एम. वेंकैया नायडू का ब्लॉगः अनुचित प्रतिबंधों का शिकार होते रहे हैं किसान

By एम वेंकैया नायडू | Published: May 29, 2020 06:31 AM2020-05-29T06:31:36+5:302020-05-29T06:31:36+5:30

किसान भारत की खाद्य सुरक्षा की आधारशिला हैं और उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर इसे सुनिश्चित भी किया है. साथ ही देश को गौरवान्वित किया है. किसानों को हालांकि बदले में उनका हक नहीं मिला है.

M Venkaiah Naidu blog: Farmers have been victims of unfair restrictions | एम. वेंकैया नायडू का ब्लॉगः अनुचित प्रतिबंधों का शिकार होते रहे हैं किसान

उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू का ब्लॉग (फाइल फोटो)

भारत आज विभिन्न कृषि उपजों का एक प्रमुख उत्पादक  और उनमें से कुछ का निर्यातक है. यह विभिन्न बाधाओं से जूझते हुए हमारे किसानों द्वारा किए गए अथक परिश्रम और प्रयासों की वजह से संभव हुआ है. वे कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बीच कृष्ण द्वारा अर्जुन को सिखाए गए ‘निष्काम कर्म’ के दर्शन के प्रतीक हैं; ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’. वे दिन-रात कठिन परिश्रम करते रहते हैं चाहे सर्दी हो या गर्मी, बरसात हो या सूखा और पर्याप्त प्रतिफल मिले या नहीं. लेकिन उनके पास अपने परिश्रम की कीमत तय करने का अधिकार नहीं होता.

किसान दशकों से थोपे गए अनुचित प्रतिबंधों के शिकार

एक किसान के बेटे के रूप में मैं किसानों को अनगिनत तरीकों से होने वाली पीड़ाओं का साक्षी हूं. यदि हमारे देश में आर्थिक रूप से कोई भी वर्ग व्यापार की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार से वंचित रहा है तो वह किसान है. हमारा संविधान हर मौलिक अधिकार पर तर्कसंगत अंकुश लगाता है. लेकिन हमारे किसान दशकों से उन पर थोपे गए अनुचित प्रतिबंधों के शिकार हैं. उन्हें अपने पड़ोस में भी अपनी उपज को बेचने की स्वतंत्नता नहीं है. लाभकारी मूल्य पाना अभी भी उनके लिए एक मृगतृष्णा है. उनकी कृषि आय बाजार, बिचौलियों और साहूकारों की दया पर निर्भर है. किसान जितना भी कमाता है, सप्लाई चेन मेंशामिल लोग उससे कई गुना ज्यादा कमाते हैं.

 किसानों को अपनी उपज बेचने का अधिकार देने की जरूरत

किसानों की विपणन की स्वतंत्नता पर शोषणकारी प्रतिबंधों की जड़ें 1943 के अकाल, उसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध और पिछली सदी में साठ के दशक के सूखे और भोजन की कमी में हैं. आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 और राज्यों का कृषि उपज मंडी समिति अधिनियम किसानों के अपनी पसंद की कीमत पाने के लिए अपनी उपज बेचने के अधिकार को बाधित करने के दो मुख्य स्रोत हैं. ये दोनों कानून किसानों के अपना उत्पाद बेचने के विकल्पों को गंभीर रूप से प्रतिबंधित करते हैं. जाने-माने कृषि वैज्ञानिक और प्रशासक डॉ.एम.एस. स्वामीनाथन लंबे समय से किसानों को अपनी उपज बेचने का अधिकार प्रदान करने की दलील देते रहे हैं.

कृषि उपज के लिए कुशल मूल्य श्रृंखला सुनिश्चित करने के लिए कोल्ड स्टोरेज, भंडारण सुविधाओं और जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के परिवहन जैसी आवश्यक बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने से देश अभी भी कोसों दूर है. अक्सर किसान सड़कों पर अपनी उपज को डम्प करने या मवेशियों को खिलाने के लिए मजबूर होता है.

किसान हमारे देश की खाद्य सुरक्षा की आधारशिला हैं और  उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर इसे सुनिश्चित किया है तथा देश को गौरवान्वित किया है. पीएल 480 के अंतर्गत जहाजों से आने वाले अनाज (विदेशी आयात) पर निर्भरता से लेकर कृषि उपज के प्रमुख उत्पादक होने तक का हमने लंबा सफर तय किया है. लेकिन किसानों को बदले में उनका हक नहीं मिला है. विपणन की स्वतंत्रता पर लगे प्रतिबंधों को हटाने का आश्वासन तो लंबे समय से दिया जाता रहा लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया गया. फिर भी किसानों ने कभी अपना काम नहीं छोड़ा और  राष्ट्र का पेट भरना जारी रखा.

देश में आर्थिक विषमताओं को देखते हुए, उपभोक्ताओं के हितों को संरक्षित करने की आवश्यकता है. लेकिन क्या यह उन वस्तुओं के उत्पादकों की कीमत पर होना चाहिए जिनकी उपभोक्ताओं को आवश्यकता है? विभिन्न कारणों से, इस संबंध में एक संतुलन नहीं बनाया जा सका, जिससे किसान असहाय हो गया.  कृषि मूल्यों के बारे में जारी प्रतिबंधात्मक व्यापार और विपणन नीतियों के कारण किसानों की आय में काफी गिरावट आई है. प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्नी डॉ.अशोक गुलाटी के सहलेखन में भारत में कृषि नीतियों को लेकर आईसीआरआईईआर-ओईसीडी (2018) के एक अध्ययन में चौंकाने वाले खुलासे हुए. इस अध्ययन से सामने आया कि कृषि-विपणन पर प्रतिबंधों के कारण वर्ष 2000-01 से 2016-17 के दौरान किसानों पर अप्रत्यक्ष करों का 45 लाख करोड़ रुपए का अनुमानित भार पड़ा. यह राशि अध्ययन के 17 वर्षो के दौरान 2.56 लाख करोड़ प्रति वर्ष की दर से है. कोई दूसरा देश ऐसा नहीं करता.

कोरोना काल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की पहल

पिछले कुछ वर्षो में किसानों के लिए ‘कुछ करो ना’ की बातें तो होती रही हैं लेकिन किसानों की विपणन स्वतंत्नता पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के बारे में पहली औपचारिक कार्रवाई की घोषणा आखिरकार कोरोना काल में हाल ही में हुई. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था की गतिशीलता को प्रोत्साहन देने के लिए 20 लाख करोड़ रु. के पैकेज की घोषणा की. उसके बाद, वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण ने पैकेज में कृषि और संबद्ध क्षेत्नों को मिलने वाले हिस्से का खुलासा किया.

आवश्यक बुनियादी ढांचे में सुधार और ऋण समर्थन बढ़ाने के उद्देश्य से खेती और संबद्ध क्षेत्नों के लिए 4 लाख करोड़ के सहायता पैकेज के अलावा, इस पैकेज की सबसे स्वागत योग्य विशेषता आवश्यक वस्तु अधिनियम और एपीएमसी कानूनों को फिर से लिखने की दृढ़प्रतिबद्धता है. इन प्रतिबंधात्मक कानूनों में संशोधन का लंबे समय से इंतजार है और इससे किसानों को उनकी उपज के लिए पारिश्रमिक मूल्य प्राप्त करने में आने वाली बाधाओं को दूर कर उन्हें बेचने के लिए और अधिक विकल्प मिल सकेंगे. ऐसा होना निश्चित रूप से किसानों के लिए दूसरी स्वतंत्नता के समान होगा जो सभी बाधाओं और अनिश्चितताओं से जूझते हुए भी देश का पेट भरते हैं. इस बहुप्रतीक्षित संशोधन को अत्यंत सावधानी और जिम्मेदारी के साथ किए जाने की आवश्यकता है ताकि किसानों के दुबारा शोषण के लिए कोई जगह या गुंजाइश न बचे और उनका किसी भी तरीके से गलत फायदा उठाया न उठाया सके.

मुझे याद है कि 1977 में, पूरे देश को ‘वन फूड जोन’ के रूप में घोषित किया गया था और इससे किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ हुआ. समय आ गया है कि हम अपने किसानों को उनके लाभ के लिए कहीं भी अपनी उपज को बेचने की अनुमति दें. वर्तमान कोरोना काल के दौरान, कई लोग घर से काम कर रहे हैं लेकिन किसानों के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि उन्हें केवल अपने खेतों में काम करना है. लॉकडाउन के बावजूद, गेहूं, धान, दलहन आदि की बुवाई पिछले साल की तुलना में बढ़ी है.

हमारे किसान, हमारे देश के गौरव अपनी पसंद की जगह पर अपनी उपज बेचने के लिए लंबे समय से प्रतीक्षित स्वतंत्नता पाने के हकदार हैं. यह जल्द से जल्द एक वास्तविकता बननी चाहिए.

Web Title: M Venkaiah Naidu blog: Farmers have been victims of unfair restrictions

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