गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: शिक्षा में सुधार का इंतजार आखिर कब तक?
By गिरीश्वर मिश्र | Published: June 24, 2024 09:52 AM2024-06-24T09:52:18+5:302024-06-24T09:53:25+5:30
चुनावी घमासान में सबने एक स्वर से देश को आगे ले जाने की कसमें खाई थीं किंतु शिक्षा की प्रासंगिकता तथा रोजगार के लिए शिक्षा के महत्व को लेकर लगभग सभी मौन ही धारण किए रहे.
देश के सामर्थ्य के लिए शिक्षा का महत्व सभी जानते हैं, मानते हैं और बखानते हैं. समकालीन चर्चाओं में ‘युवा भारत’ की भूमिका सभी लोग दोहराते हैं और ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड’ की बातें करते नहीं थकते. चुनावी घमासान में सबने एक स्वर से देश को आगे ले जाने की कसमें खाई थीं किंतु शिक्षा की प्रासंगिकता तथा रोजगार के लिए शिक्षा के महत्व को लेकर लगभग सभी मौन ही धारण किए रहे.
शिक्षा और संस्कृति से जुड़े सवाल लगभग नदारद थे. घोषणा-पत्र, संकल्प-सूची और गारंटियों में शिक्षा द्वारा मनुष्य के निर्माण और उसके संवर्धन और संरक्षण से जुड़े प्रश्न की कोई जगह नहीं थी.
यह एक दुखद सत्य है कि स्वतंत्र भारत में चर्चाएं होती रहीं, आयोग बनते रहे, शोध रपटें आती रहीं, योजनाओं का खाका बनता रहा, कुछ आधे-अधूरे कदम भी उठाए गए परंतु कभी भी शिक्षा की ओर समग्रता से तथा व्यावहारिक स्तर पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा सका था. इसके लिए ढुलमुल और टालू नजरिया ही अपनाया जाता रहा.
मोदी सरकार के पहले दौर से ही वर्ष 2015 में शिक्षा में सुधार का वादा ही नहीं किया गया बल्कि बल्कि नई शिक्षा नीति बनाने की कवायद भी शुरू की गई. सांकेतिक पहल के रूप में ‘मानव संसाधन मंत्रालय’ का नाम ‘शिक्षा मंत्रालय’ कर दिया गया था.
दूसरे कार्यकाल में अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हुए सरकार 2020 में अंतरिक्ष विज्ञानी डॉ कस्तूरीरंगन की अगुआई में लम्बे सलाह-मशविरे के बाद नई शिक्षा नीति लाई. सबको आशा बंधी कि शिक्षा में एक नया सबेरा आने वाला है. उसकी कुछ झलक भी मिली थी, पर अभी भी लंबी दूरी तय करना शेष है.
अब 2024 में मोदी सरकार की 71 मंत्रियों की फौज के साथ तीसरी पारी सौ दिनी एजेंडे के साथ शुरू हो चुकी है. शिक्षा के लिए उसमें क्या जगह है यह तो स्पष्ट रूप से पता नहीं, पर पुराने शिक्षा मंत्री ही फिर से दायित्व संभाल रहे हैं और विभाग का कामधाम रूटीन में पहले जैसा ही चलता रहेगा.
याद रहे कि शिक्षा नीति-2020 कक्षा तीन से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा में ‘आमूल-चूल परिवर्तन’ लाने की विशाल महत्वाकांक्षा के साथ आगे बढ़ी थी. इस नीति को लागू करने की योजना पर खंड-खंड में कुछ काम भी शुरू हुआ.
कुछ समितियां बनीं, कुछ गोष्ठियां भी हुईं और साथ में अनेक स्तरों पर और विभिन्न समूहों के साथ विचार-विमर्श भी चलता रहा. नीति की आत्मा को समझ कर नियमों और व्यवस्थाओं में फेर-बदल भी हुए थे. कई परिवर्तन कुछ जगहों पर लागू हो चुके हैं पर प्रगति देखते हुए यही लगता है कि रस्म अदायगी ही हो रही है.