एम. वेंकैया नायडू का ब्लॉग: एकजुटता ही उबारेगी संकट के इस दौर से
By एम वेंकैया नायडू | Published: April 28, 2020 05:22 PM2020-04-28T17:22:21+5:302020-04-28T17:22:21+5:30
मुझे उम्मीद है कि अपने सामने मौजूद वास्तविक चुनौती को समझकर हम सब एकजुट होंगे और सामूहिक प्रतिबद्धता के साथ काम करेंगे.
आज हम एक गंभीर स्वास्थ्य संकट से गुजर रहे हैं. कोरोना वायरस दुनिया भर में लगातार फैल रहा है. भारत में हम राष्ट्रीय लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग और व्यक्तिगत स्वच्छता के उपायों के जरिये इस चिंताजनक संक्रमण को रोकने की कोशिश कर रहे हैं. सामाजिक व्यवहार के इन नए मानदंडों के पालन का फल मिला है. जहां भी इनका अधिक अनुपालन हुआ है वहां मामलों की संख्या और मृत्यु दर में गिरावट देखने को मिली है.
इसके विपरीत, जहां भी निर्धारित निवारक उपायों में शिथिलता और उल्लंघन देखने को मिला वहां संख्या बढ़ी है. निजामुद्दीन में बड़े जनसमूह के एकत्रीकरण ने नाटकीय अंदाज में इस कठोर अप्रिय सच्चई की ओर पूरे राष्ट्र का ध्यान खींचा है. हालांकि हमें समझना चाहिए कि यह केवल दिखाता है कि अगर हम चेतावनी को अनदेखा करते हैं और उदासीनता बरतते हैं या नकारने की मुद्रा में आ जाते हैं तो क्या हो सकता है.
हमें इस घटना का कोई और मतलब नहीं निकालना चाहिए और ऐसे किन्हीं भी अप्रत्यक्ष पूर्वाग्रहों को व्यक्त नहीं करना चाहिए जो पूरी तरह से अनुचित या अवांछित रूप से किसी समुदाय की ओर उंगली उठाएं. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कुछ समूहों और व्यक्तियों की लापरवाही के कारण पूरे समुदाय को दोषी नहीं ठहराया जा सकता या अपराधी नहीं माना जा सकता.
निस्संदेह, यह हमारे जीवन में बहुत बड़ा व्यवधान है. हमारा सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन त्यौहारों, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से समृद्ध होता है जिसमें हम एक-दूसरे के साथ घुलमिल जाते हैं और इन्हें एक साथ मनाते हैं. सोशल डिस्टेंसिंग मिलनसारिता की भावना और जीवन के सामूहिक उत्सव के विपरीत है. लेकिन हमने इस रास्ते को चुना है और एक बड़ी तबाही से बचने के लिए उन सौम्य अवरोधों को अपनाया है.
यह दर्दनाक है लेकिन जब तक हम कोविड-19 के खिलाफ इस लड़ाई को जीत नहीं लेते, हमें जीवन के इस नए, असंतोषजनक प्रतीत होने वाले तरीके को अपनाना होगा.
इस बीमारी की प्रकृति और बरती जाने वाली सावधानियों को व्यापक रूप से समझना चाहिए. एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा है कि यदि हम संक्रमित व्यक्ति को संदेह और कलंक की भावना से देखने के बजाय इसके लक्षणों वाले व्यक्तियों को जांच कराने के लिए प्रोत्साहित करें तो कोविड-19 से बेहतर तरीके से निपटा जा सकता है. लोगों को, चाहे वे किसी भी सामाजिक स्थिति और धार्मिक मान्यता को मानने वाले हों, आगे आना चाहिए और चिकित्सकीय मदद लेनी चाहिए.
चिकित्सा कर्मियों पर छिटपुट हमलों की विचलित करने वाली प्रवृत्ति, हाल के दिनों में, धब्बा लगाने वाला एक अन्य पहलू है. विशेष रूप से जो अग्रिम मोर्चे पर लड़ रहे हैं और संक्रमित होने के जबर्दस्त जोखिम का सामना कर रहे हैं उनके खिलाफ. ऐसे कई उदाहरण हैं जहां डॉक्टरों, नर्सो, पैरामेडिकल स्टाफ और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ निंदनीय व्यवहार कर उन्हें आवास सुविधाओं से वंचित किया गया और वायरस के वाहक के रूप में गहरे संदेह के साथ देखा गया.
यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है, विशेष रूप से ऐसे देश में जो पारंपरिक रूप से डॉक्टरों के प्रति अत्यधिक सम्मानजक रवैया रखता है. भारत सरकार ने महामारी रोग अधिनियम 1987 में संशोधन करके स्वास्थ्य पेशेवरों के खिलाफ हमले को गैरजमानती अपराध घोषित करके और सात साल तक की सजा का प्रावधान करके बिल्कुल सही किया है. उम्मीद है कि इससे स्वास्थ्य पेशेवरों के खिलाफ आगे हिंसा पर अंकुश लगेगा.
मुझे खुशी है कि बड़े पैमाने पर लोग दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं. सभी धार्मिक नेता हठधर्मिता की स्थिति से दूर जा रहे हैं और वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर पूजा के तरीकों को विनियमित करने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं. हमारे सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन के लिए एक अधिक लचीला, अनुकूलनीय रवैया हमें कोरोना के साथ प्रभावी ढंग से युद्ध जारी रखने में सक्षम बनाएगा. हम तभी जीत सकते हैं जब हम निवारक उपायों को समझदारी, सतर्कता और ठंडे दिमाग से अपनाएंगे.
मुझे खुशी है कि चूंकि हम इस देश में एकजुट रूप से कार्य करते हैं, हम राम नवमी, बैसाखी, ईस्टर और रमजान जैसे त्यौहारों को मनाने के अभ्यस्त हैं. आइए इस वर्ष धार्मिक पवित्रता और धर्मपरायणता की भावना को हम अपने दिलों और घरों में संरक्षित रखें.
मुङो आशा है कि रमजान के इस पवित्र महीने में हम सब अपने घरों में ही रहेंगे और अपने परिवार, अपने साथियों के लिए प्रार्थना करेंगे और उम्मीद रखेंगे कि इस चुनौती को हम जल्दी ही पार कर लेंगे.
कई तरह की चुनौतियां हैं जिनका सामना करने के लिए महामारी ने हमें मजबूर किया है. इसने न केवल हमारे सामाजिक और धार्मिक जीवन को बल्कि हमारी आर्थिक और शैक्षिक गतिविधियों को भी बाधित किया है. हम सामूहिक रूप से इन उभरती चुनौतियों का जवाब ढूंढ़ रहे हैं. केंद्र, राज्य और स्थानीय निकाय कठिनाइयों को कम करने के लिए अच्छी तरह से सोच-विचार कर फैसले ले रहे हैं. फिर भी अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है.
हमें कुछ और दूरी तय करनी है. ॉ
लॉकडाउन लागू होने के बाद से हालांकि मामलों में औसत दैनिक वृद्धि गिर रही है, लेकिन यह अभी भी करीब आठ प्रतिशत की उच्च दर पर है. हम बेपरवाह नहीं हो सकते. हमें उद्देश्यपूर्ण तरीके से डाटा का विश्लेषण करना चाहिए और भविष्य की रणनीति बनाते हुए प्राथमिकता तय करनी चाहिए. इसके साथ ही, आबादी के गरीब और जरूरतमंद वर्गो तक पहुंच बनाने के लिए हमें मानवीय और कल्याणकारी कदम उठाने की जरूरत है.
यह हमारे लिए मिलकर काम करने का अवसर है. संक्रमण को दूर रखने के लिए हमें शारीरिक दूरी बनाए रखनी चाहिए. लेकिन हमें जहां और जब आवश्यक हो, मनुष्य के रूप में करीब आने की जरूरत है. हमारे दिल और दिमाग को एक स्वर में प्रतिक्रिया देनी होगी.
मुझे उम्मीद है कि अपने सामने मौजूद वास्तविक चुनौती को समझकर हम सब एकजुट होंगे और सामूहिक प्रतिबद्धता के साथ काम करेंगे. सभी स्तरों पर एकजुटता और मुस्तैदी हमें वर्तमान बहुआयामी संकट से बेहतर ढंग से निपटने में मदद कर सकती है.