मालदीव मामले में भारत के लिए फैसले की घड़ी, आखिर कब दखल देगा भारत?
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 22, 2018 08:52 AM2018-07-22T08:52:36+5:302018-07-22T08:52:36+5:30
मालदीव में मौजूद भारतीय अधिकारी मान रहे हैं कि यामीन भारत का प्रभाव अपने देश में पूरी तरह से खत्म करना चाहते हैं. यामीन ने चीन को भारत के ऊपर तरजीह देना पहले से ही आरंभ कर दिया था.
अवधेश कुमार
दक्षिण एशिया में एकमात्न देश मालदीव है जहां प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी चाहकर भी आज तक नहीं जा पाए. नेबर फस्र्ट की नीति पर पूरी तरह कायम रहने के बावजूद भारत के लिए मालदीव को रास्ते पर लाना संभव नहीं हो सका है. राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन अपने आरंभिक दिनों से ही भारत को नजरअंदाज करने तथा दूरियां बढ़ाने की नीति पर चल रहे हैं. मालदीव ने अभी पाकिस्तान के साथ ऊर्जा क्षेत्न में मजबूत क्षमता वाले भवन निर्माण के लिए करार किया है.
मालदीव की स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कंपनी स्टेलको के प्रतिनिधियों ने पाकिस्तान जाकर समझौते पर हस्ताक्षर किया है. इसके समानांतर भारतीयों के लिए वर्क परमिट देना तक बंद कर दिया गया है और भारत के सहयोग से चलने वाली परियोजनाओं को पूरा करने में भी इरादतन देरी की जा रही है. अब्दुल्ला यामीन और उनके सहयोगियों को अच्छी तरह पता है कि भारत इसे कभी पसंद नहीं करेगा. जाहिर है, अब्दुल्ला यामीन जान-बूझकर भारत को मालदीव से बाहर करने की नीति पर काम कर रहे हैं. पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा उरी में किए गए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में होने वाले दक्षेस सम्मेलन का भारत द्वारा बहिष्कार करने के आह्वान पर मालदीव एकमात्न ऐसा देश था जिसने अनिच्छा जाहिर की थी.
मालदीव में मौजूद भारतीय अधिकारी मान रहे हैं कि यामीन भारत का प्रभाव अपने देश में पूरी तरह से खत्म करना चाहते हैं. यामीन ने चीन को भारत के ऊपर तरजीह देना पहले से ही आरंभ कर दिया था. चीन 10 साल पहले से ही हिंद महासागर क्षेत्न में नौसेना के जहाजों को भेजना शुरू कर चुका था. मालदीव में चीन की आर्थिक उपस्थिति अब काफी बढ़ गई है. सच कहा जाए तो यामीन की कृपा से उसने धीरे-धीरे वहां भारत का स्थानापन्न कर लिया है. मालदीव को बाहरी मदद का 70 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ चीन से मिलता है.
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