगभग 100 प्रतिशत की वृद्धि की बात करना हवाई किले बनाने जैसी बात लगती है. इस समय अमेरिका की अर्थव्यवस्था 19.48 लाख करोड़, चीन की 12.27 लाख करोड़, जापान की 4.8 लाख करोड़ और जर्मनी की 3.69 लाख करोड़ की है. जापान, जर्मनी और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था भारत से ज्यादा बड़ी हैं. क्या भारत के नीति-निर्माता इनकी नकल करना चाहते हैं?

क्या भारत के नीति-निर्माताओं को पता है कि इन देशों की संपन्नता का रहस्य क्या है?  सबसे पहला रहस्य तो यह है कि इनका सारा काम स्वभाषा में होता है.  दूसरा, इन देशों ने अपने सीमित प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दोहन किया है. यदि भारत का हर व्यक्ति दस पेड़ लगाने और कुछ साग-सब्जी उगाने का संकल्प ले ले तो ही काफी चमत्कार हो सकता है.

तीसरा, इन राष्ट्रों की संपन्नता का बड़ा रहस्य यह भी है कि इन्होंने सुदूर देशों के संसाधनों का दोहन करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है विनियोग, व्यापार और उपनिवेशवाद के द्वारा. भारत के पास दक्षिण और मध्य एशिया की अपार संपदा के दोहन के अवसर हैं लेकिन उसके नेताओं और नौकरशाहों को उनके बारे में सम्यक बोध ही नहीं है. शायद अब कुछ हो जाए. 

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