माजिद पारेख का ब्लॉग: पैगंबर मोहम्मद (स.) ने दुनिया को ईमान और अमन का दिया संदेश
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 10, 2019 08:27 AM2019-11-10T08:27:14+5:302019-11-10T08:27:14+5:30
यह एक विडंबना है कि इस्लाम को हिंसा और आतंक से जोड़ा जाता है. वर्तमान युग के संदर्भ में देखने से पता चलता है कि इसकी बुनियादी वजह तथाकथित ऐसे लोग हैं जिन्होंने जिहाद को पूर्णत: एक गलत अर्थ देकर इसे हिंसा, अत्याचार और बलात धर्म परिवर्तन से जोड़ दिया.
पवित्र कुरान 10/99 ‘अगर तुम्हारा रब चाहता तो इस धरती पर सारे इंसान एक ही मजहब के होते! तो क्या ऐ मोहम्मद आप किसी पर जबरदस्ती करेंगे इसे मानने के लिए?’ इस आयत में संसार के मालिक ने इंसान को मजहबी आजादी दी जिससे अमन, भाईचारा, शांति का प्रसारण होता है. इस वास्तविकता का अंदाजा अरबी शब्द ईमान से लगाया जा सकता है जो अमन (शांति) के समानार्थी है जो मानवता के लिए मालिक का एक उपहार है.
किसी भी देश में मजहबी आजादी में हस्तक्षेप करने का नतीजा मार-काट, फसाद के ही रूप में सामने आया. कुरान ने अत्याचार, अन्याय, हिंसा, फसाद पर कड़ी सजा का ऐलान किया है. इसलिए कि इंसानी तरक्की की सबसे अहम जरूरत अमन शांति ही है.
यह एक विडंबना है कि इस्लाम को हिंसा और आतंक से जोड़ा जाता है. वर्तमान युग के संदर्भ में देखने से पता चलता है कि इसकी बुनियादी वजह तथाकथित ऐसे लोग हैं जिन्होंने जिहाद को पूर्णत: एक गलत अर्थ देकर इसे हिंसा, अत्याचार और बलात धर्म परिवर्तन से जोड़ दिया.
पवित्र कुरान में मजहबी आजादी हर एक को दी गई है. किसी भी नबी को धर्म परिवर्तन का कार्य नहीं सौंपा गया बल्कि हर नबी को संसार के मालिक का संदेश जिसके तीन बुनियादी उसूल हैं. 1) एकेश्वरवाद 2) कयामत के हिसाब के प्रति चेतना और 3) इस धरती पर इंसानियत की भलाई वाला नैतिक जीवन. यह सादा-सरल संदेश पहुंचाने और उस पर अमल करते हुए दुनिया ए इंसानियत के लिए जीवन जीने का नमूना बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
पूरे कुरान के अध्ययन में जंग की अनुमति केवल अन्याय-अत्याचार के खिलाफ बचाव के लिए दी गई है.
पैगंबर मोहम्मद (स.) ने मक्का में 13 साल तक खुद भी अत्याचार सहन किया और अपने अनुयायियों को भी सहने के लिए प्रेरित करते रहे. अपनी किसी भी शिक्षा में उन्होंने कभी भी शांति को भंग करने की तालीम नहीं दी.
उनके कथन में मिलता है कि ‘ऐ इंसानों! तुम सब आदम की औलाद हो और आदम को मिट्टी से पैदा किया गया.’ यानी सारी इंसानियत एक ही परिवार है और आपस में भाई हैं. और उनके कथन में यह भी मिलता है कि ‘अल्लाह तुम्हारे चेहरों, तुम्हारे माल व दौलत, हैसियत व पद को मद्देनजर रखते हुए तुम्हारे वकार का फैसला नहीं करेगा बल्कि कर्मो और नीयत को परखते हुए फैसला करेगा.’
जरूरत है कि इंसान धार्मिक मतभेदों के फैसले इस दुनिया में न करे और ईश्वर की अदालत के लगने का इंतजार करे और कयामत के पहले कयामत को लागू न करे.