अवधेश कुमार का ब्लॉग: कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नड्डा की चुनौतियां

By अवधेश कुमार | Published: June 25, 2019 06:18 AM2019-06-25T06:18:15+5:302019-06-25T06:18:15+5:30

2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के समय राजनाथ सिंह पार्टी अध्यक्ष थे. गृह मंत्री बनने के बाद उन्होंने त्यागपत्र दिया एवं अमित शाह अध्यक्ष बने. किंतु अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद ऐसा नहीं हुआ. पिछले दिनों पार्टी पदाधिकारियों की बैठक के बाद बताया गया कि सभी ने एक स्वर से उनसे अभी अध्यक्ष बने रहने का आग्रह किया है.

J P Nadda challenges after appointed bjp working president | अवधेश कुमार का ब्लॉग: कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नड्डा की चुनौतियां

अवधेश कुमार का ब्लॉग: कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नड्डा की चुनौतियां

भाजपा के इतिहास में इसके पहले कोई कार्यकारी अध्यक्ष नहीं हुआ. इस नाते जगत प्रकाश नड्डा की नियुक्ति पार्टी के लिए नई परिघटना है. उनके कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने का अर्थ है भविष्य का पूर्णकालिक अध्यक्ष तैयार करना. 
जब अमित शाह मंत्री बने तथा नड्डा मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए गए तभी से उनके अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा थी. भाजपा में एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत चलता रहा है.

2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के समय राजनाथ सिंह पार्टी अध्यक्ष थे. गृह मंत्री बनने के बाद उन्होंने त्यागपत्र दिया एवं अमित शाह अध्यक्ष बने. किंतु अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद ऐसा नहीं हुआ. पिछले दिनों पार्टी पदाधिकारियों की बैठक के बाद बताया गया कि सभी ने एक स्वर से उनसे अभी अध्यक्ष बने रहने का आग्रह किया है. उस दिन की खबर के अनुसार कम से कम दिसंबर तक अमित शाह गृह मंत्री रहने के साथ पार्टी अध्यक्ष भी बने रहेंगे. इसका मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि इस वर्ष भाजपा शासित तीन राज्यों झारखंड, महाराष्ट्र व हरियाणा विधानसभाओं के चुनाव हैं.

पिछले पांच वर्षो में अमित शाह ने संगठन का जिस ढंग से संचालन किया है उसमें अचानक उनके पद छोड़ने से एक खाई पैदा हो जाएगी जिसका असर चुनाव प्रबंधन व रणनीति पर पड़ सकता है. जैसा नड्डा के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा करते समय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया कि अमित शाह ने कहा कि मंत्री बनने के बाद पार्टी को पहले की तरह पूरा समय देना संभव नहीं होगा, इसलिए संसदीय बोर्ड ने यह निर्णय किया. यानी नड्डा को आगे बढ़ाते हुए अमित शाह धीरे-धीरे पार्टी अध्यक्ष की अपनी भूमिका कम करते जाएंगे. 

नड्डा पार्टी के लिए नए व्यक्ति नहीं हैं. वे 1991 में भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके हैं. इसके बाद पार्टी महासचिव से लेकर सर्वोच्च निर्णयकारी इकाई संसदीय बोर्ड के सचिव तक पहुंचे. वे कई राज्यों के प्रभारी भी रहे हैं. कहने का तात्पर्य यह कि संगठन में उनका एक लंबा जीवन गुजरा है. सरकार में भी प्रदेश से लेकर केंद्रीय मंत्री तक का दायित्व वे संभाल चुके हैं.

इस तरह सरकार एवं संगठन दोनों का पर्याप्त अनुभव उनको है. सबसे बढ़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह के विश्वासपात्र हैं. अपने विनम्र व्यवहार  के कारण केंद्रीय नेतृत्व में इनका घोर विरोधी नहीं मिलेगा. अमित शाह ने केंद्र से लेकर ज्यादातर राज्यों में पार्टी को सतत गतिशील ढांचे में फिर से ला दिया है.

तो नड्डा को पार्टी मशीनरी को सक्रिय करने के लिए भी नए सिरे से योजना बनाने और काम करने की जरूरत नहीं है. किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि नड्डा के लिए चुनौतियां नहीं हैं. उनका पूर्णकालिक अध्यक्ष बनना इसी पर निर्भर करेगा कि वे कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका को कितनी कुशलता से अंजाम देते हैं. 
 

Web Title: J P Nadda challenges after appointed bjp working president

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