लोकतंत्र के लिए खतरनाक है ये आवारा भीड़तंत्र

By विजय दर्डा | Published: July 23, 2018 05:44 AM2018-07-23T05:44:06+5:302018-07-23T05:44:06+5:30

नगालैंड में तो कई ऐसे घर आपको मिल जाएंगे जहां बहुत से नरमुंड टंगे रहते हैं और घर का मुखिया बड़ी शान से यह बताता भी है कि उसके पूर्वजों ने इतने दुश्मनों के सिर काटे। ऐसे मामलों में भी प्रभुत्व स्थापित करने का भाव होता होगा।

mob lynching is dangerous for democracy | लोकतंत्र के लिए खतरनाक है ये आवारा भीड़तंत्र

लोकतंत्र के लिए खतरनाक है ये आवारा भीड़तंत्र

समझ में नहीं आता कि हमारे देश को हो क्या गया है? भीड़तंत्र का बोलबाला होता जा रहा है। किसी भी मसले को लेकर एक हल्ला होता है, भीड़ जमा हो जाती है और शिकार को दबोच लिया जाता है। पीट-पीट कर उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है। अंग्रेजी में इसे मॉब लिंचिंग कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति अमेरिका के दो भाइयों चार्ल्स लिंच और बॉब लिंच में से किसी के नाम पर मानी जाती है। 

ऐसा माना जाता है कि अठारहवीं सदी में अमेरिका के कुछ हिस्सों में नीग्रो लोगों को भीड़ पीट-पीट कर मार डालती थी। इन दोनों भाइयों पर ऐसी भीड़ को उन्मादी बनाने का आरोप लगाया जाता है। उन्होंने कानून से अलग हटकर लिंचिंग लॉ बनाया था। इतिहास बताता है कि उस दौर में दुनिया के कई हिस्सों में भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या करने की वारदातें होती रहती थीं। भारत में भी इसके प्रमाण मिलते हैं। 

डायन के नाम पर न जाने कितनी निदरेष महिलाओं को इस देश में मौत के घाट उतार दिया गया। लेकिन वक्त के साथ सभ्यता आई। शिक्षा फैली। कानून का राज आया और इस तरह की घटनाएं कम होती चली गईं। मैं इस मामले में दंगों का जिक्र नहीं कर रहा हूं क्योंकि दंगे में मानसिकता अलग होती है। 

नगालैंड में तो कई ऐसे घर आपको मिल जाएंगे जहां बहुत से नरमुंड टंगे रहते हैं और घर का मुखिया बड़ी शान से यह बताता भी है कि उसके पूर्वजों ने इतने दुश्मनों के सिर काटे। ऐसे मामलों में भी प्रभुत्व स्थापित करने का भाव होता होगा। तब जिसकी लाठी उसकी भैंस का जमाना था। लेकिन अब तो कानून का शासन है तो फिर सवाल पैदा होता है कि मॉब लिंचिंग की घटनाएं क्यों हो रही हैं। क्या भीड़तंत्र पर कोई काबू नहीं है?

दरअसल आज जिस तरह की मॉब लिंचिंग हो रही है, वह पुराने जमाने से बिल्कुल अलग है। आंकड़े बताते हैं कि 2015 से लेकर 2018 के मध्य तक 66 लोग मॉब लिंचिंग का शिकार हो चुके हैं। किसी पर गौ-मांस रखने का आरोप लगाकर भीड़ ने मार डाला तो किसी पर गौ-तस्करी का आरोप चस्पा करके मौत के घाट उतार दिया गया। किसी को बच्च चोर समझकर मार डाला। 

बिहार के पाकुड़ प्रखंड में तो अजीब तरह की घटना हुई। एक युवक किसी काम से वहां पहुंचा था। उसने कुछ बच्चों को देखा तो उन्हें चॉकलेट बांटने लगा। गांव वालों ने उसे बच्च चोर समझ लिया और भीड़ ने मार डाला। महाराष्ट्र के धुलिया जिले में पांच निदरेषों को बच्च चोर समझ कर मौत के घाट उतार दिया गया। विदेश से हिंदुस्तान आए दो भाई भी मॉब लिंचिंग के शिकार हो गए।

यह भीड़ इतनी उन्मादी होती है कि उससे बचकर भागना भी मुश्किल होता है। झारखंड में तो स्वयंभू गौ-रक्षकों के एक दल ने अलीमुद्दीन अंसारी की गाड़ी का पीछा पंद्रह किलोमीटर तक किया। अलीमुद्दीन  ने गाड़ी रोकी तो गौ-रक्षकों के दल ने गौ-मांस ढोए जाने का हल्ला मचाकर भीड़ इकट्ठा कर ली। इस भीड़ ने यह भी नहीं देखा कि गाड़ी में क्या लदा है। गाड़ी फूंक दी और अलीमुद्दीन को इतना मारा कि बाद में उसकी मौत हो गई!

इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के एक नेता का नाम आया। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने कई आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई लेकिन जब उन्हें हाईकोर्ट ने जमानत पर रिहा किया तो केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा उन आरोपियों के स्वागत समारोह में खड़े थे। यह किस बात का संदेश है? मॉब लिंचिंग के आरोपी माला पहने हुए हैं और जयंत सिन्हा के साथ खड़े हैं। यानी मंत्री महोदय उनकी हौसला अफजाई कर रहे हैं? जयंत सिन्हा के पिता यशवंत सिन्हा खुद इससे आहत थे। उन्होंने ट्वीट किया- ‘पहले मैं एक लायक बेटे का नालायक बाप था, लेकिन अब भूमिकाएं बदल गई हैं। मैं अपने बेटे की हरकतों का समर्थन नहीं करता।’ 

मैं आश्चर्यचकित हूं कि जयंत सिन्हा के किए पर उनकी पार्टी ने चुप्पी साध रखी है। अभी तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं हुई। वैचारिक मतभेद अपनी जगह है लेकिन वैचारिक मनभेद राष्ट्र के लिए जहर है। यह राष्ट्र को बांट देगा। मेरे मन में यह सवाल पैदा होता है कि ये जो हत्याएं हो रही हैं, क्या मेरे ही देश के लोग कर रहे हैं? यह देश बुद्ध, महावीर और गांधी का है, संतों और सूफियों का है। इस देश को आखिर हो क्या गया है? 

यह दौर आसमान छूने का है, सशक्त बनने का है, गांवों को समृद्ध करने का है। युवा शक्ति को विश्व धरोहर बनाने का है, शिक्षा को घर-घर पहुंचाने का है। ऐसे दौर में हमारे देश में गौ-हत्या के नाम पर नफरत फैलाई जा रही है। ये जो गौ-हत्या का मसला है यह हिंदुस्तान को धार्मिक आधार पर बांटने के लिए अंग्रेजों ने शुरू किया था। अंग्रेज चले गए लेकिन अंग्रेजियत आज भी कायम है। बांटो और राज करो का फॉमरूला आज भी चल रहा है। जो भी यह खेल खेल रहा है वह देश का दुश्मन है। ऐसे लोग देश को कहां ले जाना चाहते हैं, यह समझ से परे है! 

सबको समझना होगा कि मारे जा रहे लोग हिंदुस्तानी ही हैं। इस देश को आगे ले जाना है तो जात-पांत, धर्म-संप्रदाय के नाम पर बांटने का यह खेल बंद होना चाहिए। मुङो गोपालदास नीरज की ये पंक्तियां याद आ रही हैं। अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए/ जिसमें इनसान को इनसान बनाया जाए।

सच मानिए, यदि भीड़तंत्र बढ़ता जाएगा तो वह देश के लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बन जाएगा। दुर्भाग्य यह है कि मौजूदा सत्ता इस खतरे पर काबू पाने की कोई कोशिश नहीं कर रही है। हालात की गंभीरता को सर्वोच्च न्यायालय ने समझा है और सख्त शब्दों में कहा है कि इस भीड़तंत्र को और बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। केंद्र सरकार इस पर कानून बनाए। 

मॉब लिंचिंग को लेकर लोकसभा में भी मामला उठा है लेकिन गृह मंत्री राजनाथ सिंह कह रहे हैं कि कानून व्यवस्था संभालने का काम राज्यों के पास है। राज्य ही ऐसे मामलों से निपटें। मैं यह मानता हूं कि यह राज्यों की जिम्मेदारी है लेकिन जब समस्या राष्ट्रव्यापी है तो केंद्र को हस्तक्षेप करना ही चाहिए! गृह मंत्री सारी जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़कर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते। 

सरकार का मंत्री संविधान की कसम खाता है कि वह कोई भेदभाव नहीं करेगा। यह बच्चों की झूठी कसमें नहीं होतीं। इसका पालन करना होता है। केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि इस भीड़तंत्र को नियंत्रित करने के लिए कठोर कानून बनाए क्योंकि भीड़तंत्र का राज हो गया तो हम उस अंधे दौर में पहुंच जाएंगे जब मनुष्य सभ्यता के रास्ते पर नहीं चला था। राजनेताओं को भी इस बात का खयाल रखना होगा कि वे ऐसे लोगों की हौसला अफजाई न करें जो इस भीड़तंत्र का हिस्सा हैं। इस्लामिक स्टेट और तालिबान जैसे संगठन भीड़तंत्र से ही पैदा हुए हैं। हमें सतर्क रहना चाहिए। 

गांधीजी की इस प्रार्थना को हर रोज हमें न केवल गुनगुनाना चाहिए बल्कि अपने जेहन में भी उतारना चाहिए।। ‘ईश्वर अल्ला तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान।।!’और अंत में।।

कुछ लोग काम के प्रति अपने समर्पण से दिल जीत लेते हैं। पंजाब ट्रैफिक पुलिस के दो जवान गुरधियान सिंह और गुरदेव सिंह ऐसे ही शख्स हैं। जिरकपुर फ्लाईओवर के पास घुटनों तक पानी होने के बावजूद वे अपनी ड्यूटी पर कायम रहे और यातायात नियंत्रित करते रहे। उन पर नजर पड़ी जानी-मानी अभिनेत्री गुल पनाग की। उन्होंने उनकी तस्वीरें अपने ट्विटर हैंडल पर डालीं। पंजाब के पुलिस अधिकारियों की उस पर नजर गई और अब दोनों जवानों को पुरस्कृत किया गया है। मैं ऐसे जवानों की कद्र करता हूं। 

Web Title: mob lynching is dangerous for democracy

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