लखनऊ शूटआउटः कौन गारंटी लेगा अब ऐसी हत्या नहीं होगी?
By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Published: October 1, 2018 12:20 PM2018-10-01T12:20:43+5:302018-10-01T12:20:43+5:30
सत्ता का एक सच तो ये भी है कि दस कैबिनेट मंत्री और 6 राज्य स्तर के मंत्रियों पर आईपीसी की धाराओं के तहत मामले दर्ज हैं और ऐसा भी नहीं है कि दूसरी तरफ विपक्ष के सत्ता में रहने के दौर में उसके कैबिनेट और राज्य स्तर के मंत्रियों के खिलाफ आईपीसी की आपराधिक धाराएं नहीं थीं।
(पुण्य प्रसून वाजपेयी)
‘न तो हम रुके हुए थे और न ही आपत्तिजनक अवस्था में थे। हमारी ओर से कोई उकसावा नहीं था मगर कांस्टेबल ने गोली चला दी।’ ये लखनऊ की सना खान का बयान है, जो कार में ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठी थी। और ड्राइवर की सीट पर उनका बॉस विवेक तिवारी बैठा हुआ था। दोनों ही एप्पल कंपनी में काम करने वाले प्रोफेशनल्स।
शाम ढलने के बाद अपनी कंपनी के एक कार्यक्रम से रात होने पर निकले तो किसी फिल्मी अंदाज में पुलिस कांस्टेबल ने सामने से आकर सर्विस रिवाल्वर से गोली चली दी, जो कार के शीशे को भेदते हुए विवेक तिवारी के चेहरे के ठीक नीचे ठोढ़ी में जा फंसी। कैसे सामने मौत नाचती है और कैसे पुलिस हत्या कर देती है इसे अपने बॉस की हत्या के 30 घंटे बाद पुलिस की इजाजत मिलने पर सना खान ने कुछ यूं बताया, ‘‘हम कार्यक्र म से निकले और सर ने कहा कि वह मुङो घर छोड़ देंगे।
मकदूमपुर पुलिस पोस्ट के पास बायीं ओर से दो पुलिसवाले कार के बराबर आकर चलने लगे। वे चिल्लाए रुको। मगर सर गाड़ी चलाते रहे क्योंकि रात का समय था। उन्हें मेरी सुरक्षा की चिंता थी। पर तभी इनमें से एक कांस्टेबल बाइक से उतरा और लाठी से गाड़ी पर वार करना शुरू कर दिया।
मगर सर ने कार नहीं रोकी तो दूसरे ने गाड़ी को ओवरटेक किया और 200 मीटर आगे जाने के बाद सड़क के बीच में बाइक रोक दी और हमें रुकने को कहा। हमारी कार कम गति से आगे बढ़ रही थी और फिर गाड़ी रोक दी। तभी कांस्टेबल ने बंदूक निकाली और सामने से सर पर गोली चला दी।’’
उसके बाद जो हुआ वह बताने के लिए सना भी सामने न आ सके इसकी व्यवस्था भी शुरुआती घंटों में पुलिस ने ही की। जब सना को पुलिस ने इजाजत दे दी कि वह बता सकती है कि रात हुआ क्या तो झटके में योगी सिस्टम तार तार हो गया। उसके बाद लगा यही कि किस-किस के घर में जाकर अब पूछा जाए कि उस रात क्या हुआ था जब किसी का बेटा, किसी का पति, किसी का बाप पुलिस एनकाउंटर में मारा जा रहा था।
खाकी वर्दी ये कहने से नहीं हिचक रही थी, अपराधी थे मारे गए। फेहरिस्त वाकई लंबी है जो एनकाउंटर में मारे गए। ये पहली बार हुआ हो ये भी नहीं है। लेकिन पहली बार हत्या करने का लाइसेंस जिस तरह सत्ता ने पुलिस महकमे को यूपी में दे दिया है उसमें एनकाउंटर हत्या हो नहीं सकती और हत्या को एनकाउंटर बताना बेहद आसान हो चला है।
सत्ता का एक सच तो ये भी है कि दस कैबिनेट मंत्री और 6 राज्य स्तर के मंत्रियों पर आईपीसी की धाराओं के तहत मामले दर्ज हैं और ऐसा भी नहीं है कि दूसरी तरफ विपक्ष के सत्ता में रहने के दौर में उसके कैबिनेट और राज्य स्तर के मंत्रियों के खिलाफ आईपीसी की आपराधिक धाराएं नहीं थीं।
डेढ़ दर्जन मंत्री तब भी खूनी दाग लिए सत्ता में थे। तो फिर हत्या करने वाले पुलिसकर्मी का मामला अदालत में जाए या फिर पूरे मामले को सीबीआई को सौंप दिया जाए। अपराधी होगा कौन? सजा मिलेगी किसे और कौन गारंटी लेगा कि अब इस तरह की हत्या नहीं होगी।