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अनियमित और शक्तिशाली मानसून के खतरे, प्रमोद भार्गव का ब्लॉग

By प्रमोद भार्गव | Updated: April 26, 2021 15:31 IST

अध्ययन के अलावा संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2020 में किए गए एक अध्ययन से भी स्पष्ट हुआ था कि जलवायु परिवर्तन और पानी का अटूट संबंध है.

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ठळक मुद्देभारत में मानसूनी बारिश तबाही मचाएगी. इससे ज्यादा बाढ़ आएगी.रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया को 2030 तक बाढ़ों की कीमत प्रत्येक वर्ष चुकानी पड़ेगी. सालाना करीब 15.6 लाख करोड़ की हानि उठानी पड़ सकती है.

पोट्सडैम जलवायु प्रभाव शोध संस्थान के वैज्ञानिक-प्राध्यापक एंडर्स लीवरमैन ने धरती के बढ़ते तापमान की वजह से भारत में बारिश पर होने वाले प्रभावों का अध्ययन किया है.

एंडर्स के मुताबिक जितनी बार धरती का पारा वैश्विक तापमान के चलते एक डिग्री सेल्सियस ऊपर चढ़ेगा, उतनी ही बार भारत में मानसूनी बारिश 5 प्रतिशत अधिक होगी. मानसूनी बारिश का वास्तविक अंदाजा लगाना भी कठिन हो जाएगा. यह अध्ययन अर्थ सिस्टम डायनेमिक्स  जर्नल में छपा है. भारत में आमतौर पर बारिश का सीजन जून के महीने से शुरू होता है और सितंबर के अंत तक चलता है.

एंडर्स का कहना है कि इस सदी के अंत तक साल दर साल वैश्विक तापमान की वजह से तापमान बढ़ेगा. नतीजतन भारत में मानसूनी बारिश तबाही मचाएगी. इससे ज्यादा बाढ़ आएगी, जिससे लाखों एकड़ में फैली फसलें खराब होंगी. इस अध्ययन के अलावा संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2020 में किए गए एक अध्ययन से भी स्पष्ट हुआ था कि जलवायु परिवर्तन और पानी का अटूट संबंध है.

इस रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया को 2030 तक बाढ़ों की कीमत प्रत्येक वर्ष चुकानी पड़ेगी. इनसे सालाना करीब 15.6 लाख करोड़ की हानि उठानी पड़ सकती है. साफ है कि वैश्विक तापमान के बढ़ते खतरे ने आम आदमी के दरवाजे पर दस्तक दे दी है. दुनिया में कहीं भी एकाएक बारिश, बाढ़, बर्फबारी, फिर सूखे का कहर यही संकेत दे रहे हैं.

आंधी, तूफान और फिर एकाएक ज्वालामुखियों के फटने की हैरतअंगेज घटनाएं भी यही संकेत दे रही हैं कि अदृश्य खतरे इर्दगिर्द ही कहीं मंडरा रहे हैं. समुद्र और अंटार्कटिका जैसे बर्फीले क्षेत्न भी इस बदलाव के संकट से दो-चार हो रहे हैं. दरअसल वायुमंडल में अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड महासागरों में भी अवशोषित होकर गहरे समुद्र में बैठ जाती है. यह वर्षों तक जमा रहती है.

पिछली दो शताब्दियों में 525 अरब टन कचरा महासागरों में समाया है. इसके इतर मानवजन्य गतिविधियों से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड का 50 फीसदी भाग भी समुद्र की गहराइयों में समा गया है. अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड के जमा होने के कारण अंटार्कटिका के चारों ओर फैले दक्षिण महासागर में इसको सोखने की क्षमता निरंतर कम हो रही है. इस स्थिति का निर्माण खतरनाक है.

ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण के मुताबिक वैज्ञानिकों का कहना है कि दक्षिण महासागर कार्बन डाइऑक्साइड से लबालब हो गया है. नतीजतन अब यह समुद्र इसे अवशोषित करने की बजाय वायुमंडल में ही उगलने लग गया है. अगर इसे जल्दी नियंत्रित नहीं किया गया तो वायुमंडल का तापमान तेजी से बढ़ेगा, जो न केवल मानव प्रजाति, बल्कि सभी प्रकार के जीव-जंतुओं के अस्तित्व के लिए खतरनाक होगा. ऐसे संकेत लगातार मिल रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन खतरनाक रूप ले चुका है. यह खाद्य संकट तो बढ़ाएगा ही, पर्यावरण शरणार्थी जैसी भयावह समस्या भी खड़ी कर देगा.

टॅग्स :भारतीय मौसम विज्ञान विभागमौसममौसम रिपोर्ट
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