हरीश गुप्ता का ब्लॉग: वर्ष 2024 में मोदी बनाम नीतीश मुकाबला!

By हरीश गुप्ता | Published: May 26, 2022 10:00 AM2022-05-26T10:00:33+5:302022-05-26T10:01:46+5:30

नीतीश कुमार ने शायद कुछ विश्वसनीयता खो दी हो क्योंकि वे बार-बार पाला बदलते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं है क्योंकि वह हिंदी पट्टी में भी भाजपा के खिलाफ सही माहौल बनाने में विफल रही है। यह 2017 की विफल वार्ता को पुनर्जीवित करने का समय है और कांग्रेस के साथ सभी विपक्षी दल भाजपा को पछाड़ने के लिए एक मंच पर आ सकते हैं।

Modi vs Nitish contest in the year 2024 | हरीश गुप्ता का ब्लॉग: वर्ष 2024 में मोदी बनाम नीतीश मुकाबला!

हरीश गुप्ता का ब्लॉग: वर्ष 2024 में मोदी बनाम नीतीश मुकाबला!

Highlightsआप 2024 में 40-50 लोकसभा सीटों पर जीत का लक्ष्य सामने रख रही है।ममता बनर्जी की भी 50 लोकसभा सीटों पर नजर है।

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के सदस्यों पर सीबीआई के बड़े छापों का मतलब क्या है? आखिरकार, लालू अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं, दोषी ठहराए गए, जेल गए और तेजी से बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण जमानत पर रिहा हुए हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि पिछले हफ्ते अचानक 17 जगहों पर सीबीआई की छापेमारी अकारण नहीं थी। यह कोई रहस्य नहीं है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रमुख सहयोगी भाजपा के बीच सबकुछ ठीक नहीं है क्योंकि भगवा पार्टी अवसर की ताक में है। 

भाजपा ने कनिष्ठ सहयोगी वीआईपी के तीनों विधायकों को निगल लिया और कांग्रेस व राजद को तोड़कर अपनी सरकार बनाने का उसका इरादा है। अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि भाजपा जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव के बाद इस योजना पर अमल कर सकती है। एक चतुर राजनीतिक नेता नीतीश कुमार भी इसके बारे में जानते हैं और अपने राजनीतिक विरोधी तेजस्वी यादव से खुलकर मिलते रहे हैं। इसका अभी तक कोई परिणाम नहीं निकला है लेकिन कुछ गहरी खिचड़ी पक रही है। 

बिहार में जुलाई 2017 में एक राजनीतिक विस्फोट हुआ था, जब नीतीश ने साथ मिलकर विधानसभा चुनाव जीतने के बाद लालू को छोड़ दिया और मोदी से हाथ मिला लिया। यह राजनीतिक नैतिकता के सभी मानदंडों के खिलाफ था और पहली बार तब देखा गया था जब भजन लाल ने ऐसा 1980 के दशक में हरियाणा में किया था। यहां यह कहा जाना चाहिए कि तत्कालीन जदयू नेता शरद यादव ने भाजपा के साथ हाथ मिलाने से इनकार कर दिया और अपनी राज्यसभा सीट और एक सुनिश्चित कैबिनेट सीट हारकर इसकी कीमत चुकाई। विडंबना यह है कि वही नीतीश कुमार पांच साल बाद पटना में लालू के घर जा रहे हैं। 

क्या नीतीश राजद का इस्तेमाल स्थिरता के लिए भाजपा के साथ सौदेबाजी करने के लिए कर रहे हैं या 2024 में मोदी के खिलाफ महागठबंधन बनाने के लिए राजद के साथ जा रहे हैं? जो भी हो, नीतीश कुमार और गैर-भाजपा दलों के बीच विश्वास की कमी जरूर है। भाजपा क्यों परेशान है
जदयू-राजद के मेलजोल से भाजपा परेशान हो गई है क्योंकि दोनों ही कांग्रेस के 19 विधायकों के साथ मिलकर किसी भी दिन सरकार बना सकते हैं। ऐसी खबरें हैं कि नीतीश कुमार भाजपा की विभाजनकारी राजनीति के विरोध में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देंगे और तेजस्वी यादव के बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। 

इस सौदेबाजी में नीतीश को 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का पटना में डेरा डालने का निर्णय अकारण नहीं है। विपक्षी दल भी अपेक्षाकृत साफ छवि वाले चेहरे की तलाश में हैं क्योंकि विपक्ष में कोई भी राहुल गांधी को इस स्थान के लिए स्वीकार करने को तैयार नहीं है। अहम सवाल यह है कि क्या कांग्रेस मानेगी? शायद हां, अगर कोई याद करे कि ठीक पांच साल पहले क्या हुआ था। उल्लेखनीय है कि नीतीश कुमार ने 20 अप्रैल, 2017 को सोनिया गांधी के साथ उनके 10 जनपथ आवास पर गोपनीय बैठक की थी। 

उन्होंने उस समय 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए विपक्षी एकता का आह्वान किया था। बताया जाता है कि नीतीश कुमार ने रूपरेखा पर चर्चा करने के लिए राहुल गांधी से भी मुलाकात की थी। लेकिन कांग्रेस कथित तौर पर 2017 में नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के लिए स्वीकार करने के प्रति अनिच्छुक थी और वार्ता विफल रही। चार महीने के भीतर जुलाई 2017 में नीतीश भाजपा के साथ हो गए। अब जबकि लोकसभा चुनाव दो साल दूर हैं, नीतीश कुमार 2024 में फिर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने के लिए अपनी किस्मत आजमा रहे हैं और दूसरों को फायदेमंद सौदे के लिए राजी करने की कोशिश कर रहे हैं; राजद को सीएम का पद, बिहार में यूपीए के लिए 30 लोकसभा सीटों की सुनिश्चित जीत और कुर्मी वोट दिलाकर यूपी में अखिलेश यादव की मदद करना। 

नीतीश कुमार ने शायद कुछ विश्वसनीयता खो दी हो क्योंकि वे बार-बार पाला बदलते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं है क्योंकि वह हिंदी पट्टी में भी भाजपा के खिलाफ सही माहौल बनाने में विफल रही है। यह 2017 की विफल वार्ता को पुनर्जीवित करने का समय है और कांग्रेस के साथ सभी विपक्षी दल भाजपा को पछाड़ने के लिए एक मंच पर आ सकते हैं। महत्वाकांक्षी विपक्षी नेता अन्य प्रमुख विपक्षी नेता जैसे अरविंद केजरीवाल (आप), के चंद्रशेखर राव (तेलंगाना), ममता बनर्जी (टीएमसी) आदि 2024 के लोकसभा चुनावों में प्रमुख खिलाड़ी बनने के लिए अपना विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं। 

आप 2024 में 40-50 लोकसभा सीटों पर जीत का लक्ष्य सामने रख रही है। लेकिन केजरीवाल जानते हैं कि राष्ट्रीय परिदृश्य पर नीतीश कुमार के उभरने से उत्तर भारत में उनकी संभावनाओं को नुकसान होगा। ममता बनर्जी की भी 50 लोकसभा सीटों पर नजर है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी एक बड़ी भूमिका की कोशिश में हैं और कोई भी सुनिश्चित नहीं है कि वे लोकसभा चुनाव के समय क्या करेंगे। आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस और ओडिशा में बीजद अपनी क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर खुश हैं और स्वतंत्र रहना पसंद करते हैं। लेकिन सपा, सीपीएम, द्रमुक, राकांपा और अन्य दल ‘तीसरे मोर्चे’ को पुनर्जीवित के इच्छुक नहीं हैं और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाना पसंद करेंगे। 2024 की लड़ाई के लिए अगले दो महीने अहम हैं।

Web Title: Modi vs Nitish contest in the year 2024

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