अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: आलाकमानों को चाहिए ताबेदार मुख्यमंत्री

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 29, 2021 11:17 AM2021-09-29T11:17:04+5:302021-09-29T11:21:09+5:30

गुजरात के मुख्यमंत्री आलाकमान के निर्देशों  पर चल रहे थे इसलिए हटाए गए. पंजाब के मुख्यमंत्री इसलिए हटाए गए कि वे आलाकमान की ताबेदारी करने से इनकार कर रहे थे. इसके आधार  पर हम आलाकमान संस्कृति की समझ फिर से बना सकते हैं.

high command culture cms gujarat punjab | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: आलाकमानों को चाहिए ताबेदार मुख्यमंत्री

कैप्टन अमरिंदर सिंह। (फाइल फोटो).

Highlightsगुजरात में हटाए गए मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के प्रति निष्ठाएं तो ऐसी थीं कि महामारी से लड़ने के लिए किस कंपनी से वेंटीलेटर खरीदे जाएं, यह भी तय करने के लिए दिल्ली से आदेश की प्रतीक्षा किया करते थे.पंजाब में कांग्रेस के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को यह मुगालता हो गया था कि वे कांग्रेस के उन क्षत्रपों की तरह हैं जो कांग्रेस के नेहरू युग में हुआ करते थे.उन्हें यह अंदाजा नहीं था कि जिन राहुल और प्रियंका को वे अनुभवहीन और गुमराह मानते हैं, उनका लालन-पालन नेहरू की संस्कृति में नहीं बल्कि इंदिरा गांधी की संस्कृति में हुआ है.

गुजरात में भाजपा के आलाकमान ने और फिर पंजाब में कांग्रेस के आलाकमान ने जो किया उसमें एक बड़ा अंतर है. इसके आधार  पर हम आलाकमान संस्कृति की समझ फिर से बना सकते हैं.

दिलचस्प बात यह है कि अंतर के बावजूद दोनों का नतीजा एक ही है. गुजरात के मुख्यमंत्री आलाकमान के निर्देशों  पर चल रहे थे इसलिए हटाए गए. पंजाब के मुख्यमंत्री इसलिए हटाए गए कि वे आलाकमान की ताबेदारी करने से इनकार कर रहे थे.

गुजरात में हटाए गए मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के प्रति निष्ठाएं तो ऐसी थीं कि महामारी से लड़ने के लिए किस कंपनी से वेंटीलेटर खरीदे जाएं, यह भी तय करने के लिए दिल्ली से आदेश की प्रतीक्षा किया करते थे. जाहिर था कि वे पूरी तरह से एक कठपुतली मुख्यमंत्री थे.

उन्हें कुछ भी तय करने या पहलकदमी लेने का अधिकार नहीं था. दिल्ली से चल रही हुकूमत का नतीजा यह निकला कि गुजरात में सरकार विरोधी भावनाएं जमा होती जा रही थीं. जब आलाकमान को लगा कि एंटीइन्कम्बेंसी बहुत ज्यादा जमा हो गई है, तो उसने रूपाणी को हटाकर नया मुख्यमंत्री बैठा दिया जो शायद पुराने से भी ज्यादा बड़ा ताबेदार साबित होने वाला है.

यह अलग बात है कि रूपाणी सरकार के खिलाफ एंटीइनकम्बेंसी जमा होने में आलाकमान की भूमिका ही सबसे ज्यादा रही है. लेकिन, आलाकमान तो बादशाह है और बादशाह के ऊपर कोई इल्जाम नहीं लगाया जा सकता, न ही वह कभी कोई जिम्मेदारी स्वीकार करता है.

पंजाब में कांग्रेस के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को यह मुगालता हो गया था कि वे कांग्रेस के उन क्षत्रपों की तरह हैं जो कांग्रेस के नेहरू युग में हुआ करते थे. उस जमाने में आलाकमान राज्यों की राजनीति में किसी भी तरह के निरंकुश हस्तक्षेप से परहेज किया करता था.

उसका मुख्य कारण यह था कि क्षेत्रीय नेताओं की हैसियत केंद्रीय नेताओं से कम नहीं हुआ करती थी. दरअसल, केंद्र की सत्ता चलती ही क्षेत्र के नेताओं के समर्थन से. अमरिंदर सिंह को यह भी लग रहा था कि तदर्थवाद पर चल रहा कांग्रेस का आलाकमान उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाएगा और वे अपनी मर्जी से राजनीति करते रहेंगे. उन्हें यह अंदाजा नहीं था कि जिन राहुल और प्रियंका को वे अनुभवहीन और गुमराह मानते हैं, उनका लालन-पालन नेहरू की संस्कृति में नहीं बल्कि इंदिरा गांधी की संस्कृति में हुआ है.

वे लोग बहुत दिनों तक अवज्ञा और अपनी सांगठनिक सत्ता की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं कर सकते इसीलिए पहले प्रियंका गांधी ने अमरिंदर सिंह के मुकाबले बहुत कम राजनीतिक हैसियत के नवजोत सिंह सिद्धू को उनके मुकाबले खड़ा किया. उनकी राय की पूरी तरह से उपेक्षा करते हुए सिद्धू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनवाया, और फिर अंत में अमरिंदर को अगले चुनाव के छह महीने पहले गद्दी छोड़ने पर मजबूर कर दिया.

यह तो रही आलाकमान के दबदबे की कहानी. इस प्रकरण का दूसरा व्यावहारिक सत्य यह है कि सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की उसे एंटीइनकम्बेंसी का सामना करने की युक्तियां तलाशनी पड़ती हैं. भाजपा का इस मामले में नारा है कि सारे के सारे बदल दो. यही फार्मूला उसने दिल्ली में एनडीएमसी के चुनाव में आजमाया था.

अमित शाह ने सभी पार्षदों का टिकट काट दिया था. नतीजा मनोवांछित निकला. पार्षदों के नकारापन और भ्रष्टाचार के कारण जमा हुई नाराजगी मंद पड़ गई और भाजपा फिर से चुनाव जीत गई. इसी तरह के नतीजे की अपेक्षा में भाजपा ने गुजरात में मुख्यमंत्री ही नहीं, बल्कि पूरा का पूरा मंत्रिमंडल ही बदल दिया.

जाहिर है कि वह गुजरात की जनता से कहना चाहती है कि एक बार वोट फिर दीजिए, फिर से आजमा कर देखिए, जिस मुख्यमंत्री से नाराजगी थी, उसे बदल दिया गया है.

पंजाब में कांग्रेस ने अमरिंदर की जगह चन्नी को बैठाया है जो दलित सिख हैं. लोकप्रिय भाषा में कहें तो यह मजबूरी में खेला गया 'मास्टर स्ट्रोक’ है. लेकिन, इससे कांग्रेस को लाभ हो सकता है. नई जनगणना (जिसके आंकड़े अभी आने बाकी हैं) के मुताबिक पंजाब में दलित आबादी करीब 38 $फीसदी है. इसमें हिंदू दलित भी हैं, और सिख दलित भी.
अकाली दल सोच रहा था कि बसपा से समझौता करके उसे कुछ दलित वोट मिल सकते हैं. इसी तरह आम आदमी पार्टी ने पिछली बार कांग्रेस के साथ दलित वोटरों में अच्छा खासा हिस्सा बंटाया था. 
इस बार कांग्रेस को उम्मीद है कि मुख्यमंत्री चन्नी उसे दलित वोट दिलवाएंगे, और पार्टी अध्यक्ष सिद्धू जाट सिख वोटों को खींच लाएंगे. एक हिंदू और एक जाट सिख उपमुख्यमंत्री भी बनाया गया है. यह भी वोटों को साधने की जुगाड़ है.

कुल मिलाकर कांग्रेस पंजाब में और भाजपा गुजरात में वोटरों की नाराजगी का सामना कर रही है. हमें नजर रखनी होगी कि एंटीइनकम्बेंसी को मंद करने की इन दोनों पार्टियों की ये तरकीबें कितना काम करती हैं.

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