ब्लॉग: क्या जहरीली हवा में सांस लेना हमारी नियति बन गई है?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: December 2, 2023 12:08 PM2023-12-02T12:08:54+5:302023-12-02T12:20:58+5:30

2018-19 में भारत में वायु प्रदूषण से 16.5 लाख लोगों की मौत हुई थी। यह भयावह आंकड़ा अब बढ़कर 22 लाख के आसपास पहुंच गया है। जर्मनी के 'मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री' के ताजा शोध में दावा किया गया है कि सभी स्रोतों से होने वाले वायु प्रदूषण से दुनियाभर में हर साल 51 लाख लोग जान गंवाते हैं।

Has breathing poisonous air become our destiny | ब्लॉग: क्या जहरीली हवा में सांस लेना हमारी नियति बन गई है?

फाइल फोटो

Highlightsप्राकृतिक आपदा, मानवजनित हादसा तथा सबसे घातक बीमारी से भी ज्यादा भयावह एवं जानलेवा2018-19 में भारत में वायु प्रदूषण से 16.5 लाख लोगों की मौत हुई थीवायु प्रदूषण से दुनियाभर में हर साल 51 लाख लोग जान गंवाते हैं

प्रदूषण दुनिया में किसी भी प्राकृतिक आपदा, मानवजनित हादसा तथा सबसे घातक बीमारी से भी ज्यादा भयावह एवं जानलेवा है। वायु प्रदूषण दुनिया में सबसे ज्यादा बीमारियां फैलाने तथा सर्वाधिक लोगों की जान लेने वाली मानवजनित त्रासदी है। केंद्र तथा राज्य सरकारें वायु प्रदूषण के प्रति गंभीर चिंता तो जताती हैं, लेकिन हवा को प्रदूषित करने वाली योजनाओं और परियोजनाओं को स्वीकृत करने में भी पीछे नहीं रहतीं। हम भले ही दुनिया की आर्थिक महाशक्ति के रूप में स्थापित हो रहे हों लेकिन हमें इस तथ्य को भी बेहिचक स्वीकार करना होगा कि वायु प्रदूषण भारत में सबसे ज्यादा है। 

2018-19 में भारत में वायु प्रदूषण से 16.5 लाख लोगों की मौत हुई थी। यह भयावह आंकड़ा अब बढ़कर 22 लाख के आसपास पहुंच गया है। जर्मनी के 'मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री' के ताजा शोध में दावा किया गया है कि सभी स्रोतों से होने वाले वायु प्रदूषण से दुनियाभर में हर साल 51 लाख लोग जान गंवाते हैं। इनमें से 21।8 लाख अर्थात दुनिया में वायु प्रदूषण से होने वाली कुल मौतों में से 40 फीसदी भारत में होती हैं। भारत एक विकासशील देश है। 

यहां पिछले कुछ दशकों में छोटे-बड़े हजारों उद्योग स्थापित हुए हैं, हजारों नई खदानें खुली हैं जिनके लिए पहाड़ एवं जंगल काटकर पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाया गया है, लोगों की क्रय शक्ति भी बढ़ी है जिससे वाहनों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, सभी तरह के निर्माणकार्य बेतहाशा बढ़ रहे हैं। एक विकसित होते हुए देश के लिए ये सब गतिविधियां अच्छे संकेत तो हैं लेकिन उसका दूसरा पहलू यह है कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचा कर तमाम गतिविधियां हो रही हैं। ऐसा नहीं है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए नियम-कानून बने नहीं हैं। 

हमारे देश में चाहे कारखाना लगाना हो, छोटी दुकान लगाना हो या मकान बनाना हो, वाहन बनाना और चलाना हो तो कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है। ये सारे नियम हवा को प्रदूषित होने से बचाने और पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं लेकिन सरकारी मशीनरियां यह सुनिश्चित नहीं करतीं कि नियमों का सख्ती से पालन न करने वाले दंडित हों। 

वायु प्रदूषण या पर्यावरण को नुकसान पहुंचानेवाली गतिविधियों पर अंकुश लगाने वाले सारे नियम दिखावा बनकर रह गए हैं। वायु प्रदूषण रोकने में गरीबी भी एक बड़ी बाधा है। शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी एक बड़ी आबादी रसोई गैस की पहुंच से दूर है। वे जलाऊ लकड़ी या कोयले का उपयोग ही खाना पकाने के लिए करते हैं। इस वक्त देश के प्रमुख शहरों में हवा की गुणवत्ता बहुत ज्यादा खराब है। 

लोग एक तरह से जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं। यह स्थिति रातों-रात पैदा नहीं हुई। बड़े-बड़े उद्योग, खेतों में कचरा जलाने, वाहनों तथा निर्माण कार्यों की लगातार बढ़ती संख्या जैसे तत्व इसके लिए जिम्मेदार हैं। 

स्थिति हर साल सुधरने के बजाय बिगड़ती ही जा रही है। प्रदूषण को लेकर अदालतें संज्ञान ले रही हैं, सरकार को फटकार लग रही है लेकिन हालात सुधर नहीं रहे हैं। जर्मनी ने तय कर लिया है कि 2030 तक वह कोयले से बिजली का उत्पादन पूरी तरह से बंद कर देगा। नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और चीन जैसे देश भी चरणबद्ध तरीके से स्वच्छ एवं नवीकरणीय उत्पादन पर जोर देने लगे हैं। इस सभी देशों ने भी कोयले से बिजली का उत्पादन धीरे-धीरे बंद करने के लिए ठोस कार्ययोजना बनाई है। 

इसके अलावा दुनिया के 70 से अधिक देशों ने उद्योगों की स्थापना के लिए प्रदूषण की रोकथाम के नियमों को बेहद सख्त बना दिया है। भारत में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले विशाल औद्योगिक संयंत्रों तथा परियोजनाओं को जनता के उग्र आंदोलन की परवाह किए बिना स्वीकृत कर दिया जाता है। विकास का विरोध कोई नहीं करता लेकिन लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने की अनुमति भी नहीं दी जा सकती। 

कोयला आधारित बिजली घरों तथा जहरीली गैसें हवा में घोलने वाले उद्योगों को आंख मूंदकर स्थापित किया जा रहा है। वायु प्रदूषण विश्वव्यापी समस्या है मगर भारत में हर साल वायु प्रदूषण से 22 लाख लोगों की मौत समस्या की भयावहता को दर्शाती है। हवा को साफ बनाने के लिए ठोस योजनाएं बनाकर उन्हें जनभागीदारी के साथ युद्धस्तर पर कड़ाई से लागू करना होगा।

Web Title: Has breathing poisonous air become our destiny

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