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बदलते विश्व में ‘भारत-रूस मैत्री’ की चुनौतियां, शोभना जैन का ब्लॉग

By शोभना जैन | Updated: April 17, 2021 09:38 IST

भारत को एक ‘विश्वसनीय सहयोगी’ करार देते हुए रूस ने कहा कि दोनों देशों के बीच कोई मत भिन्नता या गलतफहमी नहीं है और ‘स्वतंत्र’ संबंधों के आधार पर उसका पाकिस्तान के साथ ‘सीमित सहयोग’ है.

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ठळक मुद्देभारत, पाकिस्तान, रूस सभी शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य हैं.क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, अन्य खतरों से मुकाबले सहित अन्य क्षेत्रों में सहयोग है.आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई साझा एजेंडा है.

गत सप्ताह रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भारत आए. उनका यह दौरा इस वर्ष के अंत में प्रस्तावित रूसी राष्ट्रपति पुतिन की नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ होने वाली शिखर बैठक की तैयारी के संबंध में था.

इस दौरे में दोनों पक्षों के बीच और कई महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा और सहमति हुई, साथ ही बदलते विश्व समीकरणों के चलते ‘क्वाड और भारत प्रशांत क्षेत्न’ की दोनों की अलग-अलग व्याख्या सहित कई अहम मुद्दों पर अलग-अलग राय भी दिखाई दी. लेकिन  भारत-रूस रिश्तों पर लावरोव ने  साफ तौर पर कहा, ‘मुझे नहीं लगा  कि  हमारे भारतीय पार्टनर और दोस्तों में कोई बदलाव या रिश्तों में कोई उतार-चढ़ाव आया है, मैं इस बात की पुष्टि करता हूं कि हम आपसी सैन्य सहयोग बढ़ाएंगे’.

हालांकि इस  टिप्पणी के साथ ही इस यात्ना से जुड़ा एक अहम घटनाक्रम यह रहा कि पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान और रूस के बीच बढ़ रही  नजदीकियों के बीच, लावरोव भारत दौरे से  सीधे पाकिस्तान गए. वहां उन्होंने  2012  के रूस के रुख से अलग हटकर कहा कि रूस पाकिस्तान की आतंकवाद से टक्कर लेने की क्षमता को मजबूत करने को तैयार है जिसमें पाकिस्तान को विशेष सैन्य उपकरण प्रदान करना शामिल है, साथ ही दोनों देश समुद्र और पर्वतों पर संयुक्त सैन्य अभ्यास करेंगे.

जाहिर है यह टिप्पणी भारत के लिए सही नहीं मानी जा सकती है क्योंकि पाकिस्तान के सीमा पार आतंकवाद से भारत सबसे बुरी तरह से त्नस्त रहा है. यहां यह बात भी अहम है कि लावरोव नौ बरस बाद पाकिस्तान आए. ऐसे में इन दोनों यात्नाओं के खास संकेत हैं. इसे अमेरिका के इस क्षेत्न में प्रभाव और चीन व रूस के बढ़ते गठबंधन से जोड़ा जा रहा है.

बहरहाल, एक तरफ जहां बदलती हुई दुनिया में भारत की अमेरिका के साथ नजदीकियां बढ़ी हैं, वहीं रूस के साथ भी मैत्नी बंधन को आगे बढ़ाते हुए उसने रिश्तों में संतुलन साधने की सफल कोशिश की है. नौ अगस्त, 1971 की ऐतिहासिक  सोवियत-भारत शांति, मैत्नी और सहयोग संधि से बंधे दोनों देशों के बीच लंबे समय से प्रगाढ़ संबंध रहे हैं.

भारत आज दुनिया में एक बड़ी लोकतांत्रिक, मजबूत विश्वसनीय ताकत के रूप में जाना जाता है. निश्चित तौर पर भारत का यही प्रयास है कि बदलते हुए विश्व परिप्रेक्ष्य में रूस जैसे भरोसेमंद मित्न के साथ संबंधों में संतुलन साधने की चुनौती से सफलतापूर्वक निबटे. यही जिम्मेदारी रूस की भी है. वैसे इस यात्ना में सहमति के बिंदुओं की बात करें तो वार्ता में सामरिक सहयोग, ऊर्जा, परमाणु, अंतरिक्ष जैसे क्षेत्नों में सहयोग बढ़ाने के साथ ही ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत में रूसी हथियार बनाने के बारे में सैन्य और तकनीकी सहायता संबंधी अनेक समझौतों पर विचार हुआ.

हालांकि दोनों ही पक्षों ने जल्द ही भारत को रूस से मिलने वाली पांच अरब डॉलर की एस-400 प्रक्षेपास्त्न रक्षा प्रणाली की आपूर्ति के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की. इस  सौदे की पृष्ठभूमि को देखें तो अमेरिका ने रक्षा तथा सुरक्षा मामलों में रूस के साथ सहयोग करने वाले देशों के साथ प्रतिबंधात्मक कदम उठाने की धमकी दी है.

बाइडन प्रशासन ने दुनिया के देशों को चेतावनी दी है कि अगर वे रूस से हथियार लेते हैं तो उन पर ‘काटसा’ के तहत प्रतिबंध लगाया जा सकता है. बहरहाल, संतुलन की स्थिति ऐसे ही हालात में उत्पन्न होती है और भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर प्रक्षेपास्त्न प्रणाली लेने का कदम उठा लिया. भारत अपने लगभग 60 फीसदी रक्षा उपकरणों के लिए रूस  पर निर्भर है.

यदि भारत की अमेरिका से नजदीकी बढ़ती जा रही है तो रूस भी पिछले एक दशक में चीन के करीब आ गया है. जयशंकर-लवारोव वार्ता में भी लवारोव एशिया-प्रशांत क्षेत्न की अवधारणा पर जोर देते रहे हैं, जबकि भारत के लिए यह क्षेत्न ‘भारत प्रशांत’ क्षेत्न है. इसी तरह रूस और चीन में भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के क्वाड समूह को लेकर इस कदर नाराजगी है कि वे इसे  ‘एशियाई नाटो’ मानते हैं. हालांकि रूस भी भारत के इस मत से सहमत है कि एशिया में किसी प्रकार का सैन्य गठबंधन सभी के लिए नुकसानदेह है.

इसी तरह अफगानिस्तान को लेकर भी परिप्रेक्ष्य में मतभेद नजर आ रहे हैं. भारत जहां लोकतांत्रिक अफगानिस्तान का पक्षधर है और अफगाननीत अफगान सरकार की बात करता रहा है, वहीं रूस तालिबान को सत्ता बंटवारे में हिस्सेदारी की बात करता रहा है. वैसे देखें तो भारत और रूस के बीच हितों का कोई खास टकराव नहीं है, लेकिन अमेरिका के साथ भारत के गहराते सहयोग से रूस खुश नहीं है.

जबकि भारत इससे नाखुश  हैं कि रूस चीन के हितों की परवाह करता दिख रहा है, अपने पुराने दोस्त की चिंताओं को तरजीह नहीं दे रहा है. भारत की सीमाओं के अतिक्र मण में लगे चीन के लिए रूसी विदेश मंत्नी की यह हालिया टिप्पणी कि ‘रूस-चीन संबंध इतिहास में आज सबसे मजबूत अवस्था में है’ भारत के नीतिकारों के लिए स्वाभाविक तौर पर भृकुटियां चढ़ाने वाली रहेगी.

 बहरहाल, आज जबकि विश्व के कूटनीतिक समीकरण बदल रहे हैं, भारत और रूस की दोस्ती समय की कसौटी पर खरी उतरी है. बदलते हालात में कुछ मतभेद अवश्य उभरे हैं लेकिन रूस-भारत संबंध आपसी हित और सम्मान पर आधारित हैं. उन्हें उसी भावना से हल करना होगा.

बदले हुए समय में पुराने दोस्तों के सम्मुख संबंधों में संतुलन साध कर आगे बढ़ने की चुनौती जरूर है लेकिन निश्चय ही यह मौका है जबकि दोनों नई चुनौतियों के बीच नए भरोसे के साथ आगे बढ़ें. यह न केवल द्विपक्षीय संबंधों, बल्कि क्षेत्नीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हितकारी होगा.

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