हरीश गुप्ता का ब्लॉगः सुषमा स्वराज की सलाह से भाजपा सांसदों में बेचैनी

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 3, 2018 04:57 AM2018-08-03T04:57:28+5:302018-08-03T04:57:28+5:30

आज के मुद्देः- सुषमा स्वराज की डांट, कांग्रेस कम सीटों पर चुनाव लड़ेगी?, अमित शाह का 51 प्रतिशत वोट का सपना, उपसभापति के कक्ष का बंटवारा!

Harish Gupta Blog on Sushma Swaraj, Loksabha Election and Deputy Speaker of Rajyasabha | हरीश गुप्ता का ब्लॉगः सुषमा स्वराज की सलाह से भाजपा सांसदों में बेचैनी

हरीश गुप्ता का ब्लॉगः सुषमा स्वराज की सलाह से भाजपा सांसदों में बेचैनी

हरीश गुप्ता

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज बहुत सावधानीपूर्वक बोलती हैं। वे बोलने में इतनी सतर्क रहती हैं कि लोगों को ताज्जुब होता है कि क्या ये वही सुषमा हैं जो कभी हमेशा फ्रंट फुट पर रहती थीं और फायर ब्रांड स्पीकर थीं! जब से वे मोदी सरकार में मंत्री बनी हैं, उनमें काफी बदलाव आ गया है। हालांकि हाल ही में उन्होंने विगत मंगलवार को भाजपा के संसदीय दल की बैठक में सबको चकित कर दिया। उन्होंने वहां मौजूद भाजपा के सैकड़ों सांसदों से कहा कि उन्हें दस अगस्त के बाद दिल्ली में नहीं दिखना चाहिए। उन्हें हर गांव-कस्बे में मोदीजी की योजनाओं और मोदी सरकार की उपलब्धियों तथा सफलता की कहानी के बारे में लोगों को बताना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर सांसद को दस अगस्त के बाद दिल्ली में नहीं बल्कि अपने निर्वाचन क्षेत्र में होना चाहिए।

बैठक में भूजल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के संबोधन के तुरंत बाद बोलने वाली सुषमा ने सांसदों को स्पष्ट संदेश दिया कि उन्हें अब सिर्फ अपने निर्वाचन क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए। सांसद उनकी बात सुनकर चकित थे, जिन्होंने इन चर्चाओं के बीच कि नवंबर-दिसंबर में चार राज्यों - राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के विधानसभा चुनाव के साथ-साथ लोकसभा चुनाव भी हो सकते हैं, यह लगभग घोषित कर दिया कि मानसून सत्र संसद का आखिरी सत्र हो सकता है। हैरानी की बात है कि न तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाद में बोलते हुए उनकी बात का खंडन किया। इस पेचीदा मुद्दे पर मोदी और शाह की चुप्पी ने सांसदों को चिंतित कर दिया है। चूंकि सुषमा जल्दबाजी करने के लिए नहीं जानी जाती हैं, इसलिए सांसदों को समझ में नहीं आ रहा है कि वे आगे क्या करें। उन्हें बेहतर यही लग रहा है कि सुषमा बहनजी के निर्देशानुसार दस अगस्त के बाद राजधानी छोड़ दें।
 
कांग्रेस कम सीटों पर चुनाव लड़ेगी?

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी के शीर्ष नेताओं के सामने स्पष्ट कर दिया है कि वह गठबंधन चाहते हैं। लेकिन यह गठबंधन सिर्फ चार राज्यों - महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु तक ही सीमित होगा। अन्य राज्यों में पार्टी कुछ सीटों का समायोजन कर सकती है। लेकिन अकेले इन चार राज्यों में ही लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 208 सीटें हैं। इन चार राज्यों में  अगर गठबंधन हुआ तो कांग्रेस 50-54 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस नई व्यवस्था के तहत महाराष्ट्र में 22, उत्तर प्रदेश में 10, बिहार में 12 और तमिलनाडु में 10 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। पी. चिदंबरम ने जब पीएम मोदी को हराने के लिए देशव्यापी गठजोड़ की वकालत की तो राहुल ने उन्हें स्पष्ट रूप से यह बताया। 

राहुल ने कहा कि इन चार राज्यों में पार्टी गठबंधन करेगी और अन्य राज्यों में सीटों का समायोजन हो सकता है। उन्होंने किसी अन्य राज्य का नाम नहीं लिया, लेकिन प. बंगाल में ममता बनर्जी के साथ कांग्रेस गठबंधन नहीं बल्कि सीटों का समायोजन करेगी और 42 में से 8 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसका मतलब है कि 250 सीटों में से कांग्रेस सिर्फ 60 सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी। ममता ने बुधवार को सोनिया गांधी से मुलाकात की और गठबंधन बाबत व्यापक चर्चा की। लेकिन यह स्पष्ट है कि कांग्रेस 2019 में मोदी की हार सुनिश्चित करने के लिए अपनी सीटों में बड़ी कटौती करने को तैयार है। 

सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने देश भर में 461 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन युवा राहुल गांधी के नेतृत्व में चीजें अलग हैं, जो कि यथार्थवादी हैं और अब निर्णय लेने में त्वरित हैं। यदि चीजें योजनानुसार हुईं तो कांग्रेस लोकसभा की 265-280 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार दिखती है। केरल में वह पहले से ही गठबंधन में है और मायावती के साथ उत्तर प्रदेश के बाहर भी गठबंधन करने से कांग्रेस  का आंकड़ा और भी कम हो सकता है। लेकिन एक बात निश्चित है; कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन की मारक क्षमता निश्चित रूप से अनुमान से कहीं अधिक होगी।

अमित शाह का 51 प्रतिशत वोट का सपना

विरोधाभासी संकेतों के बीच, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यह स्पष्ट कर दिया कि लोकसभा के लिए समयपूर्व चुनाव नहीं होगा। शाह ने कहा कि भाजपा लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए इच्छुक थी। लेकिन जब तक इस बारे में आम सहमति नहीं बन जाती, इस प्रस्ताव को टुकड़ों में लागू नहीं किया जाएगा। ‘‘जल्दी चुनाव कराने का कोई सवाल ही नहीं है, हम एक घंटा पहले भी सत्ता नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि जनता ने हमें पांच साल का जनादेश दिया है।’’

उन्होंने अपनी कोर ग्रुप टीम से कहा। इस योजना के पीछे का तर्क बताते हुए अमित शाह ने कहा कि भाजपा का लक्ष्य लोकसभा चुनाव में 51 प्रतिशत वोट हासिल करना है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश के कैराना उपचुनाव में 47 प्रतिशत वोट हासिल किया, जो कि पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में सबसे कठिन सीट थी. लेकिन भाजपा ने 2014 के 41 प्रतिशत वोट के आंकड़े में सुधार कर कैराना में 47 प्रतिशत वोट हासिल किया। अमित शाह विपक्ष की एकता से चिंतित नहीं हैं और बताया जाता है कि उन्होंने कहा, ‘‘हम खुश हैं कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट किया गया है, इससे हमको फायदा मिलेगा क्योंकि उनकी मोदी से तुलना नहीं हैं। इससे भाजपा को चुनावों के दौरान 5 प्रतिशत मतों का फायदा मिलेगा।’’ लेकिन 51 प्रतिशत तक कैसे पहुंचेंगे, इसका उत्तर उनके पास नहीं है।

उपसभापति के कक्ष का बंटवारा!

राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं, क्योंकि सरकार राज्यसभा में संख्याबल की कमी के कारण इसे कराने की इच्छुक नहीं है। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने इस पद के लिए आम सहमति की संभावनाएं तलाशने की कोशिश की, लेकिन सरकार की ओर से बताया गया कि संसद के मानसून सत्र के दौरान ऐसा करना संभव नहीं होगा। अब पता चला है कि उपराष्ट्रपति ने उपसभापति के विस्तृत कक्ष को अपने अधिकार में ले लिया है ताकि खाली रहने के दौरान इसका बेहतर उपयोग किया जा सके। दर्जनों कुर्सियों के साथ एक डाइनिंग टेबल वहां रख दी गई है और एक अस्थायी विभाजन बना दिया गया है। चूंकि उपसभापति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति को लंबे समय तक बैठना पड़ता है, इसलिए उन्होंने वहीं एक बिस्तर लगवाने का फैसला किया ताकि दोपहर के आराम के लिए उन्हें 6 मौलाना आजाद रोड स्थित अपने निवास तक न जाना पड़े। बहरहाल, इस पद को भरे जाने की कोई जल्दी नहीं है, क्योंकि उपराष्ट्रपति दोहरी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

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