महाराष्ट्र नगर निकाय चुनाव 2025ः ‘ट्रिपल इंजन’ के बाद से आम आदमी की बढ़ती अपेक्षाएं'
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 22, 2025 06:00 IST2025-12-22T06:00:24+5:302025-12-22T06:00:24+5:30
Maharashtra Municipal Elections 2025: रविवार की सुबह आरंभ हुई मतगणना में 286 नगर परिषदों और नगर पंचायतों में से लगभग दो-तिहाई स्थानों पर महागठबंधन का कब्जा हुआ है.

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Maharashtra Municipal Elections 2025: महाराष्ट्र में नगर परिषदों और नगर पंचायत चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक बात जो बहुत जोर देकर कही, वह थी कि जनता एक दिन उनका ध्यान रखे, वह उसका पूरे पांच साल ख्याल रखेंगे. शायद घोषित परिणामों में राज्य के कस्बों के मतदाताओं ने उनके वादे पर भरोसा कर सत्ताधारी महागठबंधन को अच्छी जीत दिला दी है. रविवार की सुबह आरंभ हुई मतगणना में 286 नगर परिषदों और नगर पंचायतों में से लगभग दो-तिहाई स्थानों पर महागठबंधन का कब्जा हुआ है.
अदालती चक्करों के बीच इस बार स्थानीय निकाय चुनाव दो चरण में हुए, जिसमें 263 में 2 दिसंबर और बाकी 23 परिषदों और कई खाली पदों पर शनिवार को मतदान हुआ. साल भर पहले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व में महागठबंधन को बड़ी जीत मिली थी.
जिसके बाद कांग्रेस, शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) शरद पवार गुट के साथ मिलकर बनी महाविकास आघाड़ी ने अगले चुनाव में सत्ताधारी दलों को सबक सिखाने की बात सोची थी. चुनाव से पहले दोनों गठबंधनों के बीच सीधी टक्कर देखने की उम्मीद बनी. मगर महागठबंधन के अंदर दोस्ताना मुकाबले हुए तो बाहर विपक्ष अपनी ताकत को दिखाने में विफल रहा.
उसने चुनाव स्थानीय नेताओं के भरोसे छोड़ दिए. शिवसेना ठाकरे गुट से उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे के अलावा राकांपा पवार गुट से कोई बड़ा नेता या फिर कांग्रेस का नेतृत्व प्रचार में आगे बढ़कर नहीं आया. वहीं, सत्ता पक्ष में मुख्यमंत्री से लेकर उपमुख्यमंत्री और सभी मंत्री, पार्टी अध्यक्ष अपने-अपने मोर्चे पर डटे रहे, जिसका परिणाम सामने है.
हालांकि विपक्ष पूरे चुनाव में आर्थिक लेन-देन के विषय को उठाता रहा. किंतु सत्ता पक्ष ने मुद्दों पर मजबूत संगठनात्मक ताकत के साथ चुनाव लड़ा, जिससे उसे आसान सफलता मिली. परिणामों के बाद चुनावी वादों की फेहरिस्त लेकर विचार संभव नहीं है, लेकिन इसमें कोई दो-राय नहीं है कि शहर, कस्बे और गांव अपनी मूल समस्याओं से ही आज भी जूझ रहे हैं.
हर राज्य में विकास का झुनझुना बड़े शहरों में बजता दिखता है. छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में जहां मुख्य सड़क के बनने के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता है, वहीं महानगरों में ‘मेट्रो ट्रेन’ की इबारत सुनहरे अक्षरों में दर्ज की जाती है. भारत का मूल स्वरूप गांवों में बसता है, लेकिन वह लगातार पलायन करने के लिए मजबूर होता रहता है.
उसे सड़क, बिजली और पानी के संघर्ष में से एक दिन बाहर निकलना पड़ता है. अब यदि केंद्र से लेकर गांव-कस्बे तक एक ही दल की सत्ता होने जा रही है तो आवश्यक विकास के बारे में विचार हो. जमीनी समस्याओं का ठोस हल निकाला जाए. शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर कहानियां वास्तविकता बनें.
वैसे राजनीति में पांच साल चैन से बैठने के लिए पर्याप्त होते हैं. मगर उस अवधि में मतदाता बेचैन ही रहता है. उसी बेचैनी को दूर करने का मुख्यमंत्री फडणवीस ने वादा किया है. आगे अपेक्षा यही है कि मंचों से सुनी गई बातें वास्तविकता में बदलें, जिससे मतदाता को अगले चुनाव का इंतजार न करना पड़े.