महाराष्ट्र सरकार ने 'फ्रैक्चर्ड फ्रीडम' पुस्तक को दिया गया पुरस्कार रद्द कर दिया, साहित्य क्षेत्र की स्वतंत्रता पर हावी हो रही राजनीति!

By विश्वनाथ सचदेव | Published: December 21, 2022 03:03 PM2022-12-21T15:03:09+5:302022-12-21T15:09:27+5:30

देश का जनमानस आज यह तो चाहता है कि पिछड़ों को विकास का समान और पर्याप्त अवसर मिले पर नक्सली हिंसा को यह देश स्वीकार नहीं कर सकता। कोबाड गांधी भी यही कह रहे हैं। उनका मानना है कि अपनी किताब में उन्होंने जेल के अपने अनुभवों की कथा लिखी है, जिन लोगों से वह जेल में मिले उनकी बात समझाने की कोशिश की है।

Maharashtra gov cancels award given to book Fractured Freedom politics is dominating freedom of literary | महाराष्ट्र सरकार ने 'फ्रैक्चर्ड फ्रीडम' पुस्तक को दिया गया पुरस्कार रद्द कर दिया, साहित्य क्षेत्र की स्वतंत्रता पर हावी हो रही राजनीति!

महाराष्ट्र सरकार ने 'फ्रैक्चर्ड फ्रीडम' पुस्तक को दिया गया पुरस्कार रद्द कर दिया, साहित्य क्षेत्र की स्वतंत्रता पर हावी हो रही राजनीति!

लगभग दो साल पहले एक किताब छपी थी अंग्रेजी में 'फ्रैक्चर्ड फ्रीडम'। साल भर पहले कोबाड गांधी की इस पुस्तक का मराठी अनुवाद प्रकाशित हुआ था 'फ्रैक्चर्ड फ्रीडम- तुरुंगात आठवणी व चिंतन'। अनुवाद अनघा लेले ने किया था और मराठी पाठकों ने भी इसे हाथोंहाथ लिया। कुछ ही दिन पहले महाराष्ट्र सरकार ने इस अनुवाद को पुरस्कृत कर पुस्तक को फिर से चर्चा में ला दिया था। लेखक कोबाड गांधी और अनुवादक अनघा लेले, दोनों को खूब बधाइयां मिलीं। फिर अचानक महाराष्ट्र सरकार ने पुस्तक को दिया गया पुरस्कार रद्द करने की घोषणा कर दी। कारण यह बताया गया कि इस पुस्तक में लेखक ने नक्सलियों का महिमामंडन किया है और सरकार इसका समर्थन नहीं कर सकती। अवार्ड रद्द किए जाने की घोषणा के साथ-साथ उस समिति को भी भंग कर दिया गया जिसने पुस्तक को पुरस्कृत करने की सिफारिश की थी।

सवाल यह है कि क्या संबंधित पुस्तक में सचमुच नक्सलवाद का महिमामंडन करके हिंसात्मक गतिविधियों का समर्थन किया गया है। यह सही है कि पुस्तक के लेखक कोबाड गांधी कभी माओवाद से प्रभावित रहे थे। नक्सली हिंसा को बढ़ावा देने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था और 10 वर्ष तक उन्हें जेल में रखा गया था। फिर वे न्यायालय से आरोपमुक्त हुए। जेल से रिहा होने के बाद ही उन्होंने यह पुस्तक लिखी थी और उनका कहना है कि पुस्तक नक्सलवाद की प्रशंसा नहीं, आलोचना करती है। यह भी अपने आप में एक विडंबना ही है कि माओवाद को बढ़ावा देने के जिस आरोप में पुस्तक को दिया गया पुरस्कार वापस लेने की घोषणा की गई है, उसी पुस्तक को लिखने के कारण माओवादियों ने लेखक को अपने संगठन से अलग कर दिया था– उन्हें लगा कि पुस्तक माओवादी आंदोलन को बदनाम करने वाली है।
 
देश का जनमानस आज यह तो चाहता है कि पिछड़ों को विकास का समान और पर्याप्त अवसर मिले पर नक्सली हिंसा को यह देश स्वीकार नहीं कर सकता। कोबाड गांधी भी यही कह रहे हैं। उनका मानना है कि अपनी किताब में उन्होंने जेल के अपने अनुभवों की कथा लिखी है, जिन लोगों से वह जेल में मिले उनकी बात समझाने की कोशिश की है। इस कोशिश को देश विरोधी नहीं समझा जाना चाहिए।

पर यहां मुद्दा साहित्य और अभिव्यक्ति के प्रति सरकार के दृष्टिकोण और रवैये का भी है। महाराष्ट्र में साहित्य सम्मेलनों में राजनेता मंच पर नहीं श्रोताओं के बीच बैठते हैं, बैठाए जाते हैं। सिर्फ सत्ता में होने के कारण उन्हें यह अधिकार नहीं मिल जाता कि वे साहित्य और साहित्यकार के बारे में फरमान जारी कर सकें।

Web Title: Maharashtra gov cancels award given to book Fractured Freedom politics is dominating freedom of literary

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