ब्लॉग: जलवायु परिवर्तन के कारण खिसक रहे पहाड़

By पंकज चतुर्वेदी | Published: August 8, 2023 03:47 PM2023-08-08T15:47:50+5:302023-08-08T15:48:40+5:30

एक दशक के दौरान महाराष्ट्र के बड़े हिस्से में बरसात के दिनों में भूस्खलन भयावह रूप से नुकसान कर रहा है। दूरस्थ अंचलों की बात तो दूर है, देश की आर्थिक राजनीति कही जाने वाली मुंबई में पिछले साल 19 जून को सुबह चेंबूर के भारत नगर में पहाड़ के तराई में स्थित छोटे-छोटे घरों पर एक बड़ी चट्टान खिसक कर गिर पड़ी।

Mountains moving due to climate change | ब्लॉग: जलवायु परिवर्तन के कारण खिसक रहे पहाड़

फोटो क्रेडिट- फाइल फोटो

19 जुलाई को मुंबई से लगभग 80 किमी दूर रायगढ़ जिले की खालापुर तहसील के तहत इरशालवाड़ी गांव की पहाड़ी ऐसी खिसकी कि गांव के 229 निवासियों में से 27 की मृत्यु हो गई, जबकि बहुत सारे लोगों का अभी तक पता नहीं चल पाया है।

दो साल पहले भी 22 जुलाई, 2021 को इसी जिले में महाड तहसील के तलिये गांव में भीषण भूस्खलन में 87 लोगों की जान चली गई थी। बीते साल ही रत्नागिरि के पोसरे बौद्धवाड़ी में 12 मौतें हुईं। महाराष्ट्र के रत्नागिरि, कर्जत, दाभौल, लोनावाला आदि में पहाड़ सरकने से बहुत नुकसान हुआ।

बीते एक दशक के दौरान महाराष्ट्र के बड़े हिस्से में बरसात के दिनों में भूस्खलन भयावह रूप से नुकसान कर रहा है। दूरस्थ अंचलों की बात तो दूर है, देश की आर्थिक राजनीति कही जाने वाली मुंबई में पिछले साल 19 जून को सुबह चेंबूर के भारत नगर में पहाड़ के तराई में स्थित छोटे-छोटे घरों पर एक बड़ी चट्टान खिसक कर गिर पड़ी।

महाराष्ट्र में जिन इलाकों में भूस्खलन हो रहा है, उनमें से अधिकांश सह्याद्रि पर्वतमाला के करीब हैं। इन सभी स्थानों पर घटना के दौरान अचानक एक दिन में तीन से चार सौ मिलीमीटर बरसात हो गई। इन सभी स्थानों पर पहाड़ों पर बस्ती और खेत के लिए बेशुमार पेड़ काटे गए। जब मिट्टी पर पानी की बड़ी बूंदें सीधी गिरती हैं तो, एक तो ये मिट्टी को काटती हैं, दूसरा बहती मिट्टी करीबी जल निधि-नदी-जोहड़-तालाब को उथला करती है. इन दोनों से पहाड़ ऊपर से और धरातल से कमजोर होता है। यही नहीं इन सभी क्षेत्रों में निर्माण और खनन के लिए ताकतवर विस्फोटों का इस्तेमाल लंबे समय से हो रहा है।

दो साल पहले केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा तैयार पहली जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन रिपोर्ट में स्पष्ट चेतावनी दी गई थी कि समुद्र के आसपास और रत्नागिरि के पहाड़ी इलाके बदलते मौसम के लिए सर्वाधिक संवेदनशील हैं और यहां चरम मौसम की मार से प्राकृतिक आपदाओं की अधिक संभावना है. इन सभी रिपोर्ट और चेतावनियों के बावजूद विकास के नाम पर पहाड़ों के साथ की जा रही बर्बरता जारी रही। आज जरूरत है कि नंगी पहाड़ियों पर हरियाली की चादर बिछाई जाए।

पहाड़ और नदी के करीब बड़े निर्माण कार्य से परहेज किया जाए, कम से कम सड़क, पुल या बांध के लिए इन नैसर्गिक संरचनाओं से छेड़छाड़ न हो। यह किसी से छुपा नहीं है कि महाराष्ट्र में आने वाले दिनों में जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव और गहरे उभरेंगे और इससे बचने के लिए पहाड़ को सहेजना बहुत जरूरी है।

Web Title: Mountains moving due to climate change

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