ब्लॉग: सैकड़ों बीमारियों की जड़ है बढ़ता वायु प्रदूषण

By योगेश कुमार गोयल | Published: November 18, 2021 03:38 PM2021-11-18T15:38:28+5:302021-11-18T18:36:23+5:30

वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के ही कारण अब देशभर में नॉन स्मोकर्स में भी फेफड़ों का कैंसर होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. वायु प्रदूषण का प्रभाव मानव शरीर पर निरंतर घातक होता जा रहा है.

How Rising air pollution is root cause of hundreds of diseases | ब्लॉग: सैकड़ों बीमारियों की जड़ है बढ़ता वायु प्रदूषण

सैकड़ों बीमारियों की जड़ है बढ़ता वायु प्रदूषण

दिल्ली तथा आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण की बदतर स्थिति पर गंभीर चिंता जताते हुए आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा है कि प्रदूषण की स्थिति इतनी खराब है कि हम घरों में भी मास्क पहनने को विवश हो गए हैं. दिन के समय कमजोर हवाएं और रात के समय एयरलॉक की स्थिति के कारण दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति विकराल बनी है.

पराली के अलावा अन्य कई कारक भी हालात को बदतर बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, खाना पकाने का धुआं, लकड़ी से जलने वाले चूल्हे, उद्योगों का धुआं इत्यादि वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं. निर्माण कार्यो और ध्वस्तीकरण से निकलने वाली रेत-धूल, सीमेंट के कण तथा सड़कों पर उड़ने वाली धूल भी वायु प्रदूषण का बड़ा कारण हैं. 

वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन दिल्ली में तो करीब 40 फीसदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है. आमतौर पर निर्माण तथा ध्वस्तीकरण से निकलने वाला प्रदूषण और सड़क पर उड़ने वाले धूल कणों का आकार बड़ा होता है, जिन्हें ‘पीएम 10’ कहा जाता है. हालांकि ‘पार्टिकुलेट मैटर’ (पीएम 10) के अलावा इससे छोटे प्रदूषण कण ‘फाइन पार्टिकुलेट मैटर’ (पीएम 2.5) भी पर्यावरण को प्रदूषित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं. 

पार्टिकुलेट मैटर वातावरण में उपस्थित ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण होता है. हवा में मौजूद ये कण इतने छोटे होते हैं, जिन्हें आंखों से देखना संभव नहीं होता और कुछ कण इतने छोटे होते हैं, जिन्हें केवल माइक्रोस्कोप के जरिये ही देखा जा सकता है. ये कण फेफड़ों में जाकर खांसी, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, हृदयाघात तथा कई गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं. 

डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों के अनुसार हवा में महीन कणों के रूप में मौजूद प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 का स्तर 10 माइक्रोन प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, वहीं पीएम 10 का स्तर 20 माइक्रोन प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होना चाहिए. हालांकि भारतीय मानकों में पीएम 2.5 का स्तर प्रति घनमीटर 40 माइक्रोग्राम निर्धारित है.
प्रदूषण के दूरगामी असर प्राणघातक भी हो सकते हैं. इससे लंग्स फाइब्रोसिस और फेफड़ों का कैंसर हो सकता है. 

प्रदूषण के कण जब मानव शरीर में रक्त में पहुंचते हैं तो ये शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित करते हैं, जिसका असर कई बार वर्षो बाद भी दिखाई देता है. इसके अलावा इससे ब्लड कैंसर का खतरा भी बढ़ता है. यही कारण है कि अधिकांश स्वास्थ्य विशेषज्ञों का अब यही मानना है कि यदि देश की राजधानी दिल्ली की हवा ऐसी ही बनी रही तो आने वाले समय में स्वस्थ इंसान भी फेफड़ों और रक्त कैंसर जैसी बीमारियों के शिकार हो सकते हैं. 

वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के ही कारण अब देशभर में नॉन स्मोकर्स में भी फेफड़ों का कैंसर होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. वायु प्रदूषण का प्रभाव मानव शरीर पर निरंतर घातक होता जा रहा है. हालांकि वायु प्रदूषण को लेकर आम धारणा है कि इससे श्वास संबंधी परेशानियां ज्यादा होती हैं लेकिन कई शोधों में स्पष्ट हो चुका है कि प्रदूषण के सूक्ष्म कण मस्तिष्क की सोचने-समझने की क्षमता को भी प्रभावित करते हैं. 

यही नहीं, इससे पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या में चालीस फीसदी तक गिरावट दर्ज की गई है, जिससे नपुंसकता का खतरा तेजी से बढ़ रहा है. वर्ष 1990 तक जहां 60 फीसदी बीमारियों की हिस्सेदारी संक्रामक रोग, मातृ तथा नवजात रोग या पोषण की कमी से होने वाले रोगों की होती थी, वहीं अब हृदय तथा सांस की गंभीर बीमारियों के अलावा भी बहुत सी बीमारियां वायु प्रदूषण के कारण ही पनपती हैं. 

वायु प्रदूषण की गंभीर होती समस्या का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश में हर 10वां व्यक्ति अस्थमा का शिकार है, गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी इसका खतरा मंडरा रहा है और कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. सिर के बालों से लेकर पैरों के नाखून तक अब वायु प्रदूषण की जद में होते हैं. नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 की रिपोर्ट के अनुसार देश में होने वाली संक्रामक बीमारियों में सांस संबंधी बीमारियों का प्रतिशत करीब 69 फीसदी है और देशभर में 23 फीसदी से भी ज्यादा मौतें अब वायु प्रदूषण के कारण ही होती हैं. 
विभिन्न रिपोर्टो में यह तथ्य भी सामने आया है कि भारत में लोगों पर पीएम 2.5 का औसत प्रकोप 90 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है.

‘वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक’ (एक्यूएलआई) की हालिया रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि वायु प्रदूषण न सिर्फ तरह-तरह की बीमारियां पैदा कर रहा है बल्कि लोगों की आयु भी घटा रहा है. विभिन्न अध्ययनों के अनुसार भारत की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसी जगहों पर रहता है, जहां पार्टिकुलेट प्रदूषण का औसत स्तर डब्ल्यूएचओ के मानकों से ज्यादा है. 

84 फीसदी व्यक्ति ऐसी जगहों पर रहते हैं, जहां प्रदूषण का स्तर भारत द्वारा तय मानकों से अधिक है. एक चौथाई आबादी बेहद प्रदूषित वायु में जीने को मजबूर है और यदि प्रदूषण का स्तर बरकरार रहता है तो उत्तर भारत में करीब 25 करोड़ लोगों की आयु में आठ साल से ज्यादा की कमी आ सकती है.

Web Title: How Rising air pollution is root cause of hundreds of diseases

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे