हरीश गुप्ता का ब्लॉगः पेगासस मामले की जांच जाएगी ठंडे बस्ते में!

By हरीश गुप्ता | Published: November 11, 2021 04:03 PM2021-11-11T16:03:01+5:302021-11-11T16:03:21+5:30

तीन सदस्यीय समिति में एक प्रमुख सदस्य आलोक जोशी हैं जो रॉ और राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (एनटीआरओ) के पूर्व प्रमुख हैं। वे अमेरिका के लिए रवाना हो गए हैं और अगले सप्ताह लौटेंगे।

harish gupta blog pegasus case investigation will be in cold storage | हरीश गुप्ता का ब्लॉगः पेगासस मामले की जांच जाएगी ठंडे बस्ते में!

हरीश गुप्ता का ब्लॉगः पेगासस मामले की जांच जाएगी ठंडे बस्ते में!

पत्रकारों, विपक्षी नेताओं और अन्य लोगों के खिलाफ पेगासस स्पाइवेयर के इस्तेमाल की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति कछुआ गति से आगे बढ़ रही है, जबकि इसे अपनी रिपोर्ट जमा करने के लिए आठ सप्ताह का ही समय दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर निगरानी के संबंध में गोपनीयता बनाए रखने की आवश्यकता है जबकि पेगासस स्पाइवेयर के उपयोग के आरोपों से स्पष्ट रूप से इनकार नहीं किया गया है।

तीन सदस्यीय समिति में एक प्रमुख सदस्य आलोक जोशी हैं जो रॉ और राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (एनटीआरओ) के पूर्व प्रमुख हैं। वे अमेरिका के लिए रवाना हो गए हैं और अगले सप्ताह लौटेंगे। जांच समिति में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर।वी। रवींद्रन सहित जोशी और तकनीकी विशेषज्ञ संदीप ओबेरॉय शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि स्पाइवेयर को कथित तौर पर एनटीआरओ द्वारा आयात किया गया था, जब आलोक जोशी ने 2015 में रॉ प्रमुख के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद नवंबर 2018 तक इसका नेतृत्व किया था। लेकिन वे अपनी निजी जानकारी के बारे में सुप्रीम कोर्ट कमेटी में खुलासा नहीं कर सकते क्योंकि यह गोपनीयता की शपथ का उल्लंघन होगा। अंदरूनी सूत्रों का यह भी कहना है कि जब उनसे संपर्क किया गया तो जोशी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति का हिस्सा बनने के लिए सरकार से अनौपचारिक सहमति मांगी थी। इस समिति की सहायता तीन साइबर विशेषज्ञ करेंगे- गुजरात के डॉ। नवीन कुमार चौधरी, केरल के डॉ। प्रभारन पी और मुंबई के डॉ। अश्विन अनिल गुमस्ते। समिति लुटियंस दिल्ली में कार्यालय के लिए स्थान की तलाश कर रही है और अभी तक काम करना शुरू नहीं किया है। अंदरूनी सूत्रों की मानें तो सिर्फ इन सभी प्रशासनिक मुद्दों में ही आठ सप्ताह लग जाएंगे। कई लोगों को लगता है कि यह एक लंबी कवायद साबित होगी।

चन्नी ने कैसे जीता गांधी परिवार का दिल
पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को कभी पीसीसी प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू की डमी कहकर खारिज कर दिया गया था। लेकिन कुछ ही हफ्तों में वह उनके साये से बाहर आ गए और आम आदमी के सीएम बन गए। वस्तुत: उनकी कामयाबी का असली राज यह है कि उन्होंने हाल ही में सोनिया गांधी और राहुल का दिल जीत लिया है। वे चुपचाप दिल्ली गए, गांधी परिवार से मुलाकात की और उनसे कहा कि पंजाब के चुनाव राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़े जाएंगे। स्वाभाविक है कि राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी को यह अच्छा लगा। चन्नी ने कहा कि राहुल गांधी आम आदमी हैं और आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा वे नियमित रूप से उनका अनुसरण कर रहे हैं। आम आदमी का प्रतिनिधित्व राहुल गांधी करते हैं, न कि आम आदमी पार्टी (आप)। उन्होंने एआईसीसी को पूरी तरह से समर्थन देने का भी वादा किया, जो संसाधनों के बड़े संकट का सामना कर रही है। कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री रहते हुए एआईसीसी को अधिक आर्थिक सहायता नहीं देते थे।

चन्नी ने राहुल गांधी से कहा कि उन्होंने बिजली की कीमतों में 3 रुपए की कमी करके और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में भारी कटौती करके पांसा पलट दिया है। यहां तक कि राजनीतिक पंडित भी, जिन्होंने अगले मार्च में पंजाब में चौतरफा मुकाबले में चन्नी को चौथे स्थान पर रख कर दरकिनार कर दिया था, वे भी अपनी गणनाओं को दुरुस्त कर रहे हैं। चुनाव विशेषज्ञों ने आप को चार में से पहले स्थान पर रखा था, उसके बाद अकाली दल-बसपा गठबंधन, भाजपा-अमरिंदर सिंह-ढींडसा गठबंधन और फिर कांग्रेस। लेकिन चन्नी ने इन चुनाव विशेषज्ञों को फिर से विचार करने के लिए विवश कर दिया है। चन्नी को पहले दिन से ही लोकप्रियता तब मिली जब वे मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद ‘भांगड़ा पार्टी’ में शामिल हुए। वे एक पंजाबी सिख बन गए जो सभी के साथ घुलमिल गए और अनुभवी प्रकाश सिंह बादल का अनुसरण किया। दलित पहले से ही उनके शामिल होने से खुश हैं और बसपा का अभियान पंर हो गया है। कैप्टन अमरिंदर सिंह का अभियान अभी शुरू भी नहीं हुआ है क्योंकि उन्होंने अभी तक अपने फार्म हाउस से बाहर कदम नहीं रखा है।

निकाले गए मंत्रियों को अकेला छोड़ा
केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल करना और निकालना एक सतत प्रक्रिया है और प्रधानमंत्री मोदी इसे नियमित अंतराल पर करते रहे हैं। लेकिन इस जुलाई में 12 वरिष्ठ मंत्रियों को एक बार में ही निकालना अभूतपूर्व था। यह और भी आश्चर्य की बात है कि हटाए गए 12 मंत्रियों में से 11 को कहीं भी कोई पद नहीं दिया गया है। थावरचंद गहलोत भाग्यशाली थे कि उन्हें कर्नाटक में राज्यपाल का पद मिला। बाबुल सुप्रियो (पश्चिम बंगाल) काफी समझदार थे कि उन्होंने भाजपा छोड़ दी और टीएमसी में शामिल हो गए। अन्यथा रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, डॉ. हर्षवर्धन जैसे दिग्गज लोगों को पार्टी में अथवा पी।पी। चौधरी या जयंत सिन्हा की तरह किसी संसदीय समिति का नेतृत्व करने के लिए कोई कार्यभार नहीं मिला है। यहां तक कि डी.वी. सदानंद गौड़ा, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ और संतोष कुमार गंगवार अभी भी झटके की स्थिति से उबर नहीं पाए हैं। सत्ता के गलियारों में फुसफुसाहट है कि वे अन्य हाई-प्रोफाइल नेताओं की तरह कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलने के इंतजार में हैं।

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