जोशीमठः 2013 में केदारनाथ में तबाही से ले लेना चाहिए था सबक, भू-वैज्ञानिकों की होती रही अनदेखी

By गिरीश पंकज | Published: January 20, 2023 02:56 PM2023-01-20T14:56:57+5:302023-01-20T14:57:27+5:30

सरकार और प्रशासन के लोग अपने ढर्रे से काम करते हैं। कई बार वे भू-वैज्ञानिकों की सलाह को भी नजरंदाज कर देते हैं। उन्हें लगता है कि जल विद्युत परियोजना बनेगी, तो लाखों लोगों का भला होगा। लेकिन वे समझ नहीं पाते कि इसका क्या दुष्परिणाम होगा। कम से कम अब तो पहाड़ों पर सारे निर्माण कार्य रोक दिए जाने चाहिए और परियोजनाएं रद्द की जानी चाहिए।

Joshimath Lesson should have been taken from the devastation in Kedarnath in 2013 geologists were being ignored | जोशीमठः 2013 में केदारनाथ में तबाही से ले लेना चाहिए था सबक, भू-वैज्ञानिकों की होती रही अनदेखी

जोशीमठः 2013 में केदारनाथ में तबाही से ले लेना चाहिए था सबक, भू-वैज्ञानिकों की होती रही अनदेखी

विकास की हड़बड़ी में हम मनुष्य अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं और इस भ्रम में हैं कि हम विकास कर रहे हैं, विकास में सहभागी हैं, जबकि सच्चाई तो यह है कि हम विकास में नहीं, विनाश में सहभागी हैं। उत्तराखंड में समय-समय विनाश की जो लीलाएं हम देख रहे हैं, उससे भी कोई सबक नहीं ले पा रहे। अभी हाल ही में जोशीमठ में जिस तरह से भू-धंसाव हो रहा है, उसे देखते हुए यह बिल्कुल साफ है कि हम पहाड़ को तथाकथित विकास का ओवरडोज दे रहे हैं, जिसका नतीजा सामने है। सन्‌ 2013 में केदारनाथ में तबाही आई थी। तब तो हमें सबक ले लेना था कि पहाड़ों के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। लेकिन हमने कोई सबक नहीं लिया और नतीजा एक बार फिर सामने है।

सरकार और प्रशासन के लोग अपने ढर्रे से काम करते हैं। कई बार वे भू-वैज्ञानिकों की सलाह को भी नजरंदाज कर देते हैं। उन्हें लगता है कि जल विद्युत परियोजना बनेगी, तो लाखों लोगों का भला होगा। लेकिन वे समझ नहीं पाते कि इसका क्या दुष्परिणाम होगा। कम से कम अब तो पहाड़ों पर सारे निर्माण कार्य रोक दिए जाने चाहिए और परियोजनाएं रद्द की जानी चाहिए। हिमालय जैसे कच्चे पहाड़ में जब सुरंगें बनाई जाती हैं तो पूरा पहाड़ थर्रा उठता है। जोशीमठ का क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से भी खतरे में है और इस खतरे की ओर दशकों पहले ही आगाह कर दिया गया था कि यहां कभी भी भूस्खलन हो सकता है। लेकिन किसी ने भू-वैज्ञानिकों की नहीं सुनी।

पहाड़ों की सहने की अपनी सीमा है। हद से ज्यादा दबाव ये बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। इसलिए समय विवेक के साथ धीरे-धीरे विकास के सोपान तय करने का है। विकास की ऐसी तकनीक विकसित की जाए कि हमारे पहाड़ शांति के साथ खड़े रहें। वहां पर अत्यधिक निर्माण कार्य को तो फौरन रोका जाना चाहिए। पहाड़ को अगर हम छेड़ेंगे तो पहाड़ हमें नहीं छोड़ेगा, इस तथ्य को समझने की जरूरत है।  

Web Title: Joshimath Lesson should have been taken from the devastation in Kedarnath in 2013 geologists were being ignored

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