मणिपुर हिंसा: पीएम मोदी के बयान के लिए विपक्ष का हंगामा क्या ठीक है?

By विवेकानंद शांडिल | Published: July 30, 2023 03:17 PM2023-07-30T15:17:31+5:302023-07-30T15:17:31+5:30

यह एक जगजाहिर तथ्य है कि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में मणिपुर, असम से लेकर त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर क्षेत्र के सभी राज्यों ने विकास, शांति और समृद्धि के नये आयामों को हासिल किया है।

Manipur violence: Is the opposition's uproar right for PM Modi's statement | मणिपुर हिंसा: पीएम मोदी के बयान के लिए विपक्ष का हंगामा क्या ठीक है?

मणिपुर हिंसा: पीएम मोदी के बयान के लिए विपक्ष का हंगामा क्या ठीक है?

मणिपुर में बीते कुछ समय से मैतेई और कुकी समुदाय के बीच एक भीषण हिंसक संघर्ष चल रहा है। यहाँ से हाल ही में दो महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न का एक वीडियो हमारे सामने आया, जिसने पूरे देश का सिर शर्म से झुका दिया। 

इस वीडियो ने हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी व्यथित कर दिया और उन्होंने इस घटना को 140 करोड़ भारतवासियों को शर्मसार करने वाला बताया। साथ ही, यह भी आश्वस्त किया कि इस घटना के आरोपियों को किसी भी सूरत में बख़्शा नहीं जाएगा। 

आज यह एक जगजाहिर तथ्य है कि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में मणिपुर, असम से लेकर त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर क्षेत्र के सभी राज्यों ने विकास, शांति और समृद्धि के नये आयामों को हासिल किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने केन्द्रीय सत्ता में आते ही ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को हमारे सामने लाया, जिसके माध्यम से उनका प्रयास भारत-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ बेहतर राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक संबंधों को विकसित करना है। उनके इस प्रयास से कभी शेष भारत से बिल्कुल कटा हुआ महसूस करने वाले पूर्वोत्तर के राज्य आज हमारे विकास के ‘प्रवेश द्वार’ और ‘अष्ट लक्ष्मी’ के रूप में अपनी एक विशेष पहचान स्थापित कर चुके हैं। 

लेकिन, मणिपुर हिंसा जैसी घटनाओं से पूर्वोत्तर क्षेत्र में आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक विकास को लेकर हो रहे सभी प्रयासों पर निश्चित रूप से बेहद नकारात्मक असर पड़ेगा और ऐसी घटनाएं दोबारा न हो हमें यह सुनिश्चित करना होगा। 

हालांकि, इतने संवेदनशील मुद्दे को लेकर कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने जिस प्रकार का रवैया दिखाया है। वह वास्तव में बेहद दुःखद और खतरनाक है। उन्हें यह समझना होगा कि यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ मुद्दा है और इस पर किसी प्रकार की राजनीति कतई नहीं होनी चाहिए। 

विपक्ष के नेता प्रधानमंत्री मोदी पर लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं, कि उन्होंने आख़िर ढाई महीने से चल रहे मणिपुर हिंसा को लेकर कुछ कहा क्यों नहीं? वे क्षेत्र का दौरा करने क्यों नहीं गये?

विपक्ष के ये सवाल वास्तव में उनकी अज्ञानता और राष्ट्र के प्रति उनकी अनिष्ठा को दर्शाता है। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर की स्थिति पर लगातार नज़र बनाए हुए हैं और उनके दिशानिर्देशों पर शांति स्थापित करने के तमाम प्रयास किये जा रहे हैं। और, सवाल जहाँ तक प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी का है, तो आलोचक जरा स्वयं सोचें कि ऐसे समय में, जब भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है और हमारे सामने कई महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समझौते हैं, तो ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के एक बयान से भारत को लेकर दुनिया में क्या संदेश जाएगा? 

विपक्ष को यह यथाशीघ्र समझने की आवश्यकता है कि यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है और इससे निपटने में हम सक्षम हैं। उन्हें दुनिया के सामने अपने ही देश को छोटा दिखाने का प्रयास बंद कर देना चाहिए। वे मणिपुर हिंसा में विदेशी शक्तियों की संलिप्तता को भी नकार नहीं सकते हैं।

यह कोई छिपाने वाली बात नहीं है कि हमारा पड़ोसी देश चीन वर्षों से भारत में विद्रोही संगठनों की मदद कर रहा है और पूर्वोत्तर के राज्यों में बीते कुछ वर्षों में जिस प्रकार से मादक पदार्थों की बरामदगी की गई है। वह चिन्ता का एक प्रमुख विषय है। ऐसे में विपक्ष को किसी भी मुद्दे को तूल देने से पहले, अपने राष्ट्रीय सरोकारों के विषय में विचार करना आवश्यक है।

ख़ैर, अब मणिपुर में स्थिति सामान्य हो रही है। यहाँ हाल के कुछ दिनों में हिंसा के कारण न किसी की मौत हुई है और न ही अब विद्याल या सरकारी कार्यालय बंद हैं। इस घटना को लेकर केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में भी अपना हलफ़नामा दायर किया है। इस हलफ़नामे के अनुसार, मणिपुर राज्य सरकार द्वारा इस मामले को केंद्रीय जाँच ब्यूरो को सौंपने के बाद आगे की कार्रवाई बेहद तेज़ी के साथ आगे बढ़ रही है।

वहीं, मामले की त्वरित जाँच के लिए केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से यह आग्रह किया है कि इसे मणिपुर से 'बाहर किसी भी अन्य राज्य में' स्थानांरित कर दिया जाए। इस हिंसा को लेकर अब तक लगभग 14 हजार लोगों की गिरफ़्तारी हो चुकी है और राज्य के सुरक्षा व्यवस्था को चौकस करने, मध्यस्थता और राजनीतिक बीच-बचाव के मामले में केन्द्र सरकार अपनी भूमिकाओं को भली-भाँति निभा रही है।

गौरतलब है कि मणिपुर में अभी तक राज्य पुलिस के अलावा, केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों की 124 अतिरिक्त कंपनियां और आर्मी/असम राइफल्स की 185 टुकड़ियां भी तैनात हैं। यहाँ सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह की अगुवाई में अलग-अलग सुरक्षा बलों के एक एकीकृत कमांड का गठन किया गया है।

वहीं, अब मणिपुर सरकार ने केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर राज्य में म्यांमार से आए लोगों का बायोमीट्रिक डेटा लेना फिर शुरू कर दिया है। इसका उद्देश्य मणिपुर में अवैध रूप से रह रहे म्यांमार के नागरिकों की पहचान करना है। 

बहरहाल, यदि हम बीते 9 वर्षों के आँकड़े को देखें तो पूर्वोत्तर भारत में राह भटके 8 हजार से भी अधिक युवाओं ने आत्मसमर्पण किया है। इस वजह से यहाँ उग्रवाद संबंधित घटनाओं में 76 प्रतिशत से भी अधिक की कमी आई है। ये परिणाम निश्चित रूप से, मोदी-शाह की अगुवाई में एनएलएफटी समझौता-2019, ब्रू व बोड़ो समझौता-2020, कार्बी समझौता-2021 और 2022 के भारत सरकार, असम सरकार और बीसीएफ, एसीएमए, एएएनएलए, एपीए, एसटीएफ, एएएनएलए (एफजी), बीसीएफ (बीटी), एसीएमए (एफजी) जैसे आठ आदिवासी समुदायों के प्रतिनिधियों के बीच हुए ऐतिहासिक त्रिपक्षीय समझौतों से आए हैं।

ऐसे में, मणिपुर में आज भले ही परिस्थितियाँ प्रतिकूल हों। लेकिन हमें बिना परेशान हुए। बिना व्यथित हुए। प्रधानमंत्री मोदी पर अपने विश्वास को कायम रखना होगा। वे अवश्य इस मुश्किल समस्या का कोई न कोई स्थायी समाधान ढूंढ़ लेंगे।

Web Title: Manipur violence: Is the opposition's uproar right for PM Modi's statement

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