ब्लॉग: नए वर्ष का आगाज अंतरिक्ष में नई उड़ान के साथ
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: January 2, 2024 10:36 AM2024-01-02T10:36:13+5:302024-01-02T10:37:29+5:30
अपने छह दशक के अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इसके पीछे हमारे वैज्ञानिकों का अथक परिश्रम तथा समर्पणभाव है। अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत की शुरुआत जरूर फीकी रही लेकिन पिछले ढाई दशकों में उसने अभूतपूर्व गति हासिल की है।
नई दिल्ली: नए वर्ष के पहले ही दिन भारत ने अंतरिक्ष में अपनी बढ़ती शक्ति का प्रदर्शन किया। सोमवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने देश के पहले एक्स-रे पोलारिमीटर उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया। यह उपग्रह ब्लैक होल के कई रहस्यों पर से पर्दा हटाने के उद्देश्य से भेजा गया है। न केवल भारत बल्कि दुनियाभर के वैज्ञानिकों में इस बात को लेकर उत्सुकता है कि पांच वर्ष के अपने जीवन में यह भारतीय उपग्रह ब्लैक होल के किन अनसुलझे रहस्यों के सुलझाने में कामयाब हो पाता है। भारतीय उपग्रह के महत्व को इस बात से आंका जा सकता है कि इसके पूर्व इस तरह का विशिष्ट उपग्रह सिर्फ अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (नासा) ने ही तीन साल पहले प्रक्षेपित किया था।
इस उपग्रह के अध्ययन का दायरा विस्तृत है। वह अंतरिक्ष में मृत तारों की संरचना का अध्ययन करने के अलावा ब्लैक होल तथा न्यूट्रॉन सितारों के पास की विकिरण की प्रक्रिया को भी समझने की कोशिश करेगा। वह ब्रह्मांड में 50 सबसे ज्यादा चमकने वाले तत्वों के रहस्यों को भी खोलेगा। भारत ने अंतरिक्ष कार्यक्रमों को नया रूप दिया है। उसने यह साबित कर दिया है कि कम लागत में भी महत्वपूर्ण अंतरिक्ष अभियानों को पूरा किया जा सकता है। चंद्रयान, मंगलयान और आदित्य को भारत ने बहुत कम लागत में तैयार कर प्रक्षेपित किया और यह सब अपने उद्देश्यों में उम्मीद से ज्यादा सफल रहे हैं। भारत ने नए वर्ष के पहले दिन जो उपग्रह प्रक्षेपित किया, उसकी तैयारी 2017 से चल रही थी. इस महत्वपूर्ण मिशन का खर्च नासा के इसी तरह के मिशन से बहुत कम है।
अपने छह दशक के अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इसके पीछे हमारे वैज्ञानिकों का अथक परिश्रम तथा समर्पणभाव है। अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत की शुरुआत जरूर फीकी रही लेकिन पिछले ढाई दशकों में उसने अभूतपूर्व गति हासिल की है। भारत की अंतरिक्ष तकनीक से ‘नासा’ भी प्रभावित है और वह इस क्षेत्र में भारत के साथ मिलकर काम करने के लिए बेहद उत्सुक है। चंद्रयान, मंगलयान तथा आदित्य के बहुत कम खर्च में सफल प्रक्षेपण के बाद जापान, फ्रांस तथा ब्रिटेन ने भी भारत के साथ अंतरिक्ष कार्यक्रम में सहयोग की संभावना तलाश करनी शुरू दी है। आज भारत न केवल खुद के उपग्रह बल्कि दुनिया के कई देशों के उपग्रह प्रक्षेपित कर रहा है। भारत ने उपग्रह तथा रॉकेट प्रक्षेपण तकनीक को अमेरिका और चीन के मुकाबले बहुत सस्ता बना दिया है। निकट भविष्य में इसरो परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट बनाने में कामयाब हो जाएगा।
इससे उसे चंद्रमा, मंगल, शुक्र या अन्य किसी भी ग्रह की दूरी कम समय में तय करने में मदद मिलेगी. भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम देश के विकास के साथ-साथ मानव कल्याण को समर्पित है। दूरसंचार से लेकर कृषि, मौसम, पर्यावरण, जलप्रबंधन, आपदा प्रबंधन, संसाधनों की मैपिंग जैसे तमाम क्षेत्रों में भारतीय उपग्रह महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। अंतरिक्ष विज्ञान में भारत किसी भी विकसित देश से पीछे नहीं है। अब हमारा देश एक-साथ सौ से ज्यादा उपग्रहों का प्रक्षेपण करने में समर्थ है। समय के साथ-साथ अंतरिक्ष के बारे में और जानकारी हासिल करने के प्रति हमारी उत्सुकता सतत बढ़ती जा रही है। दुनिया के बहुत कम देशों के पास ठोस अंतरिक्ष कार्यक्रम है. वास्तव में भारत, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान जैसे कुछ चुनिंदा देशों को छोड़ दिया जाए तो दुनिया के अधिकांश राष्ट्रों की प्राथमिकता में अंतरिक्ष कार्यक्रम नहीं है।
अंतरिक्ष अभियान महंगे भी बहुत होते हैं. इसलिए ज्यादातर विकासशील तथा गरीब देश उसमें दिलचस्पी नहीं दिखाते लेकिन भारत ने सस्ते अंतरिक्ष अभियानों को अंजाम देकर उनके लिए भी संभावना के द्वार खोल दिए हैं। कम लागत में अंतरिक्ष अभियानों को सफलतापूर्वक पूरा करने में भारत की क्षमता ने कई विकासशील देशों को अंतरिक्ष अभियानों के लिए प्रेरित किया है। मैक्सिको, ब्राजील, मलेशिया, थाईलैंड, पेरू, चिली, उरुग्वे जैसे देश भारत से प्रेरित होकर अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों को नया रूप देने में जुट गए हैं। यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अंतरिक्ष विज्ञान के विस्तार में भारत एक प्रेरक केंद्र के रूप में स्थापित हो रहा है।