एन. के. सिंह का ब्लॉग: किसानों को राहत देकर तोड़ा जा सकता है गरीबी का कुचक्र

By एनके सिंह | Published: September 8, 2019 02:35 PM2019-09-08T14:35:11+5:302019-09-08T14:35:30+5:30

मोदी के खिलाफ शाश्वत भाव से आलोचना करने वाले यह तो मानेंगे ही, इसमें उनका आरोप यह हो सकता है कि लघु-मंझोले उद्योग कालेधन की व्यवस्था (कैश) से चलते थे और उनके मालिकों को उद्यम बंद करना पड़ा क्योंकि उन्हें डर लगा कि मजदूर को जब चेक से भुगतान करेंगे तो उनपर श्रम कानून के तहत सेवा शर्ते अपनानी होंगी और कर्मचारियों की ग्रेच्युटी और भविष्य निधि में भी खर्च करना होगा, साथ ही न्यूनतम वेतन भी देना होगा.

N. K. Singh's blog: Poverty can be broken by giving relief to farmers | एन. के. सिंह का ब्लॉग: किसानों को राहत देकर तोड़ा जा सकता है गरीबी का कुचक्र

एन. के. सिंह का ब्लॉग: किसानों को राहत देकर तोड़ा जा सकता है गरीबी का कुचक्र

देश में 69 प्रतिशत आबादी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में है और करीब 62 प्रतिशत लोग सीधे खेती से जुड़े हैं. कृषि उत्पादों की लागत बढ़ती जा रही है. किसान उत्पादन तो बढ़ा रहा है लेकिन उत्पादकता (लाभ) कम होती जा रही है - कारण उपज की मार्केटिंग की समुचित व्यवस्था न होना है जिससे उसके उत्पादों की कीमतें कम और रासायनिक खादों के दाम बढ़ने से खर्च ज्यादा है. बगैर यह सुनिश्चित किए कि रात में हुई घोषणा के बाद कैश के गायब होने से धनिया बेचने वाली बुढ़िया को साहूकार उधारी पर अनाज भी नहीं देगा या एटीएम में ट्रे का साइज और नए नोट का साइज बदल जाने के कारण मजदूर पैसे के बिना दवा कहां से कराएगा, नोटबंदी करने के लिए मोदी सरकार को जन-निंदा ङोलनी पड़ी. अनेक नौकरियां भी चली गईं, लेकिन क्या इससे कालेधन का पैदा होना कम नहीं हुआ?

यहां मोदी के खिलाफ शाश्वत भाव से आलोचना करने वाले यह तो मानेंगे ही, इसमें उनका आरोप यह हो सकता है कि लघु-मंझोले उद्योग कालेधन की व्यवस्था (कैश) से चलते थे और उनके मालिकों को उद्यम बंद करना पड़ा क्योंकि उन्हें डर लगा कि मजदूर को जब चेक से भुगतान करेंगे तो उनपर श्रम कानून के तहत सेवा शर्ते अपनानी होंगी और कर्मचारियों की ग्रेच्युटी और भविष्य निधि में भी खर्च करना होगा, साथ ही न्यूनतम वेतन भी देना होगा.

अगर यह तर्क सही है तो इसका सीधा मतलब यह हुआ कि नोटबंदी से कालाधन पैदा होना कम हुआ. फिर एक आर्थिक बुराई जो दशकों से दीमक की तरह देश को खा रही थी अगर कुछ कम हुई तो क्या नेतृत्व का फैसला गलत था? दरअसल इसके अमल में दिक्कत थी और गोपनीयता सुनिश्चित करने में अमल की दिक्कतों को नजरंदाज किया गया था.

आज जरूरत है ग्रामीण भारत में रहने वालों और खासकर किसानों के हाथ में पैसे डालने की. उपज बढ़ी लेकिन निर्यात नहीं हुआ और देश में कीमत कम रही, लिहाजा किसानों के हाथ में पैसे नहीं रहे. सरकार को प्रधानमंत्नी किसान सम्मान निधि में किसानों को दी जाने वाली रकम को 6000 रु पए से बढ़ाना होगा ताकि खेती में घटती आय से कुछ छुटकारा मिल सके.

जब किसान के हाथ में पैसा आएगा तो वह खर्च करेगा - तेल, साबुन, भोजन व अन्य जीवन उपयोगी सामग्री पर. इसका लाभ यह होगा कि जब मांग पैदा होगी तो उद्योग खासकर माइक्रो, लघु और मध्यम उद्योग उत्पादन करेंगे और जब उत्पादन होगा तो नौकरियां आएंगी और जब वेतन मिलेगा तो सामग्री की खरीद भी होगी.  

ताजा जानकारियों के अनुसार मोदी सरकार को यह समझ में आ गया है कि संकट से उबरने का रास्ता किसानों की आय बढ़ने से ही गुजरता है, लिहाजा राहत पैकेज के लिए कुछ नए कदम उठाए जा रहे हैं. वास्तव में यह सब अर्थशास्त्न के उस सिद्धांत पर आधारित है कि विकास के क्रम में एक ऐसी स्थिति आती है जब उच्च और उच्च-मध्यम वर्ग उपभोग संतृप्तता के चरम पर होता है जिसके आगे वह जो भी उपभोग करता है उससे रोजगार सृजन नगण्य होता है, जबकि किसान का उपभोग जबरदस्त रोजगार वृद्धि करता है. अर्थ-शास्त्नी रेग्नर नस्र्क ने इसी  ‘खतरनाक वृत्त’ का जिक्र  करते हुआ कहा था- कम (प्रति-व्यक्ति) आय से कम निवेश से कम उत्पादकता से कम बचत और अंत में फिर कम आय (यानी गरीबी). किसानों को राहत पैकेज दे कर इस खतरनाक वृत्त को तोड़ा जा सकता है और शायद मोदी सरकार की नई योजनाएं इस दिशा में जा रही हैं.

Web Title: N. K. Singh's blog: Poverty can be broken by giving relief to farmers

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