JNU के छात्रों पर बरसी ये लाठी समाजवाद पर चोट है

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: March 25, 2018 11:46 AM2018-03-25T11:46:20+5:302018-03-25T11:46:20+5:30

ये अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा नहीं है जिसने इसे पार्टी विद डिफ़रेंस और भारतीय संविधान में पूर्ण आस्था रखने वाली मध्यमार्गी दक्षिणपंथी पार्टी के बतौर परिभाषित किया था।

The lathi charge on JNU students is a strike on socialism | JNU के छात्रों पर बरसी ये लाठी समाजवाद पर चोट है

JNU के छात्रों पर बरसी ये लाठी समाजवाद पर चोट है

 यह ब्लॉग अंकित दूबे का है। अंकित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं।

फ़्रांसीसी लेखक मिलान कुंदेरा ने सत्ता के ख़िलाफ़ आदमी के संघर्ष को 'भूलने के ख़िलाफ़ याद रखने का संघर्ष' बताया था। ऐसे में जेएनयू वह लड़ाई लड़ रहा है जिसे देश का एक बड़ा वर्ग कहीं न कहीं भूल चुका है।

कुछ दिनों पहले की बात है। सरकार ने अपने मंत्रालयों और विभागों से पांच साल से खाली पदों की सूची बनाने को कहा। इन्हें भरने के लिए नहीं बल्कि इन्हें समाप्त ही कर देने के उद्देश्य से। दूसरी ओर प्रधानमंत्री ने कहा कि अब विरोध प्रदर्शन इत्यादि अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। ये बात ऐसे समय में जब कुछ महीने पहले तमिलनाडु के सैकड़ों किसानों ने अपनी मांगों को रखने के लिए जन्तर-मंतर पर हफ़्तों डेरा डाला। और ऐसे समय में भी जब विदर्भ-मराठवाड़ा के हजारों किसानों हाथों में लाल झण्डा थामे मुम्बई की सड़कों को जाम कर दिया।

23 मार्च को क्या हुआ और क्यों हुआ

ठीक इन्हीं दिनों 23 मार्च की दोपहर जेएनयू के शिक्षकों ने अपने छात्रों के साथ कैम्पस से संसद तक का मार्च निकाला। हाथों में प्लेकार्ड लिए ये लोग जैसे ही आईएनए पहुँचे, पुलिस ने आगे का रास्ता बन्द कर दिया। लोगों ने बैरिकेड हटाने की कोशिश की और फिर 'शांति, सेवा,न्याय' के आदर्श वाक्य वाली दिल्ली पुलिस उनके ऊपर टूट पड़ी।

विरोध प्रदर्शनों का दौर समाप्त मान चुके पीएम की ख़ुशफहमी को ख़ुश करने के लिए उन उपायों का सहारा लिया, सभ्य होते समाज की ओर कदम बढ़ाते हुए जिन्हें हमने अब स्कूलों और जेलों में प्रतिबंधित कर दिया है। लोग बुरी तरह से पीटे गए। वे लोग जो चोर पकड़ने पर उसे पिटाई की बजाए रात भर जग कर उन परिस्थितियों पर डिबेट करते हैं जिनमें कोई आदमी चोर बन जाता है। स्वाभाविक ही सोशल मीडिया तस्वीरों से भर गई। पुलिसिया बर्बरता की निंदा हुई और विचारधाराओं के लिए अनपेड सर्वेंट बनने वाले दौर में, कुछ भी कह देने को आज़ाद लोगों द्वारा इसका स्वागत भी हुआ। हिंसा के उस कृत्य का जो एक सभ्य समाज में कहीं से स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।

वो मांगे जिनके लिए निकाला गए था मार्च

मांगें क्या थीं ज़रा ये सुनिए। ये लोग पीएम के इस्तीफे की बात नहीं कर रहे थे और ना ही सरकार को अस्थिर ही करने वाले थे। मांगें थीं यौन शोषण के आरोपी प्रोफेसर अतुल जौहरी के निलंबन सहित सीट कट, यूजीसी नोटिफिकेशन और हाल में मिली स्वायत्ता को वापस लेने की। चाहे जिस विचारधारा के लोग ये सब मांग रहे हों, लोकतंत्र में उसे सुना जाना चाहिए था। मगर शिक्षा के पूर्णतः निजीकरण को समर्पित सरकार अपने एजेंडे को लागू करने को पूर्णतः प्रतिबद्ध है। अपने इन विचारों को लेकर उतनी प्रतिबद्ध भी जितनी एक पूर्ण बहुमत की सरकार देते हुए जनता उम्मीद करती है। ये अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा नहीं है जिसने इसे पार्टी विद डिफ़रेंस और भारतीय संविधान में पूर्ण आस्था रखने वाली मध्यमार्गी दक्षिणपंथी पार्टी के बतौर परिभाषित किया था। ये 'मिनिमम गवर्मेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस' के नारे के साथ आए लोग हैं जो शिक्षा-चिकित्सा जैसे झंझटों से हाथ खींच लेना चाहते हैं। चाहे बाद में ही जोड़ा गया हो मगर संविधान के समाजवाद शब्द को नहीं मानने वाला रुख दिखा चुके हैं।

छात्रों पर पड़ी ये लाठी समाजवाद पर चोट है

ये लाठी समाजवाद पर चोट है। आज़ादी के बाद से अबतक अपनाई गई उन नीतियों पर बर्बर हमला है जो गवर्मेंट फंडेड एजुकेशन की बात करती थी। देश के तमाम विश्वविद्यालय जहाँ पद खाली रह जाना, क्लास नहीं चलना और छात्रों का कोई संगठन नहीं होने को स्वीकार चुके हैं ऐसे दौर की अंतिम बड़ी आवाज़ जेएनयू ही बचा है जो अब भी उन मूल्यों की हिमायत करता है जिसमें करदाताओं की गाढ़ी कमाई के कुछ सौ करोड़ के सालाना बजट से हर साल वंचित तबके से आने वाले कुछ हजार विद्यार्थी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लेकर गरिमापूर्ण जीवन की ओर बढ़ सके।

उस देश में कुछ सौ करोड़ सालाना इतने भी महंगे नहीं जहां बारह हज़ार करोड़ तो कभी बाईस हजार करोड़ का घपला आराम से हो जाने दिया जाता है। बहुत सी मांगों को नहीं मानने वाली सरकार इस मांग का कितना नोटिस लेगी ये कहा नहीं जा सकता। हमारा सियासी रुझान चाहे जो भी हो मगर इस देश के नागरिक के रूप में हमें लाठी की इस चोट को याद ज़रूर रखना चाहिए। इसलिए नहीं कि ये जेएनयू पर हुआ है बल्कि इसलिए क्योंकि सरकारी कोष से उच्च शिक्षा की माँग करने वाली आख़िरी आवाज़ पर हुआ है....

-अंकित दूबे
पूर्व छात्र, भाषा साहित्य एवम संस्कृति अध्ययन संस्थान
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

Web Title: The lathi charge on JNU students is a strike on socialism

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