जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉगः वैश्विक फार्मेसी बनने की दिशा में बढ़ता भारत

By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Published: July 31, 2021 01:28 PM2021-07-31T13:28:23+5:302021-07-31T13:35:30+5:30

इस समय भारत दुनिया की नई फार्मेसी बनने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रहा है। हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की जुलाई बुलेटिन में कहा गया है कि भारत में फार्मा उद्योग तेजी से आगे बढ़ रहा है।

India moving towards becoming a global pharmacy | जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉगः वैश्विक फार्मेसी बनने की दिशा में बढ़ता भारत

प्रतीकात्मक तस्वीर

Highlightsभारत दुनिया की नई फार्मेसी बनने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रहा है। भारत का फार्मा उद्योग 42 अरब डॉलर का है, जो 2030 तक 130 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।वैश्विक स्तर पर इस्तेमाल की जाने वाली करीब 60 फीसद वैक्सीन भारत में बनाई जाती है। 

इस समय भारत दुनिया की नई फार्मेसी बनने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रहा है। हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की जुलाई बुलेटिन में कहा गया है कि भारत में फार्मा उद्योग तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस समय भारत का फार्मा उद्योग करीब 42 अरब डॉलर का है। यह 2026 तक 65 अरब डॉलर और 2030 तक 130 अरब डॉलर की ऊंचाई पर पहुंच सकता है।

कोरोना संक्रमण की आपदा भारत के लिए फार्मा और कोरोना वैक्सीन का मैन्युफैक्चरिंग हब बनने का अवसर लेकर आई है। इस समय भारत के दुनिया की नई फार्मेसी और कोरोना वैक्सीन का हब बनने के चार चमकीले कारण उभरकर दिखाई दे रहे हैं। एक, कोरोना महामारी के बीच जहां भारत में दवाई का उत्पादन बढ़ा है, वहीं दुनिया के विभिन्न देशों में दवाई निर्यात भी तेजी से बढ़े हैं। दो, भारत के लिए कोरोना वैक्सीन का वैश्विक उत्पादक और वितरक बनने का मौका निर्मित हुआ है। तीन, दवाई उत्पादन के लिए वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करने के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत 15000 करोड़ रुपए की धनराशि आवंटित की गई है तथा चार, दवाई व टीकों से संबंधित शोध और नवाचार के लिए वर्ष 2021-22 के बजट में विशेष आवंटन किया गया है। 

उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान भारत ने दवाई उत्पादन और निर्यात में असाधारण भूमिका निभाई है। कोरोना काल में फार्मा और मेडिकल सेक्टर के कई नए उत्पादों पीपीई किट, वेंटिलेटर, सर्जिकल मास्क, मेडिकल गॉगल्स आदि का भारत बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश बन गया है। इस समय भारत दवाई उत्पादन की मात्रा के मामले में विश्व में तीसरे स्थान पर और दवाई के मूल्य के मद्देनजर दुनिया में 14वें क्रम पर है। भारत में दवाई उत्पादन की लागत अमेरिका एवं पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है।

स्थिति यह है कि भारत घरेलू और वैश्विक बाजारों के लिए विभिन्न महत्वपूर्ण, उच्च गुणवत्ता और कम लागत वाली दवाओं के निर्माण में एक प्रभावी भूमिका निभा रहा है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि पिछले वित्त वर्ष 2020-21 में जहां वैश्विक दवाई बाजार में करीब दो फीसदी की गिरावट आई, वहीं भारत का दवाई निर्यात 18 फीसदी बढ़कर करीब 24.44 अरब डॉलर यानी करीब 1.76 लाख करोड़ रुपए की ऊंचाई पर पहुंच गया है। भारत से दवाई का निर्यात न केवल विभिन्न विकासशील देशों को बढ़ा है, बल्कि यूरोपीय देशों और अमेरिका सहित कई विकसित देशों में भी बढ़ा है।

निःसंदेह भारत कोरोना वैक्सीन निर्माण के नए मुकाम की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस समय दुनियाभर में इस्तेमाल की जाने वाली करीब 60 फीसदी वैक्सीन भारत में बनाई जाती है। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर बनाई गई सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की ‘कोविशील्ड’ तथा स्वदेश में विकसित भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सीन’ का उपयोग देशव्यापी टीकाकरण अभियान में किया जा रहा है। कोरोना वायरस महामारी की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर भारत ने देश में कोरोना वैक्सीन के उत्पादन की गति बढ़ा दी है। अब भारत में नोवावैक्स की कोरोना वैक्सीन का उत्पादन भी दिखाई दे रहा है। इस वैक्सीन का उत्पादन पुणो का सीरम इंस्टीट्यूट कर रहा है, जो ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड का भी उत्पादन कर रहा है। इतना ही नहीं क्वाड ग्रुप के चार देशों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के द्वारा भारत में वर्ष 2022 के अंत तक कोरोना वैक्सीन के सौ करोड़ डोज निर्मित कराने का जो निर्णय लिया गया है, इससे भारत दुनिया की कोरोना वैक्सीन महाशक्ति के रूप में उभरकर दिखाई दे सकेगा।

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत देश को दवाई का मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने के मद्देनजर पीएलआई योजना के अंतर्गत अधिक कीमतों वाली दवाइयों के स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देने और चीन से बाहर निकलती फार्मा मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को भारत की ओर आकर्षित करने के उद्देश्य से फार्मास्युटिकल उत्पादों के लिए 15000 करोड़ रुपए की पीएलआई योजना को मंजूरी दी है। सरकार को इस योजना के जरिये घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय, दोनों स्तर की दवा निर्माता कंपनियों से करीब 50000 करोड़ रुपए का निवेश प्राप्त होने की उम्मीद है। पीएलआई स्कीम के तहत सरकार के द्वारा दवाई बनाने के लिए कच्चे माल के स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए 6940 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन धनराशि घोषित हो चुकी है। इससे दवाओं के एक्सीपियंट्स अर्थात पूरक पदार्थो के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। अभी देश में एक्सीपियंट्स का 70 फीसद से अधिक आयात करना पड़ता है। 

निश्चित रूप से दुनिया के मानचित्र पर भारत के नई वैश्विक फार्मेसी और कोरोना वैक्सीन का हब बनने की जो चमकीली संभावनाएं निर्मित हुई हैं, उन्हें रणनीतिक प्रयासों से मुट्ठियों में लिए जाने का हरसंभव प्रयास किया जाना होगा। हम उम्मीद करें कि अब भारत के द्वारा दुनिया की नई फार्मेसी और कोरोना वैक्सीन हब बनने का चमकीला अध्याय लिखा जा सकेगा। उम्मीद करें कि भारत का फार्मा सेक्टर 2026 तक 65 अरब डॉलर और 2030 तक 130 अरब डॉलर की ऊंचाई के स्तर पर पहुंचते हुए दिखाई दे सकेगा। 

Web Title: India moving towards becoming a global pharmacy

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