ललित गर्ग का ब्लॉग: बच्चों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति चिंताजनक
By ललित गर्ग | Updated: August 24, 2024 10:15 IST2024-08-24T10:13:59+5:302024-08-24T10:15:01+5:30
बड़ा सवाल है कि जिन वजहों से बच्चों के भीतर आक्रामकता एवं हिंसा पैदा हो रही है, उससे निपटने के लिए क्या किया जा रहा है! जरूरत इस बात की है कि बच्चों के भीतर बढ़ती हिंसा और आक्रामकता के कारणों को दूर करने को लेकर गंभीर काम किया जाए.

बच्चों में बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति चिंताजनक है
भारतीय बच्चों में बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति चिंताजनक है. पिछले कुछ समय से स्कूली बच्चों में बढ़ती हिंसा की प्रवृत्ति निश्चित रूप से डरावनी है. जिस उम्र में बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास की नींव रखी जाती है, उसी उम्र में कई बच्चों में आक्रामकता घर करने लगी है और उनका व्यवहार हिंसक होता जा रहा है.
जिस उम्र में बच्चों को पढ़ाई-लिखाई और खेलकूद में व्यस्त रहना चाहिए, उसमें उनमें बढ़ती आक्रामकता, हिंसा एवं क्रूरता एक अस्वाभाविक और परेशान करने वाली बात है. कई घटनाओं में स्कूल में पढ़ने वाले किसी बच्चे ने अपने सहपाठी पर चाकू या किसी घातक हथियार से हमला कर दिया और उसकी जान ले ली.
अमेरिका की तर्ज पर भारत के बच्चों में हिंसक मानसिकता का पनपना हमारी शिक्षा, पारिवारिक एवं सामाजिक संरचना पर कई सवाल खड़े करता है. यह दुष्प्रवृत्ति बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन पर तो नकारात्मक प्रभाव डाल ही रही है, इसे भविष्य में समाज की शांति के लिए बड़ा खतरा भी मानना चाहिए. राजस्थान के उदयपुर के स्कूल में दो छात्रों के आपसी विवाद में चाकू मारने से एक छात्र की मौत भी बच्चों में पनप रहे इसी हिंसक बर्ताव का घिनौना एवं घातक रूप है.
बड़ा सवाल है कि जिन वजहों से बच्चों के भीतर आक्रामकता एवं हिंसा पैदा हो रही है, उससे निपटने के लिए क्या किया जा रहा है! पाठ्यक्रमों का स्वरूप, पढ़ाई-लिखाई के तौर-तरीके, बच्चों के साथ घर से लेकर स्कूलों में हो रहा व्यवहार, उनकी रोजमर्रा की गतिविधियों का दायरा, संगति, सोशल मीडिया या टीवी से लेकर उसकी सोच-समझ को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों से तैयार होने वाली उनकी मनःस्थितियों के बारे में सरकार, समाजकर्मी एवं अभिभावक क्या समाधान खोज रहे हैं? बच्चों के व्यवहार और उनके भीतर घर करती प्रवृत्तियों पर मनोवैज्ञानिक पहलू से विचार किए बिना समस्या को कैसे दूर किया जा सकेगा?
बच्चों के बस्ते की औचक जांच की व्यवस्था की अपनी अहमियत हो सकती है. मगर जरूरत इस बात की है कि बच्चों के भीतर बढ़ती हिंसा और आक्रामकता के कारणों को दूर करने को लेकर गंभीर काम किया जाए. उदयपुर की घटना के पूरे मामले की पुलिस अपने तरीके से जांच करेगी, लेकिन किशोर अवस्था में ऐसी घटना को अंजाम देने के पीछे बच्चे की मानसिकता का पता लगाना भी ज्यादा जरूरी है.