राजेश कुमार यादव का ब्लॉग: संस्कृति की पहचान है मातृभाषा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 22, 2020 07:26 AM2020-02-22T07:26:29+5:302020-02-22T07:26:29+5:30
21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर भाषाई विविधता को सम्मान देते हुए मूल निवासियों की भाषाओं को संरक्षित रखने की अहमियत के प्रति जागरूकता बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं.
कोस कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी. ये कहावत मातृभाषा की महत्ता समझाने के लिए पर्याप्त है. जन्म लेने के बाद मनुष्य जो सबसे पहली भाषा सीखता है वही उसकी मातृभाषा होती है. यह भाषा किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है. मातृभाषा मात्न संवाद ही नहीं अपितु संस्कृति और संस्कारों की संवाहिका है.
भाषा और संस्कृति केवल भावनात्मक विषय नहीं, अपितु देश की शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी विकास से जुड़ा है. महात्मा गांधी का मानना था कि विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करती है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करती है. यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देती है. उनका कहना था कि ‘यदि मुङो कुछ समय के लिए निरकुंश बना दिया जाए तो मैं विदेशी माध्यम को तुरंत बंद कर दूंगा.’
इजराइल के 16 विद्वानों ने नोबल पुरस्कार मातृभाषा हिब्रू भाषा में ही कार्य के आधार पर प्राप्त किया है. यह भी प्रामाणिक तथ्य है कि विश्व में सकल घरेलू उत्पादन में प्रथम पंक्ति के 20 देशों का समग्र कार्य उनकी अपनी अपनी मातृभाषा में ही होता है तथा साथ ही सकल घरेलू उत्पाद में सबसे पिछड़े 20 देशों में अध्ययन-अध्यापन एवं शोध कार्य आयातित विदेशी भाषा में होता है.
21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर भाषाई विविधता को सम्मान देते हुए मूल निवासियों की भाषाओं को संरक्षित रखने की अहमियत के प्रति जागरूकता बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं. इस दिवस का मूल 21 फरवरी 1952 में है जब ढाका विश्वविद्यालय के छात्नों ने तत्कालीन पाकिस्तान सरकार के उस आदेश का विरोध किया जिसमें सिर्फ उर्दू को ही राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया गया था. उस समय बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था.
इस घोषणा से फैले असंतोष के बाद व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए जिसके बाद 1956 में बांग्ला को भी आधिकारिक भाषा का दर्जा दे दिया गया. स्कूलों में शुरुआती सालों में साक्षरता, बुनियादी लिखाई पढ़ाई और गणित सीखने के लिए मातृभाषा बेहद आवश्यक है. साथ ही मातृभाषा सृजनात्मक विविधता और पहचान की अभिव्यक्ति है.