दुनिया नए एचआईवी संक्रमणों को रोकने के लक्ष्य से काफी पीछे, शशांक द्विवेदी का ब्लॉग

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 1, 2020 03:09 PM2020-12-01T15:09:45+5:302020-12-01T15:13:19+5:30

एड्सः 2019 में करीब 17 लाख नए मामले सामने आए थे. जो कि वैश्विक लक्ष्य से करीब तीन गुना ज्यादा हैं. हालांकि इनमें 2010 से करीब 23 फीसदी की कमी आई है.

new HIV infections UNAIDS world who behind the goal of preventing Shashank Dwivedi's blog  | दुनिया नए एचआईवी संक्रमणों को रोकने के लक्ष्य से काफी पीछे, शशांक द्विवेदी का ब्लॉग

साल 2018 में ही 7.70 लाख लोग मारे गए, जबकि 17 लाख लोग संक्रमित हो गए. (file photo)

Highlightsएचआईवी महामारी की शुरुआत से लेकर अब तक 7.5 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं.3.2 करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है. दुनियाभर में हर साल लाखों मौत हो रही हैं.दुनियाभर में 15-49 आयु वर्ग की 0.8 प्रतिशत आबादी इस महामारी की शिकार है.

पिछले दिनों यूएनएड्स द्वारा प्रकाशित ‘सैजिंग द मूमेंट’ नामक रिपोर्ट  के अनुसार दुनिया नए एचआईवी संक्र मणों को रोकने के लक्ष्य से काफी पीछे है.

2019 में करीब 17 लाख नए मामले सामने आए थे. जो कि वैश्विक लक्ष्य से करीब तीन गुना ज्यादा हैं. हालांकि इनमें 2010 से करीब 23 फीसदी की कमी आई है. इसके बावजूद यह 75 फीसदी की कमी लाने के लक्ष्य से काफी दूर है.  कुल मिलाकर कोविड की वजह से 2020 के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किया गया था, उसे हासिल नहीं किया जा सकेगा.

कोरोना कीवजह से एड्स के एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी, दवाओं और सेवाओं के वितरण और पहुंच में दिक्कतें आ रही हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, एचआईवी महामारी की शुरुआत से लेकर अब तक 7.5 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं और 3.2 करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है.

इस महामारी से दुनियाभर में हर साल लाखों मौत हो रही हैं. साल 2018 में ही 7.70 लाख लोग मारे गए, जबकि 17 लाख लोग संक्रमित हो गए. दुनियाभर में कुल 3.79 करोड़ लोग एचआईवी अथवा एड्स से पीड़ित हैं. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, दुनियाभर में 15-49 आयु वर्ग की 0.8 प्रतिशत आबादी इस महामारी की शिकार है.

यूएनएड्स के आंकड़ों के मुताबिक, 2018 में एड्स की चपेट में आकर जान गंवाने वालों में 6.70 लाख लोग वयस्क थे जबकि एक लाख मौतें 15 साल से कम उम्र के बच्चों की हुईं. एड्स से जान गंवाने वाले 61 प्रतिशत लोग अफ्रीका देशों से हैं.

हालांकि यूएनएड्स और डब्लूएचओ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 2000 से 2019 के बीच नए एचआईवी संक्रमणों में करीब 39 फीसदी की गिरावट आई है. जबकि इसी अवधि में एचआईवी संबंधित मौतों में भी 51 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. जिसमें एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी, दवाओं का बहुत बड़ा योगदान है. रिपोर्ट के अनुसार एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी के उपयोग से लगभग 1.5 करोड़ लोगों की जान बचाई जा सकी है.

भारत में हालात: भारत में 1986 में पहला मामला सामने आने के बाद एचआईवी-एड्स सालों तक एक बड़े खौफ का सबब रहा. इसके खिलाफ शुरू की गई योजनाबद्ध जंग से अब इसकी पकड़ लगातार ढीली पड़ रही है. सरकारी और गैर-सरकारी समूहों के संगठित प्रयासों से देश में एचआईवी-एड्स के नए मामलों में काफी कमी आई है.

नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (नाको) की वार्षिक रिपोर्ट 2018-19 के मुताबिक, भारत की 0.22 प्रतिशत आबादी एचआईवी से संक्रमित है. संक्रमितों में 0.25 प्रतिशत पुरु ष और 0.19 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं. 2001-03 के दौरान संक्रमण चरम पर था. इस दौरान 0.38 प्रतिशत आबादी संक्रमित थी. 2007 में संक्रमण घटकर 0.34 प्रतिशत, 2012 में 0.28 प्रतिशत और 2015 में 0.26 प्रतिशत रह गया.

एचआईवी का फिलहाल कोई मुकम्मल इलाज नहीं है लेकिन इसके इलाज के शोध पर काफी सकारात्मक नतीजे आए हैं और निकट भविष्य में इसका इलाज संभव हो सकता है. एक बार शरीर में आ जाने के बाद वायरस ताउम्र शरीर में रहता है. फिर भी दवाओं की मदद से एचआईवी पॉजीटिव होने से लेकर एड्स होने तक के गैप को बढ़ाया जा सकता है.

कोशिश की जाती है कि एचआईवी पीड़ित शख्स लंबे समय तक बीमारियों से बचा रहे. यह वक्त कितना बढ़ाया जा सकता है, यह उस शख्स पर निर्भर करता है. अलग-अलग मामलों में यह वक्त अलग-अलग हो सकता है. इसी तरह एड्स हो जाने के बाद व्यक्ति कितने दिनों तक जिंदा रहेगा, यह भी उसके अपने रहन-सहन, खानपान और इलाज पर निर्भर करता है. एचआईवी पॉजीटिव व्यक्ति को इलाज के दौरान एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्स दिए जाते हैं. एजेडटी, डीडीएल, डीडीसी कुछ कॉमन ड्रग्स हैं.

एड्स हो जाने के बाद इससे छुटकारा पाने की दुनिया में अभी कोई दवा नहीं बन पाई है. अभी तक जो भी दवाएं बनी हैं, वे सिर्फ बीमारी की रफ्तार कम करती हैं, उसे खत्म नहीं करतीं एचआइवी के लक्षणों का इलाज तो हो सकता है, लेकिन इस इलाज से भी यह बीमारी पूरी तरह खत्म नहीं होती है. एजेडटी, एजीकोथाइमीडीन, जाइडोव्यूजडीन, ड्राइडानोसीन स्टाव्यूडीन जैसी कुछ दवाइयां हैं, जो इसके प्रभाव के रफ्तार को कम करती हैं. लेकिन, ये इतनी महंगी हैं कि आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं.

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