वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः अफगानिस्तान में सहयोग जरूरी
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 13, 2018 09:37 PM2018-12-13T21:37:51+5:302018-12-13T21:37:51+5:30
पिछले दिनों मास्को में तालिबान के साथ हुए संवाद में भारत भी शामिल हुआ था. वहां पाकिस्तान तो था ही. उसने वहां कहा कि अफगानिस्तान को फौजी कार्रवाई से शांत नहीं किया जा सकता है.
यदि भारत और पाकिस्तान मिलकर अफगानिस्तान में काम करें तो उसके दो फायदे तुरंत हो सकते हैं. एक तो मध्य एशिया के पांचों राष्ट्रों से भारत का थल मार्ग से सीधा संबंध हो जाएगा, जिसके कारण भारत और पाकिस्तान, दोनों देश मालामाल हो सकते हैं. दोनों देशों के लाखों नौजवानों को तुरंत रोजगार मिल सकता है. दोनों राष्ट्रों की गरीबी कुछ ही वर्षो में दूर हो सकती है.
दूसरा फायदा यह है कि अफगानिस्तान में चला भारत-पाक सहयोग आखिरकार कश्मीर के हल का रास्ता तैयार करेगा. लेकिन इस बात को पाकिस्तान के नेता अब समझ रहे हैं, जबकि डोनाल्ड ट्रम्प ने उन्हें एक खत में यह सुझाया है. पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने माना है कि अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिए भारत का सहयोग भी जरूरी है.
पिछले दिनों मास्को में तालिबान के साथ हुए संवाद में भारत भी शामिल हुआ था. वहां पाकिस्तान तो था ही. उसने वहां कहा कि अफगानिस्तान को फौजी कार्रवाई से शांत नहीं किया जा सकता है. अफगान-इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते मैं अमेरिकी और पाकिस्तानी नीति-निर्माताओं को बताता रहा हूं कि बहादुर और स्वाभिमानी अफगानों ने तीन युद्धों में ग्रेट ब्रिटेन को धूल चटाई है, वे आपके वश में कैसे आएंगे? अशांत अफगानिस्तान ने ही पाकिस्तान में आतंकवाद को जन्म दिया है. अफगानिस्तान की शांति पूरे दक्षिण एशिया के लिए महत्वपूर्ण है.
इसी काम में आजकल ट्रम्प के दूत के रूप में जलमई खलीलजाद लगे हुए हैं. मुङो विश्वास है कि पाकिस्तानी नेताओं पर उनकी बात का कुछ प्रभाव पड़ा है. हमें इस संभावना से डरना नहीं चाहिए कि पाकिस्तान अफगानिस्तान के बहाने कश्मीर को भी बीच में घसीट लाएगा. वह लाएगा तो लाने दीजिए. उस पर भी बात कीजिए. अटलजी और मुशर्रफ ने भी बात की थी या नहीं ? मनमोहन सिंह और मुशर्रफ ने चार-सूत्री हल का फार्मूला निकाला था. यदि करतारपुर गलियारे का हल आसानी से हो सकता है तो अफगानिस्तान में भारत-पाक सहयोग क्यों नहीं हो सकता?