शोभना जैन का ब्लॉग: बजट से मजबूत होगी भारत की वैश्विक मौजूदगी

By शोभना जैन | Published: February 4, 2022 10:35 AM2022-02-04T10:35:50+5:302022-02-04T10:39:25+5:30

अफगानिस्तान को मानवीय सहायता और विकास संबंधी मदद के लिए 200 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को शामिल किया गया है।

Indias global presence will be strengthened by the budget afghanistan europe africa | शोभना जैन का ब्लॉग: बजट से मजबूत होगी भारत की वैश्विक मौजूदगी

शोभना जैन का ब्लॉग: बजट से मजबूत होगी भारत की वैश्विक मौजूदगी

Highlightsसमिति के मुताबिक, सरकार के कुल खर्च में मंत्नालय का आवंटन घटता जा रहा है।भारत ने कई देशों को 8133 करोड़ रुपए की ऋण सहायता और अनुदान का प्रावधान रखा है।अफ्रीकी एवं यूरेशियाई देशों के विकास सहायता के लिए भी करोड़ो रुपए का प्रस्ताव किया गया है।

अब जबकि केंद्रीय बजट पेश किए जाने के बाद चर्चाओं के घेरे में है, बजटीय प्रावधानों के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर का लेखा-जोखा लिया जा रहा है. इसके साथ ही चर्चा का एक अहम विषय यह भी है कि एक तरफ जहां भारत विश्व पटल पर प्रभावी भूमिका निभाने की ओर अग्रसर है, साथ ही भारत भी दुनिया भर के तमाम देशों की तरह कोविड से निपटते हुए आर्थिक परिस्थितियों से जूझ रहा है, ऐसे में इन दो छोरों के बीच इस बजट में डिप्लोमेसी के लिए आवंटन को लेकर कितना तालमेल है.

वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में दुनिया के विभिन्न देशों को विकास के लिए सहायता देने की प्रतिबद्धता जारी रखते हुए 6292 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. इसमें अफगानिस्तान को मानवीय सहायता और विकास संबंधी मदद के लिए 200 करोड़ रुपए का प्रस्ताव भी शामिल है, हालांकि भारत का फिलहाल अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के साथ कोई राजनयिक संपर्क नहीं है. 

गत दिसंबर में विदेश मंत्नालय की संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई थी कि 2021-22 के बजट में विदेश मंत्नालय की हिस्सेदारी मात्न 0.5 प्रतिशत ही थी, जिसे समिति ने अपर्याप्त और तारतम्यहीन माना था. 

समिति का कहना था कि सरकार के कुल खर्च में मंत्नालय का आवंटन घटता जा रहा है. समिति का मानना रहा है कि भारत जिस तरह से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की दावेदारी के लिए प्रयासरत है, उससे विश्व पटल पर उसे अपनी मौजूदगी को प्रभावी करना होगा और अपने राजनयिक दायरे को बढ़ाना होगा. एक विशेषज्ञ के अनुसार बजट में सरकार के कुल व्यय खाते में बढ़ोत्तरी होने के बावजूद डिप्लोमेटिक बजटीय प्रावधान कम होना सवाल तो उठाता ही है, लेकिन यह भी ध्यान देना होगा कि सरकार के अन्य मंत्रलयों की ही तरह इसका वास्तविक व्यय भी कम हुआ है.

दरअसल पिछले वर्ष की ही तरह यह वर्ष कोविड की अर्थव्यवस्था से निपटने का वर्ष है, जिसका असर स्वाभाविक तौर पर भारत की अर्थव्यवस्था पर तो पड़ ही रहा है साथ ही डिप्लोमेसी के लिए आवंटित बजट के तहत भारत द्वारा विभिन्न देशों को विकास परियोजनाओं के लिए दी जाने वाली सहायता और ऋण पाने वाले देशों पर भी प्रभाव पड़ता है. 

पूर्व राजदूत और विदेशी मामलों को निकट से जानने वाले विशेषज्ञ अनिल त्रिगुणायत के अनुसार भले ही डिप्लोमेसी के इस वर्ष के बजटीय प्रावधान आशाओं और इच्छाओं के अनुरूप नहीं माने जा रहे हों लेकिन मौजूदा हालात में इन्हें सही माना जा सकता है, और स्थितियां नियंत्नण में आने पर संशोधित प्रावधान का विकल्प तो रहता ही है. 

वित्त वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में विदेश मंत्नालय के लिए 17250 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. इसमें भारत के पड़ोसी देशों एवं अफ्रीकी व लैटिन अमेरिकी देशों की विकास सहायता के लिए 6292 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है. इसमें सबसे अधिक आवंटन इस बार भी भूटान के लिए है जो 2266 करोड़ रुपए है जबकि नेपाल में विकास सहायता के लिए 750 करोड़ रुपए एवं म्यांमार के लिए 600 करोड़ रुपए शामिल हैं. 

मालदीव के लिए 360 करोड़ रुपए आवंटित किया गया है जबकि बांग्लादेश की विकास सहायता के लिए 300 करोड़ रुपए एवं श्रीलंका के लिए 200 करोड़ रुपए आवंटन का प्रस्ताव किया गया है. भारत ने इन देशों को 8133 करोड़ रुपए की ऋण सहायता और अनुदान का प्रावधान रखा है.

बजट के अनुसार, भारतीय मूल के लोगों की बहुतायत वाले मॉरिशस के लिए 900 करोड़ रुपए का प्रस्ताव किया गया है. अफ्रीकी देशों को विकास सहायता के लिए 250 करोड़ रुपए एवं यूरेशियाई देशों के लिए 140 करोड़ रुपए का प्रस्ताव किया गया है. 

इसी संदर्भ में अपना प्रभावी कूटनीतिक दायरा बढ़ाते हुए विदेश मंत्नालय ने इस बजट में चीन की उत्तरी सीमा से सटे पड़ोसी मंगोलिया में अपनी विकास सहायता पिछले वर्ष की 2 करोड़ की राशि से बढ़ाकर 12 करोड़ कर दी है जो कि स्वच्छ ऊर्जा से लेकर पंरपरागत भारतीय औषधियों के वहां प्रसार के लिए व्यय की जाएगी. 

इसके साथ ही वहां एक रिफाइनरी बनाए जाने की भी चर्चा है. इन देशों को दी जाने वाली सहायता में कोविड से निपटने के लिए औषधि और कोविड मैत्नी टीका भी शामिल है. इसमें विशेष राजनयिक खर्च के लिए 3100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, जिसमें 120 करोड़ रुपया दक्षेस देशों के विश्वविद्यालय दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय को दिया जाएगा. 

इस बजट में ईरान स्थिर चर्चित चाबहार बंदरगाह परियोजना के लिए 100 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है. चाबहार ईरान के ऊर्जा और खनिज भंडार वाले सिस्तान- बलूचिस्तान इलाके में है जो कि भारत, ईरान और अफगानिस्तान द्वारा साङो तौर पर बनाया जा रहा है.

आंकड़ों की बात करें तो भले ही विभिन्न देशों को भारत द्वारा दी जाने वाली सहायता में 12.3 प्रतिशत की कटौती हुई है लेकिन अगर जमीनी हकीकत देखें तो भारत कोविड की मार और अर्थव्यवस्था की उथल-पुथल से गुजर रहा है, साथ ही इन देशों को सहायता देने की प्रतिबद्धता भी जारी रखे हुए है. 

ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि विश्व पटल पर प्रभावी मौजूदगी बनाने, राष्ट्रीय हितों को दृष्टिगत रखते हुए समान विचार वालों के साथ नई भू आर्थिक साङोदारियां बनाने और घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के बीच तालमेल बिठाना होगा.

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