विमानन क्षेत्र के संकट पर ध्यान देना जरूरी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 19, 2019 07:26 AM2019-04-19T07:26:20+5:302019-04-19T07:26:20+5:30
1993 में एयर टैक्सी ऑपरेटर के रूप में अपनी शुरुआत करने वाली यह कंपनी 1995 में विधिवत एयरलाइन के रूप में स्थापित हो चुकी थी और 2004 तक उसकी उड़ानें विदेश जाने लगी थीं.
आखिरकार आठ हजार करोड़ रु. के कर्ज में डूबी 25 वर्ष पुरानी विमानन कंपनी जेट एयरवेज रनवे से उतर ही गई. पिछले काफी दिनों से जेट एयरवेज के संकट ने सबको परेशानी में डाल रखा था. विमानन कंपनी को उम्मीद थी कि एसबीआई की अगुवाई वाले बैंकों के गठजोड़ से अंतरिम राहत कोष के रूप में उसे 400 करोड़ रु. मिल जाएंगे, जिससे एयरलाइन के परिचालन को अस्थाई रूप से बंद होने से बचाया जा सकेगा. लेकिन बैंकों द्वारा आपातकालीन फंड देने से मना कर दिए जाने के बाद कंपनी के सामने परिचालन बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.
पैसेंजर मार्केट शेयर के मामले में कभी भारत की नंबर वन एयरलाइन रहने वाली कंपनी पर यह नौबत क्यों आई, इसके लिए कौन, कितना जिम्मेदार है, यह विस्तृत पड़ताल का विषय है, लेकिन एयरलाइन के बंद होने से डर यह है कि प्रतिस्पर्धा के अभाव में किराया अनाप-शनाप बढ़ सकता है और छोटे शहरों को विमानों से जोड़ने की सरकार की योजना पर पानी फिर सकता है. वैसे हकीकत तो यह है कि विमानन कंपनियों की किराया घटाने की प्रतिद्वंद्विता भी जेट एयरवेज की वर्तमान हालत के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है.
1993 में एयर टैक्सी ऑपरेटर के रूप में अपनी शुरुआत करने वाली यह कंपनी 1995 में विधिवत एयरलाइन के रूप में स्थापित हो चुकी थी और 2004 तक उसकी उड़ानें विदेश जाने लगी थीं. 2006 में उसने एयर सहारा को खरीदा और 2010 आते-आते 22.6 प्रतिशत पैसेंजर मार्केट शेयर के साथ वह हिंदुस्तान की सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी थी. लेकिन फिर 2012 के बाद विमानन कंपनियों के बीच शुरू हुए प्राइस वार में आखिरकार वह टिक नहीं पाई और 2019 आते-आते जेट एयरवेज की हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि न तो वह अपने कर्मचारियों को वेतन दे पा रही थी और न ही अपनी क्षमता के अनुरूप फ्लाइट उड़ा पा रही थी.
अब जो उसका अंत हुआ वह सबके सामने है. अगर सरकार ने विमानन क्षेत्र की इस गुत्थी का कोई हल नहीं निकाला तो एक तो विमानों का किराया बढ़ने से इसका विपरीत असर टूरिज्म सेक्टर पर पड़ेगा और दूसरे, सरकार की नई एविएशन नीति भी इससे प्रभावित हो सकती है तथा छोटे शहरों को विमानों से जोड़ने की योजना ठंडे बस्ते में जा सकती है.