हर्षवर्धन आर्य का ब्लॉग: कांग्रेस की ओर लौटता ग्रामीण वोट बैंक
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 11, 2020 02:59 PM2020-01-11T14:59:21+5:302020-01-11T14:59:21+5:30
भाजपा को सबसे बड़ा झटका नागपुर में लगा. यह जिला केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तथा पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जैसे भाजपा दिग्गजों का गढ़ समझा जाता है. इसके बावजूद भाजपा जिला परिषद तथा पंचायत समिति में चारों खाने चित हो गई.
महाराष्ट्र में आधा दर्जन जिला परिषदों तथा साढ़े छह सौ से ज्यादा पंचायत समितियों के चुनावों ने कांग्रेस तथा भाजपा दोनों के लिए अच्छे-बुरे दोनों ही संकेत दिए हैं. कांग्रेस के लिए अच्छी बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में उसकी कमजोर होती जड़ें फिर से मजबूत होने लगी हैं. उसके लिए बुरा संकेत यह है कि आदिवासी उससे छिटकते जा रहे हैं. भाजपा के लिए शुभ संकेत यह है कि धुलिया की इकलौती जिला परिषद फतह करने के बावजूद छह जिला परिषदों में उसके सदस्यों की संख्या दोगुनी हो गई है और पंचायत समितियों में भी वह अन्य दलों से आगे रही है. उसके लिए बुरा संकेत यह है कि ग्रामीण इलाकों में उसने कांग्रेस, राकांपा का जो वोट बैंक अपनी ओर कर लिया था, वह उससे दूर होने लगा है.
जिन छह जिला परिषदों और उनके अंतर्गत आने वाली पंचायत समितियों के चुनाव हुए, वे गत वर्ष हुए लोकसभा एवं महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा, कांग्रेस, राकांपा तथा शिवसेना के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में पहली बड़ी कसौटी थे. कांग्रेस, राकांपा तथा शिवसेना की महाविकास आघाड़ी ने छह में से आधी जिला परिषदों में अलग-अलग चुनाव लड़ा था जबकि भाजपा अकेले ही मैदान में थी. नंदुरबार में कांग्रेस को बराबरी की टक्कर देकर तथा धुलिया में कांग्रेस-राकांपा से सत्ता छीनकर उसने इन आदिवासी पट्टों में अपनी बढ़ती ताकत का प्रदर्शन किया.
नंदुरबार तथा धुलिया में आदिवासी कांग्रेस के भरोसेमंद वोट बैंक रहे हैं, मगर वह उससे छिटक गए. एक और आदिवासी बहुल जिला पालघर भी कांग्रेस से आदिवासियों के दूर होने का गवाह है. यहां कांग्रेस को इकलौती सीट से संतोष करना पड़ा. इस जिले में आदिवासी वोटों का बंटवारा राकांपा, शिवसेना तथा भाजपा के बीच हुआ. गैर आदिवासी वोट खासकर ओबीसी ने भाजपा का दामन छोड़ शिवसेना व राकांपा का साथ दिया. नंदुरबार तथा धुलिया में गैरआदिवासी खासतौर पर दलित मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस के पक्ष में हुआ. ओबीसी वोटों को भी कांग्रेस ने अपनी ओर आकर्षित किया जो लोकसभा व विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ थे.
भाजपा को सबसे बड़ा झटका नागपुर में लगा. यह जिला केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तथा पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जैसे भाजपा दिग्गजों का गढ़ समझा जाता है. इसके बावजूद भाजपा जिला परिषद तथा पंचायत समिति में चारों खाने चित हो गई. नागपुर जिला परिषद के चुनाव में आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा ने अपनी पकड़ साबित की जबकि दलित मुस्लिम के साथ-साथ कुणबी एवं तेली वोट बैंक कांग्रेस से जुड़ गया. कुणबी तथा तेली वोट बैंक पर पिछले डेढ़ दशक से भाजपा की पकड़ थी. विधानसभा चुनाव में स्पष्ट हो गया था कि नागपुर जिले के ग्रामीण वोटों में कांग्रेस की वापसी हो रही है. नागपुर जिला परिषद एवं पंचायत समिति चुनाव के नतीजों ने इस धारणा की पुष्टि की.
अकोला जिला परिषद में भाजपा के वोट बैंक पर शिवसेना ने कब्जा कर लिया. इन चुनावों से एक बात और स्पष्ट हो गई कि नागरिकता कानून, तीन तलाक या अनुच्छेद 370 जैसे मसलों में ग्रामीण जनता की कोई दिलचस्पी नहीं है. जो किसानों के हितों के लिए संघर्ष करता दिखेगा, जीत उसी की होगी. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भले ही चौथे स्थान पर रही है, मगर 6 जिला परिषदों तथा पंचायत समितियों के चुनाव में सफलता के लिहाज से वह दूसरे स्थान पर रही. शिवसेना तथा राकांपा उससे बहुत पीछे रहीं. कांग्रेस के लिए यह शुभ संकेत है.