शरद जोशी का ब्लॉग: चुनावी मनोवृत्ति और रचनात्मक कार्यक्रम
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 10, 2019 09:11 PM2019-03-10T21:11:30+5:302019-03-10T21:11:30+5:30
केसकर साहब फरमाते हैं कि कांग्रेसजन चुनाव मनोवृत्ति त्यागें और रचनात्मक कार्यक्रम में लगें. बात केवल कांग्रेस के लिए ही नहीं, समस्त पार्टियों के लिए है. परंतु इस संसार में रचनात्मक कार्यकर्ता तो केवल परमेश्वर है.
चुनाव सबसे बड़ा भय है. चुनाव जीवन है. चुनाव मृत्यु है. चुनाव प्रजातंत्र की धड़कनें हैं. चुनाव कुंभ पर्व है, सिंहस्थ है, चुनाव प्रलय है. यह सबसे बड़ी जिज्ञासा है. अत: राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए चुनाव सर्वप्रथम है, चुनाव ही द्वितीय है और चुनाव ही अंत है. वह उनकी मनोवृत्ति में है. आत्मा-वोटों की बहार से उनका नंदनवन कायम होता है. और अगर वोट-पत्ते न फूटे तो वे पतझड़ के कौवे से अधिक कुछ नहीं होते.
केसकर साहब फरमाते हैं कि कांग्रेसजन चुनाव मनोवृत्ति त्यागें और रचनात्मक कार्यक्रम में लगें. बात केवल कांग्रेस के लिए ही नहीं, समस्त पार्टियों के लिए है. परंतु इस संसार में रचनात्मक कार्यकर्ता तो केवल परमेश्वर है. मानवता तो केवल उसका ही निमित्त मात्र है और मानव में भी नेता तो आप जानिए कि मानव से भी ऊपर होकर रहता है.
मधुमक्खियों में रानी मक्खी सृजन में व्यस्त रहती है और शेष सब ऐसा नहीं करते. पर मनुष्यों में, केवल रानी मक्खी कोई भी सृजनात्मक प्रयत्न नहीं करती. और फिर रचनात्मक कार्यक्रम और चुनाव के बीच कोई एक चीज चुनी जाए, वह भी असंभव है. क्योंकि चुनाव रचनात्मक कार्यक्रम के लिए हैं और रचनात्मक कार्यक्रम चुनाव के लिए हैं. अधिक वृक्ष उपजाना इस कारण आवश्यक है कि अधिक वोट फलें-फूलें. और चुनाव क्यों लड़े; इसी कारण घोषणा होती है कि रचनात्मक कार्यक्रम कर सकें. अत: चुनाव ही सबसे बड़ा रचनात्मक कार्यक्रम है.
आपने राह चलते में कभी ऐसे कार्यकर्ता देखे होंगे, जो योग्य हैं पर चुने नहीं गए, अत: अयोग्य हैं. सड़क पर घूम रहे हैं. और आपने मोटरों में जाते हुए ऐसे व्यक्तियों को देखा होगा, जो अयोग्य हैं पर चूंकि चुने गए हैं, इस कारण से योग्य हैं. कारों में घूम रहे हैं. चुनाव सबसे बड़ा सर्टिफिकेट है, चुनाव सबसे बड़ी ठोकर है. और रचनात्मक कार्यक्रम से दो बातें सधती हैं : एक तो चुनाव और दूसरी देशसेवा. पर कई विनाशात्मक, तोड़-फोड़ प्रतिभाएं भी देश में होती हैं, जो चुनाव के लिए ही सब कुछ कर सकें. रचनात्मक कार्यक्रम तो अंग्रेजी राज में भी होते थे. तब भी सड़कें बनती थीं और तब रेलें चलती थीं; खेत जोते जाते थे; बहार आती थी, मशीनें धड़कती थीं. फिर आजादी की लड़ाई क्यों लड़ी गई? चुनाव के लिए.
ये इतनी सारी पार्टियां, झंडे, कार्यकर्ता, अखबार, सभाएं, चर्चाएं, भ्रमण- आप समझते हैं, रचनात्मक कार्य हैं? सांस्कृतिक कार्य हैं? इन सबके पीछे एक चुनाव है. इन सबके सामने एक चुनाव है. चुनाव में विजय की आशा वह फूंक है जो गुब्बारे को पहाड़ बना देती है और सागर को लोटा. आज प्रत्येक पांच साल में होनेवाले चक्रवर्ती यज्ञ के लिए ही ये रोज तैयारियां की जाती हैं