विजय दर्डा का ब्लॉग: केवल नाम बदलने से क्या होगा, सूरत बदलिए!

By विजय दर्डा | Published: November 12, 2018 05:31 AM2018-11-12T05:31:43+5:302018-11-12T07:44:12+5:30

आजादी के ठीक बाद जिन शहरों के नाम बदलने की जरूरत महसूस की गई उनमें जबलपुर संभवत: पहला शहर था

Just change the name, change the look! | विजय दर्डा का ब्लॉग: केवल नाम बदलने से क्या होगा, सूरत बदलिए!

विजय दर्डा का ब्लॉग: केवल नाम बदलने से क्या होगा, सूरत बदलिए!

आजादी के ठीक बाद जिन शहरों के नाम बदलने की जरूरत महसूस की गई उनमें जबलपुर संभवत: पहला शहर था. अंग्रेज उस शहर को अंग्रेजी उच्चरण के अनुरूप जुब्बोलपोर कहते थे. निश्चय ही किसी भारतीय के लिए यह उच्चरण कठिन था. इसलिए जरूरत के अनुरूप जुब्बोलपोर का नाम बदलकर जबलपुर कर दिया गया. इसी तरह दक्षिण भारत के कई शहरों के नाम बदले गए क्योंकि स्थानीय बोली और अंग्रेजों के उच्चरण के कारण स्थापित नाम में काफी अंतर था. जिन शहरों के नाम बदले गए उनके पीछे पुख्ता तर्क भी थे. 

केंद्र सरकार ने 1956 में स्टेट रिआर्गेनाइजेशन एक्ट बनाया ताकि राज्यों को नए सिरे से रेखांकित करने में मदद मिले. इसी नियम के तहत त्रवणकोर राज्य का नाम बदल कर केरल किया गया. इसके बाद मांग उठी कि मद्रास राज्य का नाम भी बदलना चाहिए. अंग्रेजों के जमाने में मद्रास प्रेसिडेंसी हुआ करता था.  1969 में मद्रास स्टेट बदलकर तमिलनाडु हो गया. और 1973 में  मैसूर स्टेट बदलकर कर्नाटक हो गया. दरअसल ये सारे बदलाव अंग्रेजों की व्यवस्था को समाप्त करने के लिए हुए. उसके बाद भी जो बदलाव हुए हैं उनमें स्थानीयता की भावना ही सबसे बड़ा कारण रहा है. उदाहरण के लिए पांडिचेरी का नाम पुद्दुचेरी होना या फिर उड़ीसा का नाम ओडिशा करना. मद्रास का नाम चेन्नई करने, बॉम्बे का नाम मुंबई करने या फिर कलकत्ता का नाम कोलकाता करने के पीछे यही भाव था. स्थानीय भाषा में ये शहर इसी नाम से पुकारे जाते रहे हैं. इसलिए नामों के इन परिवर्तनों पर किसी ने कोई खास शंका व्यक्त नहीं की.

लेकिन अब जिस तरह से शहरों के नाम बदले जा रहे हैं या बदलने की मांग उठ रही है, उसके पीछे स्पष्ट तौर पर धार्मिकता की भावना दिखाई दे रही है. इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया गया और फैजाबाद जिले का नाम हो गया अयोध्या जिला! इलाहाबाद को 435 साल पहले तक प्रयागराज के नाम से जाना जाता था. 1583 में मुगल बादशाह अकबर ने इसका नाम इलाहाबाद रख दिया. इसका मतलब होता है ‘सिटी ऑफ गॉड’. जाहिर है कि इलाहाबाद का नाम बदलने के पीछे ‘नव राष्ट्रवाद’ की सोच है. पिछले साल जब मुगलसराय स्टेशन का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन किया गया था तब भी इस सोच को लेकर सवाल उठा था. बहरहाल बहुत से नाम कतार में हैं. औरंगाबाद, अहमदाबाद से लेकर हैदराबाद तक नाम परिवर्तन की कतार में हैं. 

नाम बदलने में सरकार की भी रुचि है तो नाम बदल भी जाएगा! लेकिन सवाल यह उठता है कि केवल नाम बदल देने से शहरों की स्थिति में क्या कुछ फर्क पड़ेगा? इस समय देश के तमाम शहरों में भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है क्योंकि गांवों से बड़ी संख्या में पलायन हो रहा है. गांवों में लोगों के लिए काम नहीं है. उद्योग-धंधों का पूरी तरह अभाव है इसलिए शहरों की ओर कूच करना ग्रामीण युवाओं की मजबूरी है. भीड़ के दबाव में शहरों की व्यवस्था तबाह हो चुकी है. बड़ी संख्या में झुग्गी बस्तियां और अवैध बस्तियां पैदा हो गई हैं. 

भारतीय शहरों के हालात कितने बदतर हैं इसका प्रमाण विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से इसी साल जारी एक रिपोर्ट है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित 20 शहरों में से 14 शहर भारत के हैं! हम अपने देश की राजधानी दिल्ली का हाल देख ही रहे हैं जहां लोग इन दिनों मास्क लगाकर रह रहे हैं. देश में अभी ऐसा एक भी शहर नहीं है जिसके बारे में कहा जा सके कि वह सर्वसुविधायुक्त है. यहां तक कि राज्यों की राजधानियों को ही देख लें तो हमें अपनी स्थिति का अंदाजा हो जाएगा. यह ठीक बात है कि शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए केंद्र सरकार ने बड़े पैमाने पर अभियान भी शुरू किया है लेकिन यह कागजों पर ज्यादा है, धरातल पर कम! हमारे शहर बदहाल सड़कों, घटिया ड्रेनेज और साफ-सफाई की समस्या से जूझ रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण स्थानीय निकायों में लालफीताशाही तो है ही, केंद्र और राज्य सरकार से इन निकायों को पर्याप्त पैसा भी नहीं मिलता है. जो पैसा मिलता है और उससे जो काम होता है, उसमें भ्रष्टाचार की शिकायतें लगातार आती रहती हैं. ट्रैफिक का बुरा हाल है. 

तो आज की जरूरत यह है कि शहरों के लिए एक ऐसा प्लान बनाया जाए जिसकी समयसीमा निर्धारित हो और हर काम स्पष्ट हो. यह योजना लंबी अवधि के दबावों को ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए ताकि कई दशक तक हमारे शहर आने वाली भीड़ को संभाल सकें. नाम बदलने से केवल  भावनाएं संतुष्ट हो सकती हैं. शहर की तस्वीर बदलेंगे तो हर नागरिक संतुष्ट होगा. 

एक बात मैं और कहना चाहूंगा कि सरकार न केवल शहरों के नाम बदल रही है बल्कि रास्तों के नाम भी बदले जा रहे हैं. मुंबई के वीटी स्टेशन का नाम जब सरकार ने बदला तो लोगों को उम्मीद थी कि उसकी हालत भी बदलेगी, क्योंकि छत्रपति शिवाजी महाराज के बेहतर प्रबंधन को आदर्श माना जाता है. लेकिन ऐसा नहीं हो सका और हर साल स्टेशन पर बदहाली के चलते अनेक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है. हकीकत यह है  कि रास्तों के नाम बदलने से रास्ते नहीं बदल जाते. जरूरत इस बात की है कि हर रास्ता समृद्धि का रास्ता बने. अभी चीन ने अपने शहरों की हवा को शुद्ध करने के लिए बिल्कुल नायाब किस्म का प्यूरिफायर बनाया है. हमें इस तरह के काम करने होंगे. नाम बदलकर भावनाओं से खेलने से स्थितियां बिगड़ेंगी ही. यह बात मैं किसी एक पार्टी के लिए नहीं बल्कि सभी राजनीतिक दलों के लिए कह रहा हूं, जो अपनी वोट की राजनीति के लिए भावनाओं को छेड़ते रहते हैं.

Web Title: Just change the name, change the look!

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे