वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हम कैसे मनाएं हिंदी दिवस?
By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 14, 2019 06:36 AM2019-09-14T06:36:44+5:302019-09-14T06:36:44+5:30
आजकल कई टीवी चैनलों और अखबारों में कई बार ऐसे वाक्य सुनने और पढ़ने में आते हैं, जिनमें अंग्रेजी के शब्दों के बिना वे वाक्य पूरे ही नहीं होते. अंग्रेजी शब्द जबर्दस्ती ठूंस दिए जाते हैं.
हर 14 सितंबर को देश में हिंदी दिवस मनाया जाता है. आज देश में भाषा का परिदृश्य कैसा है? यदि वर्तमान सरकार वास्तव में राष्ट्रवादी सरकार बनना चाहती है तो उसे अंग्रेजी की अनिवार्यता हर जगह से खत्म करनी चाहिए. यदि मोदी सरकार देश में करोड़ों लोगों तक बैंकों का जाल फैलाना चाहती है तो उसे उन्हें भारतीय भाषाओं में काम करने के लिए बाध्य करना होगा. पाठशालाओं, अदालतों, विधानसभाओं, फौज, सरकारी भर्तियों और काम-काज में अंग्रेजी पर कठोर प्रतिबंध होना चाहिए. अत्यंत अपवाद के तौर पर ही उसकी अल्पावधि अनुमति होनी चाहिए.
यह तो हुआ सरकार का दायित्व, लेकिन सिर्फ सरकार के सक्रि य होने से काम नहीं बनेगा. जब तक जनता सचमुच हिंदी दिवस नहीं मनाएगी, हिंदी न तो सरकार में आएगी और न ही देश में आएगी. हिंदी दिवस पर देश के करोड़ों लोगों को संकल्प करना चाहिए कि वे अपने हस्ताक्षर हिंदी में या अपनी भाषा में ही करेंगे. देश के बाजारों में सारे नामपट्ट हिंदी और भारतीय भाषाओं में होने चाहिए. लोग अपने कार्यक्रमों, शादियों, समारोहों के निमंत्रण, अपने पत्र-शीर्ष, अपने परिचय-पत्र, अपना पत्र-व्यवहार आदि अपनी भाषा में करें. अपने बच्चों से और आपस में बातचीत भी अपनी भाषा में करें.
अपनी भाषा में दुनिया की सभी भाषाओं से शब्द लेने की छूट होनी चाहिए लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम हिंदी को भिखारी भाषा बना दें. आजकल कई टीवी चैनलों और अखबारों में कई बार ऐसे वाक्य सुनने और पढ़ने में आते हैं, जिनमें अंग्रेजी के शब्दों के बिना वे वाक्य पूरे ही नहीं होते. अंग्रेजी शब्द जबर्दस्ती ठूंस दिए जाते हैं. अपनी भाषा को जितना शुद्ध और स्वाभाविक रखा जा सके, उतना अच्छा!
यदि हम अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों, मुहावरों, कहावतों और शैलियों का प्रवेश हिंदी में करवा सकें तो वह राष्ट्रीय एकता और समरसता के लिए वरदान होगा. हिंदी-दिवस मनाने का अर्थ यह नहीं कि हम अहिंदीभाषियों पर हिंदी थोपने के पक्षधर हैं. कतई नहीं. भारत की समस्त भाषाएं समान सम्मान की अधिकारिणी हैं. जिस दिन हम हिंदीभाषी लोग अन्य भारतीय भाषाएं सीखना शुरू कर देंगे, हिंदी पूरे राष्ट्र की कंठहार बन जाएगी.