एन. के. सिंह का ब्लॉगः विपक्ष पर वार तो करें, लेकिन तर्क के साथ

By एनके सिंह | Published: August 17, 2019 04:46 AM2019-08-17T04:46:53+5:302019-08-17T04:46:53+5:30

मोदीजी वक्ता तो अच्छे हैं लेकिन जब कांग्रेस पर हमला करते हैं तो अक्सर उनके जुझारू व्यक्तित्व का साथ शायद तर्क छोड़ देता है.

N. K. Singh's blog: attack the opposition, but with logic | एन. के. सिंह का ब्लॉगः विपक्ष पर वार तो करें, लेकिन तर्क के साथ

एन. के. सिंह का ब्लॉगः विपक्ष पर वार तो करें, लेकिन तर्क के साथ

लाल किले से अपने भाषण के पूर्वार्ध में प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस पर प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर प्रहार करते दिखे. उदाहरण : ‘सन 2014 के पहले एक निराशा का माहौल था जो 2019 तक आकांक्षाओं और ‘विश्वास’ में बदल गया’, ‘370 अच्छा था तो स्थायी क्यों नहीं किया’, ‘बड़े फैसलों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए’, ‘सुधार की आप में हिम्मत नहीं थी’ आदि, आदि. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने अनुच्छेद 370 हटाए जाने का विरोध करने वाली कांग्रेस पर तंज के भाव में कहा ‘‘अगर यह अनुच्छेद इतना ही अच्छा था, तो जब कांग्रेस की सरकारें जबर्दस्त बहुमत में थीं तो इसे स्थायी क्यों नहीं कर दिया.’’ 

मोदीजी वक्ता तो अच्छे हैं लेकिन जब कांग्रेस पर हमला करते हैं तो अक्सर उनके जुझारू व्यक्तित्व का साथ शायद तर्क छोड़ देता है. उन्हें याद दिलाया जा सकता है कि गृह मंत्नी अमित शाह ने विधेयक रखते हुए संसद में कहा था कि स्वयं कांग्रेस सरकार तमाम बार राष्ट्रपति के आदेश से जम्मू-कश्मीर के अधिकारों को पहले से ही कम कर चुकी है तो इसे पूरी तौर पर खत्म करने में क्या दिक्कत है. अगर कांग्रेस में प्रतिघात करने की क्षमता होती तो मोदी के इस भाषण पर प्रतिक्रिया में दो सवाल पूछती ‘‘मोदीजी, अगर एक अस्थायी अनुच्छेद से कांग्रेस उस राज्य की शक्तियों को लगातार बगैर किसी उन्माद के या कोई सेना लगाए चुपचाप कम करती रही है तो इतना बड़ा हंगामा क्यों, और उसी प्रक्रि या से जिससे कांग्रेस ने राष्ट्रपति के आदेश के तहत 35ए अस्तित्व में रखा था, आप उसी का इस्तेमाल करते हुए उसे हटा देते, यह तमाशा क्यों?’’ 
  
प्रधानमंत्नी का कांग्रेस से यह कहना कि ‘‘इतना अच्छा था तो इसे स्थायी क्यों नहीं किया?’’ कुछ ऐसा तर्क-वाक्य है कि कोई किसी से कहे ‘‘अगर आप अमुक को इतना सम्मान देते हैं तो उसके आने पर उसके पांव धोकर क्यों नहीं पीते जैसा कि हमारे पूर्वज करते थे.’’ अगर कांग्रेस सकारात्मक तर्क का इस्तेमाल करे तो मोदी से पूछ सकती है ‘‘अगर सम्मान का प्रतीक और अहसास दिलाकर ही उनके अधिकार कम किए जा सकते हैं तो संगीनों के साये में और जवानों के बूटों की आवाज में यह शांति कितने दिन और कितनी महंगी पड़ेगी?’’
 
दूसरा तर्क लें. सरकार के बड़े फैसलों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. संवाद अगर ‘वन-वे’ न होता या मीडिया से कभी मुखातिब होते या विपक्ष चैतन्य होता तो मोदी से प्रति-प्रश्न करता : मोदीजी, तो क्या इस मुद्दे पर संसद में कार्य-स्थगन प्रस्ताव लाया जाए कि कितने मंत्रियों के पर्सनल स्टाफ संघ के कार्यकर्ता रहे हैं? क्या राम मंदिर पर लोकसभा में सरकार बहुमत के कारण बिल पास कराए तो विपक्ष को इसलिए चुप रहना चाहिए कि आपके हिसाब से यह बहुसंख्यक समुदाय की भावना का मुद्दा है लिहाजा, आपकी परिभाषा के अनुसार, यह देश हित में है और ‘बड़ा’ है? फिर किस बैरोमीटर से निराशा, ‘विश्वास’ और ‘जन-अपेक्षा’ नापी जाती है? 

जनसंख्या नियंत्नण के लिए मोदी जी ने जनता से एक जबर्दस्त अपील की. जो कम बच्चे पैदा करते हैं उन्हें देशभक्त कहा (वैसे लालू यादव की नौ संतानें हैं लेकिन राहुल ने तो शादी भी नहीं की है). संदेश अच्छा है लेकिन मोदी से सवाल पूछा जा सकता है कि अगर आपके 15 साल के शासनकाल में बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सकल प्रजनन दर (टीआरएफ) को लेकर परिवार नियोजन कार्यक्रम सबसे ज्यादा असफल रहा और पिछले दो साल में भी उत्तर प्रदेश वहीं का वहीं जबकि दक्षिण के सभी गैर-भाजपा शासित राज्य केरल, तमिलनाडु , आंध्र प्रदेश और कर्नाटक (अब आप के हाथ फिर आया है) में राष्ट्रीय औसत से काफी कम तो देश-भक्त किसे माना जाए. अगर जनसंख्या की दस-वर्षीय विकास दर सबसे तेजी से मुसलमानों में गिर रही है (पिछले दशक में यह गिरावट पांच प्रतिशत से ज्यादा की है जो न तो दलितों में है न ही आदिवासियों में और न ही राष्ट्रीय दर में) तो इस नई परिभाषा से देशभक्त कौन हुआ, मुसलमान या हर दूसरे दिन वंदे मातरम् न कहने पर उन्हें पाक भेजने वाला आपका मंत्नी?     
            
लोकसभा में मोदी ने 11 जून, 2014 को धन्यवाद प्रस्ताव पर कांग्रेस पर तंज करते हुए कहा था कि ‘‘हमारी तमाम योजनाओं को आज यह पार्टी कहती है ये सब हमारे जमाने में ही शुरू की गई योजनाएं हैं’’. इस संदर्भ में महाभारत के ‘प्रपन्न-गीता’ का एक श्लोक उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा, दुर्योधन से जब कहा गया कि तुम तो धर्म जानते हो फिर अधर्म का मार्ग क्यों अपना रहे हो तो उसने कहा, ‘‘जानामि र्धम, न च में प्रवृत्ति:’’ (धर्म तो मैं जानता हूं पर इस ओर मेरी प्रवृत्ति नहीं है). तब सत्ता पक्ष ने जबर्दस्त तालियां बजाई थीं. मोदी ने श्लोक की अगली पंक्ति ‘जानाम्यर्धम, न च में निवृत्ति:’ (मैं अधर्म भी जानता हूं पर उससे मुङो छुटकारा नहीं है) नहीं पढ़ी थी. आज कांग्रेस में प्रतिघात की सामथ्र्य और समझ होती तो वह श्लोक की यह पंक्ति उद्धृत कर जनता से वैसी ही ताली बजवा सकती थी. प्रतिघात गहरा होता और दूरगामी राजनीतिक लाभ भी. 

Web Title: N. K. Singh's blog: attack the opposition, but with logic

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