International Tiger Day 2025: पिछले छह महीनों में ही देशभर में सौ से अधिक बाघों की मौत दर्ज की जा चुकी है. अगर यही रफ्तार जारी रही तो यह साल अब तक का सबसे घातक साल साबित हो सकता है, क्योंकि 2023 में भी रिकॉर्ड 178 बाघों की मौत हुई. ये आंकड़े साफ तौर पर बताते हैं कि भले ही संख्या के लिहाज से हमने बाघों के संरक्षण में प्रगति की है, लेकिन स्थिरता और सुरक्षा के मामले में हम अभी भी पीछे हैं. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और विभिन्न स्वतंत्र संस्थाओं के आंकड़ों से यह स्पष्ट हो गया है कि बाघों की मौत के कारण विविध हैं- अवैध शिकार, क्षेत्रीय संघर्ष, मानव-वन्यजीव संघर्ष, ट्रेन दुर्घटनाएं, बिजली का झटका, संक्रमण और प्राकृतिक कारण. इनमें से कई कारणों को प्रभावी नीति, निगरानी और सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से काफी हद तक रोका जा सकता है.'
दुख की बात है कि इनमें से कई मौतें उन संरक्षित क्षेत्रों में भी होती हैं जिन्हें विशेष रूप से बाघों के लिए आरक्षित किया गया है. एक रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष अब तक 42 बाघ संरक्षित क्षेत्रों में मृत पाए गए हैं जबकि 35 संरक्षित क्षेत्र के बाहर मरे हैं. इससे यह सवाल उठता है क्या हमारे संरक्षित क्षेत्र वास्तव में ‘सुरक्षित’ हैं?
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बाघों की सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं. महाराष्ट्र में 28 और मध्य प्रदेश में 29 बाघों की मौत हुई है. इन दोनों ही राज्यों में बाघों की संख्या पहले से ही ज्यादा है और यही वजह है कि यहां टकराव की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. कई वर्षों से चल रहे ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ और अन्य संरक्षण कार्यक्रमों ने भारत में बाघों की संख्या बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
आंकड़े बताते हैं कि 2010 में जहां देश में बाघों की संख्या करीब 1700 थी, वहीं 2022 में यह बढ़कर करीब 3700 हो गई है. वैश्विक स्तर पर इसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है, क्योंकि आज दुनिया के करीब तीन-चौथाई बाघ भारत में हैं. लेकिन यह इस तथ्य से भी जुड़ा है कि बाघों की यह संख्या अब सीमित स्थानों पर घनी आबादी में रह रही है, जिससे उनके बीच संघर्ष, बीमारियों का फैलना और भोजन व आवास के लिए प्रतिस्पर्धा जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं. नतीजतन, बाघों की मृत्यु दर में वृद्धि हुई है.
वर्तमान में बाघों के आवागमन के लिए जो गलियारे मौजूद हैं, वे या तो अतिक्रमण का शिकार हैं या बिखरे हुए हैं, जिससे उनकी गतिशीलता बाधित होती है. इसके साथ ही संरक्षण प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों को शामिल करना भी बहुत जरूरी है. जब तक जंगल के आसपास रहने वाले लोग बाघों की मौजूदगी को अपने लिए खतरा मानते रहेंगे, तब तक संरक्षण के प्रयास सफल नहीं हो सकते.