ब्लॉग: लोकनायक जयप्रकाश और उनका गांव...आज भी वही हाल
By कृष्ण प्रताप सिंह | Published: October 11, 2022 03:18 PM2022-10-11T15:18:21+5:302022-10-11T15:18:21+5:30
लोकनायक जयप्रकाश के गांव की हर साल नदियों के उफनाने पर बाढ़ व कटान के कहर से काल के गाल में समा जाने के अंदेशों और उससे बचाव के उपायों से दो-चार होना ही नियति रही है.
‘कहते हैं उसको जयप्रकाश जो नहीं मरण से डरता है/ज्वाला को बुझते देख, कुंड में स्वयं कूद जो पड़ता है/हां जयप्रकाश है नाम समय की करवट का, अंगड़ाई का/भूचाल, बवंडर, के दावों से भरी हुई तरुणाई का/है जयप्रकाश वह नाम जिसे इतिहास समादर देता है/बढ़कर जिनके पदचिह्नों को उर पर अंकित कर लेता है.’
लोकनायक कहें या ‘सप्तक्रांति’ और ‘दूसरी आजादी’ के सूत्रधार जयप्रकाश नारायण (जेपी) द्वारा 1979 में आठ अक्तूबर को पटना में इस संसार को अलविदा कह जाने के बाद भी, अभी हाल के दशकों तक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की ये पंक्तियां (जो उन्होंने 1946 में जेपी की जेल से रिहाई के अवसर पर रची थीं) देशवासियों को भूली नहीं थीं. तब उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर स्थित और दोनों राज्यों में विभाजित उनका गांव सिताबदियारा उनके अनुयायियों व समर्थकों का ही नहीं, राजनेताओं का भी तीर्थस्थल हुआ करता था.
उनकी जयंती या कि पुण्यतिथि पर वहां आयोजित समारोहों की सरगर्मियां महीनों पहले शुरू होकर लोगों की चेतना को प्रभावित करने लग जाती थीं. लेकिन अब लगता है कि ज्यादातर नेताओं ने मान लिया है कि जब उन्हें जेपी की दिखाई राह पर चलना ही नहीं है तो उनकी जन्मस्थली की राह ही क्यों पकड़नी?
प्रायः हर साल नदियों के उफनाने पर बाढ़ व कटान के कहर से काल के गाल में समा जाने के अंदेशों और उससे बचाव के उपायों से दो-चार होना इसकी नियति रही है. यहां नेताओं ने कभी दावा किया था कि ग्रामवासी जल्दी ही अपनी सारी समस्याओं से निजात पाकर विकास के सुखसागर में गोते लगाने लगेंगे, लेकिन गांव के लोग कहते हैं कि उन दावों का हाल कमोबेश वैसा ही है, जैसा 1977 में जनता पार्टी के नेताओं द्वारा महात्मा गांधी की समाधि पर ली गई शपथ का हुआ था.