ब्लॉगः पूर्वोत्तर राज्यों में खतरा बनता जा रहा जमीन कटाव, मणिपुर में 6 साल के भीतर भूस्खलन की 20 बड़ी घटनाएं

By पंकज चतुर्वेदी | Published: July 7, 2022 12:54 PM2022-07-07T12:54:39+5:302022-07-07T12:59:44+5:30

भूस्खलन और नदी के किनारे मिट्टी का कटाव पूर्वोत्तर राज्यों के लिए भयानक है। सदियों पहले नदियों के साथ बहकर आई मिट्टी से निर्मित असम राज्य अब इन्ही व्यापक जल-श्रृंखलाओं के जाल में फंसकर बाढ़ व भूमि कटाव के श्राप से ग्रस्त है।

Land erosion becoming a threat in Northeast states 20 major landslides in Manipur within 6 years | ब्लॉगः पूर्वोत्तर राज्यों में खतरा बनता जा रहा जमीन कटाव, मणिपुर में 6 साल के भीतर भूस्खलन की 20 बड़ी घटनाएं

ब्लॉगः पूर्वोत्तर राज्यों में खतरा बनता जा रहा जमीन कटाव, मणिपुर में 6 साल के भीतर भूस्खलन की 20 बड़ी घटनाएं

30 जून की रात मणिपुर के नोनी जिले के रेलवे निर्माण स्थल पर कहर बन कर आई। एक संरचना पहाड़ से टूट कर कोई 300 फुट नीचे गिरी और पूर्वोत्तर राज्यों को आसियान देशों से सीधे जोड़ने के इरादे से बन रही 111 किमी लंबी रेल लाइन के जरीबार-तुपुल निर्माण कैंप को निगल गई। यह किसी से छुपा नहीं है कि मणिपुर के लोग इस परियोजना से खुश नहीं हैं। वहां जमकर जंगल तो कटे ही, हिमालय रेंज के पहाड़ों के बेतरतीब काटने के संभावित खतरों पर कोई अध्ययन भी नहीं हुआ। सनद रहे कि सन् 2014 से 2020 के बीच  मणिपुर में भूस्खलन की 20 बड़ी घटनाएं हुई हैं। असल में  समूचा पूर्वोत्तर एक तरफ हिमालय पर्वतमाला से आच्छादित है तो उसकी भूमि ब्रह्मपुत्र-बराक नदी तंत्र से बहकर आई मिट्टी से निर्मित है। वहां की नदी धारा या नदी में जल आगम मार्ग में थोड़ा भी व्यवधान होता है तो बड़ी आपदा आती है।

जिस जगह पर यह भयावह हादसा हुआ, वहां पहाड़ों से नीचे उतर कर इजेई नदी आती है। यह इरांग नदी की सहायक है और नगा बाहुल्य जिलों - सेनापति, तमेंगलांग और नाने में बहती है और यहां के लोगों के जीवन का आधार है। यह नदी आगे चलकर बराक में मिल जाती है। लगातार निर्माण, सुरंग बनाने के लिए भारी मशीनों के इस्तेमाल से इस नदी के नैसर्गिक जल प्रवाह में व्यवधान आया और इसी के चलते उस घाटी पर मिट्टी की पकड़ कमजोर हुई जिसके आंचल तले रेलवे स्टेशन निर्माण का कैंप लगा था। वैसे भी बीते एक महीने के दौरान कई बार ऐसा हुआ कि त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर और दक्षिणी असम का बड़ा हिस्सा देश से सड़क मार्ग से पूरी तरह कटा रहा, क्योंकि  राष्ट्रीय राजमार्ग-6,  मेघालय के पूर्वी जयंतिया जिले में जमीन कटाव से नष्ट हो गया था।

भूस्खलन और नदी के किनारे मिट्टी का कटाव पूर्वोत्तर राज्यों के लिए भयानक है। सदियों पहले नदियों के साथ बहकर आई मिट्टी से निर्मित असम राज्य अब इन्ही व्यापक जल-श्रृंखलाओं के जाल में फंसकर बाढ़ व भूमि कटाव के श्राप से ग्रस्त है। ब्रह्मपुत्र और बराक व उनकी कोई 50 सहायक नदियों का द्रुत बहाव पूर्वाेत्तर भारत में अपने किनारों की बस्तियों-खेत को उजाड़ रहा है। बरसात होते ही कहीं तेज धार जमीन को खा रही है तो कहीं धार के दबाव से पहाड़ कट रहे हैं।

राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के आंकड़े बताते हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों में हर साल बाढ़ का दायरा विस्तारित हो रहा है और इसमें सर्वाधिक खतरनाक है नदियों द्वारा अपने ही तटों को खा जाना। गत छह दशक के दौरान अकेले असम राज्य की 4.27 लाख हेक्टेयर जमीन कट कर पानी में बह चुकी है जो कि राज्य के कुल क्षेत्रफल का 7.40 प्रतिशत है।

वर्ष 1912-28 के दौरान जब ब्रह्मपुत्र नदी का अध्ययन किया गया था तो यह कोई 3870 वर्ग किमी के क्षेत्र से गुजरती थी। सन 2006 में किए गए इसी तरह के अध्ययन से पता चला कि नदी का भूमि छूने का क्षेत्र 57 प्रतिशत बढ़ कर 6080 वर्ग किमी हो गया। वैसे तो नदी की औसत चौड़ाई 5.46 किमी है लेकिन कटाव के चलते कई जगह ब्रह्मपुत्र का पाट 15 किमी तक चौड़ा हो गया है। सन 2010 से 2015 के बीच नदी के बहाव में 880 गांव पूरी तरह बह गए, जबकि 67 गांव आंशिक रूप से प्रभावित हुए। असम की लगभग 25 लाख आबादी ऐसे गांवों में रहती है जहां हर साल नदी उनके घर के करीब आ रही है। ऐसे इलाकों को यहां ‘चार’ कहते हैं। इनमें से कई नदियों के बीच के द्वीप भी हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि पूर्वोत्तर की भौगोलिक स्थिति जटिल हैं। चीन ने तो ब्रह्मपुत्र पर कई विशाल बांध बनाए हैं। इन बांधों में जब कभी जल का भराव पर्याप्त हो जता है तो पानी को अनियमित तरीके से छोड़ दिया जाता है। एक तो नदियों का अपना बहाव और फिर साथ में बांध से छोड़ा गया जल, इनकी गति बहुत तेज होती है और इससे जमीन कटाव होना ही है।

आज जरूरत है कि पूर्वोत्तर की नदियों में ड्रेजिंग के जरिये गहराई को बढ़ाया जाए। इसके किनारे पर सघन वन लगे और रेत उत्खनन पर रोक लगे। अमेरिका की मिसीसिपी नदी भी कभी ऐसे ही भूमि कटाव करती थी। वहां 1989 में तटबंध को अलग तरीके से बनाया गया और उसके साथ खेती के प्रयोग किए गए। आज वहां नदी-कटाव पूरी तरह नियंत्रित है।

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