ब्लॉग: हर हाल में भाषा की मर्यादा और शालीनता बनी रहे

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 24, 2024 09:38 AM2024-05-24T09:38:02+5:302024-05-24T09:38:05+5:30

मुद्दों और तर्कों के आधार पर विरोधी बयान देना गलत नहीं है लेकिन अभद्रता को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

Lok Sabha Election 2024 all circumstances dignity and decency of language should be maintained | ब्लॉग: हर हाल में भाषा की मर्यादा और शालीनता बनी रहे

ब्लॉग: हर हाल में भाषा की मर्यादा और शालीनता बनी रहे

चुनाव आयोग ने भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर दिशानिर्देश दिए हैं। आयोग ने दोनों अध्यक्षों से अपनी पार्टी के स्टार प्रचारकों को बयानों में मर्यादा बनाए रखने के लिए औपचारिक नोटिस जारी करने को कहा है। आयोग ने कहा है कि स्टार प्रचारकों के बयान दायरे में होने चाहिए और उनमें ऐसी बातें नहीं होनी चाहिए जिसका चुनावों के बाद समाज पर बुरा प्रभाव पड़े।

मतदाताओं को आकर्षित एवं अपने पक्ष में करने के फेर में राजनीति को रसातल में धकेलने की मानो होड़ मची हुई है। तत्काल चुनावी लाभ के लिए मर्यादा को तार-तार करने वाले इन नेताओं को आत्म-चिंतन की सख्त जरूरत है। चुनावी रैलियों में जनता के सामने अपने प्रतिद्वंद्वी को नीचा दिखाने के मकसद से ये नेता मर्यादा, शालीनता और नैतिकता की रेखाएं पार करते नजर आते हैं।

गलत का विरोध खुलकर हो, राष्ट्र-निर्माण के लिए अपनी बात कही जाए, अपने चुनावी मुद्दों को भी प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जाए, लेकिन गलत, उच्छृंखल और अनुशासनहीन बयानों की राजनीति से बचना चाहिए। नेताओं को यह बात समझनी चाहिए कि सही तरीके से बोले गए शब्दों में लोगों को जोड़ने की ताकत होती है, जबकि गलत भाषा का इस्तेमाल राजनीतिक धरातल को कमजोर करता है।

राजनीति में शालीनता, शुचिता और मर्यादा जरूरी है लेकिन देखा जा रहा है कि नेता विरोधी दलों पर प्रहार करते वक्त सब कुछ भुला देते हैं। लोकतंत्र में सहमति और असहमति एक आवश्यक प्रक्रिया है। लेकिन यदि असहमत होते हुए कोई नेता अपने विरोधी पक्ष के नेता के विरुद्ध अप्रिय या अभद्र लहजे का प्रयोग करता है, तो यह राजनीति में गिरावट का ही संकेत है। ऐसे में स्वस्थ बहस की गुंजाइश ही नहीं रह जाती। मुद्दों और तर्कों के आधार पर विरोधी बयान देना गलत नहीं है लेकिन अभद्रता को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। खासतौर पर चुनावी माहौल में देखा जाता है कि नेतागण न तो व्यक्तिगत स्तर पर अपने शब्दों के प्रयोग पर सावधानी बरतते हैं, न ही चुनाव संबंधी आचार संहिता का सम्मान करते हैं।

अपनी बात कह देने के बाद जब विवाद उभरता है तो ये नेतागण या उनका समर्थन करने वाली पार्टियां यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश करती हैं कि उनके बयान का सही अर्थ नहीं निकाला गया या उनकी बात को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया। सवाल यह है कि आखिर ऐसा कोई बयान दिया ही क्यों जाता है जिससे अर्थ का अनर्थ होता है और माफी मांगने की नौबत आती है? यह स्थिति न केवल पार्टी के आम नेताओं के साथ आती है, बल्कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की जुबान भी बहक जाती है।

आमतौर पर चुनाव आयोग भी बदजुबान नेताओं या उनकी पार्टी के विरुद्ध कोई कड़ा संदेश देता नजर नहीं आता। चाहे सत्ता पक्ष हो या विरोधी दल के नेता, सभी को अपनी व्यक्तिगत और पार्टीगत गरिमा का ध्यान रखना ही चाहिए। नेताओं को हर हाल में भाषा की मर्यादा और शालीनता को बनाए रखना चाहिए।

Web Title: Lok Sabha Election 2024 all circumstances dignity and decency of language should be maintained