निशान्त कुमार का ब्लॉग: उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ता खतरा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 19, 2021 12:43 PM2021-02-19T12:43:41+5:302021-02-19T12:46:04+5:30
उत्तराखंड में चरम बाढ़ की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता 1970 के बाद से चार गुना बढ़ गई है. इसी तरह भूस्खलन, बादल फटने, ग्लेशियल झील के प्रकोप आदि से संबंधित बाढ़ की घटनाओं में भी चार गुना वृद्धि हुई है.
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) द्वारा जारी एक स्वतंत्र विश्लेषण के अनुसार, उत्तराखंड में 85 प्रतिशत से अधिक जिले, जहां नौ करोड़ से अधिक लोगों के घर हैं, अत्यधिक बाढ़ और इससे संबंधित घटनाओं के हॉटस्पॉट हैं.
यही नहीं, उत्तराखंड में चरम बाढ़ की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता 1970 के बाद से चार गुना बढ़ गई है. इसी तरह भूस्खलन, बादल फटने, ग्लेशियल झील के प्रकोप आदि से संबंधित बाढ़ की घटनाओं में भी चार गुना वृद्धि हुई है. राज्य के चमोली, हरिद्वार, नैनीताल, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जिले बाढ़ से अत्यधिक खतरे में हैं.
सीईईडब्ल्यू में प्रोग्राम लीड अविनाश मोहंती बताते हैं, ‘‘उत्तराखंड में हाल ही में आई विनाशकारी बाढ़ इस बात का सबूत है कि जलवायु संकट को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. पिछले 20 वर्षो में उत्तराखंड ने 50000 हेक्टेयर से अधिक वन को खो दिया है, जिससे इस क्षेत्न में सूक्ष्म जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं.
इससे राज्य में चरम जलवायु घटनाओं में वृद्धि हुई है. भूमि उपयोग आधारित वन बहाली पर ध्यान देने से न केवल जलवायु असंतुलन को दूर किया जा सकता है बल्किराज्य में स्थायी पर्यटन को बढ़ावा देने में भी मदद मिल सकती है.’’
सीईईडब्ल्यू के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुणाभ घोष कहते हैं, ‘‘उत्तराखंड में त्नासदी विस्तृत जिला-स्तरीय जलवायु जोखिम आकलन और विभिन्न प्रशासनिक स्तरों पर अनुकूली और लचीलापन क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता को दोहराती है.
इसके अलावा, यह देखते हुए कि संवेदनशील समुदाय अक्सर चरम जलवायु घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, उन्हें जोखिम मूल्यांकन योजना का एक अभिन्न अंग बनाया जाना चाहिए. अंत में, चरम जलवायु घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति के साथ, भारत को तत्काल एक राष्ट्रव्यापी लेकिन विकेंद्रीकृत और संरचित, वास्तविक समय डिजिटल आपातकालीन निगरानी और प्रबंधन प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है.
भारत को आर्थिक समृद्धि और मानव विकास के लिए अधिक लचीला व जलवायु के अनुकूल मार्ग बनाना चाहिए.’’
ध्यान रहे कि पिछले साल पृथ्वी विज्ञान मंत्नालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय ने 1951-2014 के दौरान लगभग 1.3 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि का अनुभव किया.
आने वाले वर्षो में, यह राज्य में चल रही 32 प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को भी प्रभावित कर सकता है, जिनकी कीमत प्रत्येक 150 करोड़ रुपए से अधिक है. अत्यधिक बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि के साथ, सीईईवी विश्लेषण ने यह भी बताया कि उत्तराखंड में 1970 के बाद से सूखा दो गुना बढ़ गया था.