हरीश गुप्ता का ब्लॉग: बड़ी दुविधा में फंसे हुए हैं शरद पवार
By हरीश गुप्ता | Published: April 1, 2021 10:36 AM2021-04-01T10:36:40+5:302021-04-01T10:37:31+5:30
शरद पवार अपनी राजनीतिक विरासत को भी महाराष्ट्र में अपनी पुत्री लोकसभा सांसद सुप्रिया सुले को सौंपना चाहते हैं. हालांकि यह उन्हें अपने भतीजे अजित पवार के साथ संघर्ष में ला सकता है, जो दशकों से महाराष्ट्र में काम कर रहे हैं.
शरद पवार इन दिनों अपने राजनीतिक करियर की बहुत बड़ी दुविधा का सामना कर रहे हैं. हालांकि वे रिमोट कंट्रोल बटन के जरिये महाराष्ट्र सरकार को वस्तुत: चला ही रहे हैं, लेकिन खुश नहीं हैं.
वे राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य पर एक बड़ी भूमिका निभाना चाहते हैं. यह तभी संभव होगा जब कांग्रेस उनके विपक्ष का नेतृत्व करने पर सहमत हो या अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियां (कांग्रेस को छोड़कर) उनके नेतृत्व को स्वीकार करें.
इसके अलावा, पवार अपनी राजनीतिक विरासत को भी महाराष्ट्र में अपनी पुत्री लोकसभा सांसद सुप्रिया सुले को सौंपना चाहते हैं. हालांकि यह उन्हें अपने भतीजे अजित पवार के साथ संघर्ष में ला सकता है, जो दशकों से महाराष्ट्र में काम कर रहे हैं. महाराष्ट्र का एनसीपी कैडर अजित पवार को राज्य में स्वाभाविक पसंद के रूप में देखता है, जबकि सुप्रिया सुले राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका निभा सकती हैं.
दूसरे, सोनिया गांधी कांग्रेस और यूपीए के उल्लेखनीय रूप से कमजोर हो जाने के बावजूद मैदान छोड़ने के मूड में नहीं हैं. राहुल गांधी भी पीछे हटने के मूड में नहीं हैं. अगर पवार भाजपा से हाथ मिला लेते हैं तो क्या अपने उद्देश्यों को हासिल कर पाएंगे? कोई भी इस बारे में दावे से कुछ नहीं कह सकता.
भाजपा के लिए बंगाल टर्निग प्वाइंट!
दो मई को घोषित होने वाले पश्चिम बंगाल चुनाव के परिणाम भाजपा के लिए कई तरह से टर्निग प्वाइंट साबित होंगे. भाजपा की जीत न सिर्फ पार्टी की अखिल भारतीय पहुंच का मार्ग आसान करेगी, बल्कि आगामी वर्षो में पूरे राजनीतिक स्पेक्ट्रम पर मोदी-शाह की पकड़ मजबूत हो जाएगी.
ऐसा नहीं है कि केरल, असम, तमिलनाडु और पुडुचेरी के विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं. लेकिन भाजपा का पूरा ध्यान प. बंगाल को तृणमूल कांग्रेस से छीनने और असम में अपनी सत्ता बरकरार रखने तथा पुडुचेरी में एनआर कांग्रेस के सहयोगी की भूमिका निभाने पर है.
केरल में, भाजपा की प्राथमिकता कांग्रेस को हराने की है, फिर भले ही माकपा अपने गढ़ को बचा ले जाए. भाजपा ने केरल में कांग्रेसियों के लिए अपने द्वार बड़े पैमाने पर खोल दिए हैं. सत्ता के गलियारे के जानकार सूत्र बताते हैं कि हो सकता है उसका वामपंथियों के साथ अलिखित समझौता हो.
बदले में वामपंथियों ने प. बंगाल में भाजपा की अप्रत्यक्ष मदद की. वामपंथियों का प. बंगाल में ताजा नारा है, ‘‘आगे राम, पोरे बाम (राम पहले, वाम बाद में).’’ इसका मतलब है कि पहले ममता को गद्दी से उतारो और भाजपा को इस बार सत्ता हासिल कर लेने दो.
भाजपा ने ठीक ऐसी ही चाल पंजाब में भी 2017 में चली थी, जब उसने आम आदमी पार्टी को हराने के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह की जीत को सुनिश्चित किया था. इसलिए यह सबसे अधिक चौंकाने वाला है कि क्यों राहुल गांधी प. बंगाल में वामपंथी पार्टियों के जाल में फंस गए और ममता के सुलह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
कमजोर विकेट पर ममता बनर्जी
ममता बनर्जी जन्मजात योद्धा हो सकती हैं लेकिन कई लड़ाइयां अतीत की बातें हो चुकी हैं. 2021 के चुनाव में वे कमजोर विकेट पर हैं. इसमें कई कारकों का हाथ है जैसे एंटी इन्कम्बेंसी, अनेक शक्तिशाली नेताओं का उनका साथ छोड़ जाना, अभिषेक बनर्जी फैक्टर (पार्टी में ममता के भतीजे का उद्भव) और भाजपा का ध्रुवीकरण में कामयाब होकर हिंदू वोटों को अपनी ओर खींचना.
मुस्लिम वोटों का बंटवारा होता है या नहीं, यह दो मई को ही पता चलेगा. लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि बिहार में राजद-कांग्रेस को ओवैसी फैक्टर की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी. अंतिम लेकिन बड़ा दांव है प्रधानमंत्री की बांग्लादेश में मतुआ समुदाय के ऐतिहासिक मंदिर की यात्रा, जिसने भाजपा को बड़ी बढ़त दे दी है.
मतुआ समुदाय के वोट 40-45 सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. और प्रत्येक चुनाव में सीबीआई, ईडी, एनआईए, एनसीबी जैसी केंद्रीय एजेंसियों की जो भूमिका होती है,हमें उसे नहीं भूलना चाहिए. क्या पांसा पलट रहा है? दो मई का इंतजार करें.
बंगाल के बाद भाजपा का बड़ा लक्ष्य
प. बंगाल में भाजपा की जीत 2022 में भाजपा को राज्यसभा में पूर्ण बहुमत दे सकती है, जिससे प्रधानमंत्री मोदी को अपनी महत्वाकांक्षी ‘एक देश, एक चुनाव’ योजना को क्रियान्वित करने का मौका मिल सकता है. भाजपा के 95 राज्यसभा सदस्य हैं और 245 सदस्यों के सदन में उसे कामचलाऊ बहुमत हासिल है.
कई क्षेत्रीय पार्टियां जैसे बीजद, वाईएसआर कांग्रेस, तेदेपा और डीएमके की इस परिस्थिति में वस्तुत: कोई भूमिका नहीं है. पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव समूचे विपक्ष और खासतौर पर कांग्रेस के लिए भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं. तृणमूल की जीत से भाजपा के खिलाफ संयुक्त मोर्चा का उदय हो सकता है.
कांग्रेस पार्टी की भूमिका उसके केरल, असम और पुडुचेरी के प्रदर्शन पर निर्भर करेगी. यही वजह है कि नीतीश कुमार, शरद पवार और अन्य प्रमुख नेता धैर्यपूर्वक इंतजार कर रहे हैं.