ब्लॉग: स्वच्छ और समृद्ध भारत बनाने की जरूरत

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: July 10, 2024 03:44 PM2024-07-10T15:44:39+5:302024-07-10T15:47:17+5:30

चमक को वापस लाने के लिए मोदी को अपने तरीके और बहुमत को फिर हासिल करना चाहिए। पहली बात, अब कोई ऐसा नया नारा नहीं दिया जाना चाहिए, जिसमें कोई दम नहीं हो। मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में एक है भारतीय मानस को छद्म धर्मनिरपेक्षता से मुक्त कराना।

Need to create a clean and prosperous India | ब्लॉग: स्वच्छ और समृद्ध भारत बनाने की जरूरत

फोटो क्रेडिट- (एक्स)

Highlightsसाल 2014 से भारत ने एक नई छवि और नया अर्थ पाया हैयह दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में है और उसकी वृद्धि दर सर्वाधिक हैअन्वेषण एवं तकनीक में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।हर कूटनीतिक बैठक में उसकी शिरकत जरूरी

प्रभु चावला: चुनावी नतीजे चेतावनी भी होते हैं और वादों की याद भी दिलाते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने कुछ अचरज भरे नतीजे हासिल किए हैं। केरल में पार्टी का खाता खुला और ओडिशा में उसकी पहली सरकार बनी। अब उनके समर्थक और विरोधी चाहते हैं कि वे कम-से-कम ‘मोदी की गारंटी’ को पूरा करें। साल 2014 से भारत ने एक नई छवि और नया अर्थ पाया है। यह दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में है और उसकी वृद्धि दर सर्वाधिक है। अन्वेषण एवं तकनीक में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। हर कूटनीतिक बैठक में उसकी शिरकत जरूरी है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का यह पसंदीदा गंतव्य है।

चमक को वापस लाने के लिए मोदी को अपने तरीके और बहुमत को फिर हासिल करना चाहिए। पहली बात, अब कोई ऐसा नया नारा नहीं दिया जाना चाहिए, जिसमें कोई दम नहीं हो। मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में एक है भारतीय मानस को छद्म धर्मनिरपेक्षता से मुक्त कराना। कुछ समर्थक चाहते हैं कि मोदी अपने धुर हिंदुत्व धर्मयुद्ध की धार कुछ कम कर दें। इससे अधिकतम चुनावी लाभ लिया जा चुका है। देश के आधे से अधिक हिस्से का भगवाकरण हो चुका है। अब प्रधानमंत्री को अपने बुनियादी वादों की ओर लौटना चाहिए, जिन्हें पूरा करने का जिम्मा उन्होंने भरोसेमंद मंत्रियों और अधिकारियों को दे दिया था। यदि स्वच्छ भारत और ‘अधिकतम शासन एवं न्यूनतम सरकार’ को ठीक से लागू किया जाता, तो बड़े बदलाव हो सकते थे। इसका दोष नौकरशाही पर है, जो बदलना नहीं चाहती।

दशकों से हमारे देश में असाधारण रूप से बड़ी सरकारें रही हैं, पर शासन की गुणवत्ता बेहद खराब रही है। ऐसा प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं कहा था, लेकिन दस साल बाद उनकी ही सरकार का आकार बहुत बड़ा है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से अधिक दर से खर्च बढ़ रहा है। साल 2023 में वेतन एवं भत्ते पर 2.80 लाख करोड़ रुपए खर्च हुए थे। अगले साल यह आंकड़ा तीन लाख करोड़ रुपए से अधिक हो जाएगा।सरकारी कर्मियों की संख्या 31 से बढ़कर 35 लाख हो जाएगी।

तकनीक को अधिक अपनाने की जरूरत है, पर सरकार एक ही काम के लिए अधिक से अधिक लोगों की भर्ती कर रही है। मसलन, दो साल में प्रत्यक्ष कर विभाग के लिए स्वीकृत कर्मियों की संख्या 49 से बढ़कर 79 हजार हो गई है। दस्तावेजों के अनुसार, अप्रत्यक्ष कर से जुड़े कर्मियों की तादाद 53 से बढ़कर 92 हजार हो जाएगी। परिवार कल्याण मंत्रालय के कर्मियों की संख्या 20 से बढ़कर 28 हजार हो जाएगी।

लेकिन शोध एवं अनुसंधान में केवल 61 कर्मी ही होंगे।संस्कृति मंत्रालय में 10 हजार से अधिक कर्मी हैं, पर पर्यटन विभाग में केवल 583 लोग ही कार्यरत हैं। बहुत बड़ी कैबिनेट बनाने की मोदी की परंपरा पहले कार्यकाल से ही चली आ रही है। इस बार 30 कैबिनेट मंत्री हैं, पांच स्वतंत्र प्रभार के राज्य मंत्री हैं और 41 राज्य मंत्री हैं। अनधिकृत आकलन के अनुसार, एक मंत्री पर हर माह एक करोड़ रुपए खर्च हो जाते हैं।केंद्र में 53 मंत्रालय तथा लगभग 80 विभाग हैं।

राजीव गांधी ने मंत्रालयों का विलय कर सरकार को व्यवस्थित करने की कोशिश की थी। मसलन रेल, यातायात और नागरिक उड्डयन को एक मंत्रालय बनाया गया था। पर राजनीतिक मजबूरियों के चलते उन्हें इस मॉडल को वापस लेना पड़ा था। मंत्रालयों की अधिक संख्या और उन पर खर्च होने वाला धन एवं समय असली संकट है।

एक कैबिनेट मंत्री 15 लोगों का निजी स्टाफ रख सकता है।यदि उसके पास दो या तीन मंत्रालय हैं तो वह स्टाफ की संख्या दुगुनी या तिगुनी कर करदाताओं के पैसे से छोटा सा साम्राज्य खड़ा कर सकता है। स्वतंत्र प्रभार का राज्य मंत्री 11 और राज्य मंत्री नौ लोगों का निजी स्टाफ रख सकता है। मोदी सरकार के स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्रियों को एक कैबिनेट मंत्री के अधीन अतिरिक्त कार्यभार भी दिया गया है।

बीस राज्य मंत्रियों को दो या अधिक विभाग मिले हैं।मसलन, जितेंद्र सिंह के पास दो स्वतंत्र प्रभार के विभागों के साथ चार और विभाग मिले हैं। अगर वे चाहें तो 60 लोगों का निजी स्टाफ रख सकते हैं। सचिव स्तर के अधिकारियों की संख्या बीते एक दशक में लगभग 50 प्रतिशत बढ़ गई है। इस अधिकता से कामकाज और निर्णयों में देरी होती है।स्वच्छ भारत अभियान सेलिब्रिटियों और नेताओं के लिए फोटो खिंचवाने का अवसर भर बनकर रह गया।

मोदी ने इस अभियान के दूत के रूप में फिल्मी सितारों, मीडिया मालिकों, उद्योगपतियों, सिविल सोसाइटी के नेताओं और खिलाड़ियों को चुना।उनसे अपेक्षा थी कि वे विभिन्न सरकारी एजेंसियों के सहयोग से कुछ जगहों को गोद लेंगे और जागरूकता के लिए कार्यक्रम करेंगे।इसके लिए खूब पैसा आवंटित किया गया। प्रधानमंत्री का उद्देश्य था कि गंदगी से भरे देश की छवि मिटा दी जाए। लेकिन उनके चयनित चैंपियनों ने उन्हें धोखा दिया और रुचि लेना बंद कर दिया। सरकार ने भी ऐसा ही किया।

मोदी स्थानीय निकायों, जन-प्रतिनिधियों, अधिकारियों और युवाओं को लामबंद करने में विफल रहे।सभी नगर निगमों में भ्रष्टाचार का राज है। कुछ का बजट तो मध्य आकार के राज्यों से भी अधिक है।स्वच्छता कर्मियों, इंजीनियरों, पार्षदों और आयुक्तों के आपराधिक गठजोड़ ने शहरों को दुर्गंध भरी बस्तियों में तब्दील कर दिया है।हमारी नदियां नाला बन गई हैं। भारी बारिश में सड़कों और घरों में बाढ़ आ जाती है।हवाई अड्डों की छत गिर रही हैं तो हवाई अड्डे, बस व रेलवे स्टेशन पानी में डूबे हुए हैं.

मोदी को स्वच्छ भारत अभियान को नया जीवन देना चाहिए। अरबपति पार्षदों को उन्हें यह समझाना चाहिए कि शहर को साफ रखना व्यापार के लिए अच्छा है और यह एक सामाजिक कार्य भी है।

मोदी के स्वयं के नेतृत्व में ऐसे राष्ट्रीय अभियान से रोजगार बढ़ेगा, नई तकनीक आएगी, निवेश आएगा।भारत को गंदा रखने के लिए किसी को सजा नहीं मिली है।दोषियों को सरकार आर्थिक अपराधियों की तरह दंडित करे। अगर भारत रहने लायक नहीं रहेगा तो शेयर बाजार की चमक भी फीकी पड़ जाएगी। साल 2029 में जीत और राज्यों में पकड़ बनाए रखने के लिए भाजपा को नए मोदी की आवश्यकता है।भारत जल्दी ही पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। स्वस्थ मोदी का अर्थ है स्वच्छ एवं समृद्ध भारत। नवोन्मेष पर ध्यान होना चाहिए। प्रतिकार की जगह प्रमाण को स्थापित किया जाना चाहिए।तभी चौथी बार पुख्ता जीत हासिल होगी।

Web Title: Need to create a clean and prosperous India

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