शरद जोशी का ब्लॉग: डबल सवारी दर्शन का सुख

By शरद जोशी | Published: November 16, 2019 11:00 AM2019-11-16T11:00:38+5:302019-11-16T11:00:38+5:30

डबल सवारी के पीछे जो मूल भावना है-वही वह कुंजी भी है, वह दार्शनिक तत्व भी है जिसे विकसित रूप में हम अपनी मूलभूत समस्याओं को निपटाने के लिए आवश्यक मानते हैं.

law is falling victim to such a big misunderstanding in Indian society | शरद जोशी का ब्लॉग: डबल सवारी दर्शन का सुख

शरद जोशी का ब्लॉग: डबल सवारी दर्शन का सुख

रास्ते में आते-जाते कभी किसी को डबल चलाते देखता हूं तो हृदय प्रसन्न हो जाता है. आत्मा गद्गद् हो जाती है. मानवी प्रेम के इस छोटे से प्रतीक को देख श्रद्धा से सिर झुका लेने को जी चाहता है. सुनता हूं कि पुलिसवालों के सामने डबलवालों को सिंगल हो जाना पड़ता है. कानून का सम्मान आवश्यक होता है. प्रेम और पुलिस, इन दो शब्दों में कहां मेल बैठ सकता है.

पर भारत के आदर्श भावी समाज के मूल में जो दर्शन है, हम यदि उस पर गंभीरतापूर्वक विचार करें तो हम समझ पाएंगे कि वास्तव में कानून कितनी बड़ी गलतफहमी का शिकार हो रहा है.

आज हम यह नहीं चाहते कि जिसके पास दो कारें हों, उसकी एक कार छीनकर उसे  दे दें, जिसे कार की अत्यंत आवश्यकता है. नहीं, इसमें हिंसा होगी, जो हमारा लक्ष्य नहीं. यदि हम कार लेंगे तो मुआवजा देकर लेंगे; या चाहे तो स्वयं मालिक हृदय परिवर्तन के कारण कार दे दे. आदर्श यही है कि स्वयं मालिक रहकर भी वह अपनी कार को समाज में लगाए.

ठीक इसी तरह साइकिल की बात है. जिसके पास दो साइकिलें हैं, उससे एक साइकिल छीनकर दूसरे को देना गलत है. समाज का आदर्श यह होना चाहिए कि हमारे पास यदि एक गाय है तो अकेले ही दुहकर नहीं पिएं, दूसरों को भी दूध दें.यदि हमारे पास साइकिल है और जा रहे हैं, तो मानवता इसमें है कि यदि हमारा पड़ोसी या मित्र कोई पैर-पैर जा रहा हो तो उसे भी स्थान दें, अपने साथ डबल ले चलें.

जब आपके पैरों में शक्ति है तथा आपकी साइकिल सक्षम है तो दूसरों के हित में श्रमदान करना आवश्यक है. यह नि:स्वार्थ भावना के द्वारा ही संभव है. इसमें आपको थोड़ा कष्ट होगा पर निश्चय ही उस व्यक्ति तथा समाज को लाभ पहुंचेगा. क्योंकि दूसरे व्यक्ति की गति बढ़ने से समाज के कार्य की गति थोड़ी ही बढ़ी है. और आपका श्रम, परहित में सेवा से, उस बढ़ती हुई गति का परोक्ष रूप से कारण है.

अत: डबल सवारी के पीछे जो मूल भावना है-वही वह कुंजी भी है, वह दार्शनिक तत्व भी है जिसे विकसित रूप में हम अपनी मूलभूत समस्याओं को निपटाने के लिए आवश्यक मानते हैं. कानून की बात छोड़िए. सेवा में भावना होती है, वह कानून की ओर नहीं देखती.और यदि माना जाए कि डबल सवारी से टक्कर का भय रहता है, तो यह गलत है. डबल सवारी से गति क्षीण होती है, टक्कर तो तेज जाने से होती है.

Web Title: law is falling victim to such a big misunderstanding in Indian society

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे