एन. के. सिंह का ब्लॉग: लॉकडाउन बढ़ाने के साथ आर्थिक संकट से निपटने के भी उपाय करें

By एनके सिंह | Published: April 13, 2020 06:33 AM2020-04-13T06:33:11+5:302020-04-13T06:33:11+5:30

कोरोना वायरस से संक्रमित होने और मरने वालों के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं, लिहाजा लॉकडाउन खोलने का तो सवाल ही नहीं है. अगर खोलेंगे तो वह मकसद संकट में आ जाएगा जिसके लिए 139 करोड़ लोगों को घरों की चहारदीवारी में कैद होना पड़ा. लेकिन देश की जो तमाम आर्थिक-सामाजिक गतिविधियां लगभग ठहर सी गई हैं, उन पर भी विचार करना होगा.  

N. K. Singh blog: Along with increasing lockdown, take measures to deal with the economic crisis | एन. के. सिंह का ब्लॉग: लॉकडाउन बढ़ाने के साथ आर्थिक संकट से निपटने के भी उपाय करें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

एक तरफ प्रधानमंत्नी ने संकट की घड़ी में लंबी लड़ाई के लिए देशवासियों को तैयार रहने को कहा और दूसरी ओर उत्पादन व उसके निर्यात के जरिये इस संकट को सुअवसर में तब्दील करने की बात कही है. उनकी बात में दम है. कोरोना वायरस से संक्रमित होने और मरने वालों के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं, लिहाजा लॉकडाउन खोलने का तो सवाल ही नहीं है. अगर खोलेंगे तो वह मकसद संकट में आ जाएगा जिसके लिए 139 करोड़ लोगों को घरों की चहारदीवारी में कैद होना पड़ा. लेकिन देश की जो तमाम आर्थिक-सामाजिक गतिविधियां लगभग ठहर सी गई हैं, उन पर भी विचार करना होगा.  

रबी की फसल खेत में तैयार खड़ी है और अगर अगले 15 दिन में नहीं काटा गया तो वह सूख कर खेत में गिर जाएगी, यानी बर्बाद हो जाएगी. फिर किसान के पास इतनी ताकत नहीं है कि वह उसे बखारों/स्टोरों में रख सके क्योंकि उसे जीवन की अन्य गतिविधियों और कर्ज चुकता करने के लिए भी पैसे की जरूरत है. लिहाजा या तो मंडियां खोलनी पड़ेंगी या सरकारी गोदाम को दिन-रात खरीद के लिए तैयार करना पड़ेगा. इन दोनों में खतरा फिर वही है कि लोग नजदीक आएंगे और संक्रामक कोरोना को खुली दावत होगी.

ध्यान रहे कि सबसे कमजोर तबका है किसानों का जिनमें वे मजदूर भी हैं जो खेती का काम खत्म होने पर बाहर शहरों में कमाने निकल जाते हैं और जो आज क्वारंटाइन में सरकारी भोजन पर वक्त काट रहे हैं. रबी उत्पाद को खरीदने की और तत्काल पेमेंट की मुकम्मल व्यवस्था करनी होगी और वह भी यह सुनिश्चित करते हुए कि कम से कम मानव संचरण हो. क्या राज्य सरकारों का भ्रष्ट और निष्क्रिय अमला यह करने में सक्षम होगा?  

आज जरूरत है कि निम्न वर्ग को फ्री अनाज के जरिये लॉकडाउन की पीड़ा घटाएं. सरकार इफरात अनाज (77.6 मिलियन टन जो कि जरूरत से तीन गुना ज्यादा है और नई आवक को रखने की जगह सरकार के पास नहीं है) की समस्या से जूझ रही है. अभी कुछ माह पहले ही विदेश मंत्नालय से खाद्य मंत्नालय ने प्रार्थना की थी कि ऐसे गरीब देश तलाशें जिन्हें मुफ्त अनाज दिया जा सके. दरअसल अगर यह अनाज कुछ महीने और गोदामों में रुक जाता तो इसके रखरखाव की कीमत अनाज की कीमत से ज्यादा हो जाती.

वैसे भी ताजा इकोनॉमिक सर्वे के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि जो गेहूं किसानों से सरकार ने 1700-1800 रुपए में खरीदा उस पर रखरखाव और भंडारण का खर्च लगभग उतना ही हो गया है यानी अब अगर यह अनाज गोदामों में रुका तो ‘नौ की लकड़ी, नब्बे खर्च’ हो जाएगा. लिहाजा सरकार को आसन्न भुखमरी से कमजोर तबके को बचाने के लिए समूचा अनाज राज्य की सरकारों को मुफ्त बांटने के लिए तत्काल देना होगा. इसका लाभ यह होगा कि सरकार में नैतिक ताकत होगी कि वह देश-हित में लॉकडाउन को और बढ़ा सके.    

पूरा देश इस समय जबकि पूरी तरह लॉकडाउन की हालत में है, इस रोग के प्रसार के आंकड़ों और औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों में हौसलाअफजाई के दो तथ्य हैं- पहला, जो राज्य औद्योगिक उत्पादन में अग्रणी हैं उनके यहां इस रोग का संकट कम है और दूसरा, देश में 82 प्रतिशत उत्पादन कॉर्पोरेट या सरकारी क्षेत्न में है जहां मजदूरों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग लागू की जा सकती है.

उदाहरण के लिए गुजरात कोरोना के मामलों में 11वें स्थान पर है लेकिन औद्योगिक उत्पादन में पहले स्थान पर. ठीक उसके उलट दिल्ली जो कोरोना मामलों में तीसरे स्थान पर है, औद्योगिक उत्पादन में 20 वें पर है. तेलंगाना और केरल कोरोना संख्या में चौथे और पांचवें स्थान पर लेकिन औद्योगिक उत्पादन में क्र मश: 13 वें और 15 वें स्थान पर हैं. लिहाजा सरकार एक सम्यक और दूरदर्शी दृष्टि रखते हुए सभी सोशल डिस्टेंसिंग के नियम लागू करते हुए इन क्षेत्नों में उत्पादन शुरू करवा सकती है और जरूरत हो तो निर्यात से आर्थिक क्षति को भी पूरा करने की नीति बना सकती है.

Web Title: N. K. Singh blog: Along with increasing lockdown, take measures to deal with the economic crisis

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