ब्लॉग: पीएम मोदी ने आखिर अमित शाह को फिर क्यों यूपी में सौंपी 403 में से 300 सीटें जिताने की जिम्मेदारी?

By हरीश गुप्ता | Published: February 3, 2022 10:15 AM2022-02-03T10:15:19+5:302022-02-03T10:17:53+5:30

इस साल जुलाई में देश में राष्ट्रपति चुनाव होना है। ऐसे में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव का असर स पर साफ तौर पर होगा। खासकर उत्तर प्रदेश में सत्ता पर कौन काबिज होता है, ये देखना अहम होगा।

Harish Gupta blog: Impact of assembly elections on next President election | ब्लॉग: पीएम मोदी ने आखिर अमित शाह को फिर क्यों यूपी में सौंपी 403 में से 300 सीटें जिताने की जिम्मेदारी?

अगले राष्ट्रपति के चयन पर चुनाव का असर! (फाइल फोटो)

जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा था कि यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे राष्ट्रीय राजनीति पर असर डालेंगे, तो किसी ने भी ध्यान नहीं दिया. चुनावी बयानबाजी मानकर बयान को काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया गया था. लेकिन जो लोग अमित शाह को करीब से जानते हैं, उनका कहना है कि वे सिर्फ बातें करने के लिए नहीं जाने जाते बल्कि काम करने में विश्वास रखते हैं. 

उनके प्रशंसक भले ही उन्हें ‘चाणक्य’ कहते हों, लेकिन उनके विरोधियों का कहना है कि उनकी एकमात्र ताकत यह है कि वे प्रधानमंत्री के विश्वासपात्र हैं. उन्हें जो करने के लिए कहा जाता है, वे उसे पूरा करते हैं और दो दशकों से अधिक समय से नरेंद्र मोदी के दाहिने हाथ बने हुए हैं. 

इसलिए, जब वह सार्वजनिक तौर पर कुछ कहते हैं, तो उनके शब्दों को राजनीतिक दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता होती है. आखिरकार, प्रधानमंत्री ने उन्हें एक लंबी खामोशी के बाद यूपी में चुनाव अभियान की कमान संभालने और एनडीए को 403 में से 300 सीटें जिताने की जिम्मेदारी सौंपी है. ये सीटें इस साल जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए महत्वपूर्ण हैं. 

देश में राजनीतिक ताकतों का पुनर्गठन यूपी विधानसभा चुनावों के नतीजे पर निर्भर करता है. एक प्रतिकूल परिणाम सभी भाजपा विरोधी ताकतों को एक मंच पर ले आएगा. ये ताकतें शरद पवार या दक्षिण अथवा पूर्व के किसी व्यक्ति को भारत का अगला राष्ट्रपति बनाने के लिए अपने मतभेदों को भूल सकती हैं. 

एनडीए को फिलहाल निर्वाचक मंडल के करीब 11 लाख इलेक्टोरल वोटों में मामूली बढ़त हासिल है. भाजपा को बीजद, वाईएसआर-कांग्रेस, टीआरएस या यहां तक कि द्रमुक जैसे सहयोगियों की आवश्यकता होगी. 

केंद्र में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए यूपी में भाजपा के लिए आसान जीत जरूरी है. कोई भी प्रतिकूल परिणाम भाजपा के भीतर और अधिक हलचल पैदा कर सकता है और कई दरकिनार किए गए नेता केवल उसी क्षण का इंतजार कर रहे हैं. यही कारण है कि मोदी, भाजपा और आरएसएस ने यूपी चुनाव के पीछे अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.

अमित शाह की वापसी

पांच राज्यों के चुनावों में अमित शाह अब भाजपा का सबसे सक्रिय चेहरा हैं. पीएम ने शाह से यूपी चुनावों की कमान संभालने के लिए कहा. पिछले साल कुछ समय के लिए शाह लो-प्रोफाइल बने हुए थे. वे ज्यादा दिखाई नहीं दे रहे थे और अंदरूनी सूत्रों को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है. लेकिन यह मोदी और शाह के बीच की बात थी और किसी तीसरे व्यक्ति को कोई सुराग नहीं मिला. 

यह वह समय था जब भाजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष जे.पी. नड्डा शीर्ष पर थे और सुर्खियों में बने हुए थे. लेकिन स्थिति बदल गई और शाह को देर रात तक भाजपा मुख्यालय में सभी शीर्ष नेताओं के साथ बैठक करते देखा गया. यहां तक कि जब नड्डा इस तरह की बैठकों में शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं हो पाते थे और केवल आभासी रूप से ही शामिल हो पाते थे, तब भी शाह को कमान संभालते हुए देखा गया था, जबकि अन्य लोग संकोची थे. 

भाजपा मुख्यालय में शाह की नियमित उपस्थिति ने लोगों को उन दिनों की याद दिला दी जब शाह 2014-19 के बीच भाजपा अध्यक्ष थे और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे थे. पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के इस दौर में पुराने अमित शाह की वापसी देखी गई है और वे इसका लुत्फ उठा रहे हैं.

भाई-बहन की चूक

राहुल गांधी खुश थे कि पंजाब में पार्टी के सभी 117 उम्मीदवार उनके पीछे थे, जब वे पिछले हफ्ते स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने गए थे. जब पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार नवजोत सिंह सिद्धू और मौजूदा सीएम चरणजीत सिंह चन्नी दोनों ने उनके नेतृत्व पर भरोसा जताया तो उन्हें बेहद खुशी हुई. दोनों चाहते थे कि राहुल पार्टी के मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा करें और वह जिसे भी नामित करेंगे, उनके फैसले को स्वीकार करेंगे. 

राहुल ने मीडिया के सामने घोषणा की कि वे पार्टी कार्यकर्ताओं से परामर्श करने के बाद सीएम चेहरे की घोषणा करेंगे. शायद, राहुल उम्मीदवार के नाम की घोषणा करने के नुकसान को भूल गए जब राज्य में कम से कम 30 प्रतिशत दलित वोटों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक सीएम पहले से मौजूद है. यदि वे एक ‘अस्थिर दिमाग’ वाले सिद्धू की घोषणा करते हैं, तो कांग्रेस दलितों को खो देगी और यदि चन्नी की घोषणा की जाती है, तो जाट खुश नहीं होंगे. क्या विरोधाभास है! लेकिन खुद को और पार्टी को इस उलझन भरी स्थिति में डालने के लिए खुद राहुल गांधी जिम्मेदार हैं. 

अब गेंद सोनिया गांधी के पाले में डाल दी गई है कि वे गड़बड़ी को सुलझाएं. इससे पहले, प्रियंका गांधी वाड्रा ने ‘मेरे अलावा आपको और कौन नजर आता है’ कहने की यही घातक गलती की, जब मीडिया वालों ने जानना चाहा कि यूपी में कांग्रेस का मुख्यमंत्री पद का चेहरा कौन होगा. प्रेस कॉन्फ्रेंस की योजना पहले से बना ली गई थी और उन्हें समुचित जानकारी भी दे दी गई थी. फिर भी वे रौ में बह गईं और बाद में स्वीकार किया कि यह अनपेक्षित था. लेकिन नुकसान हो चुका था.

Web Title: Harish Gupta blog: Impact of assembly elections on next President election

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