एम. वेंकैया नायडू का ब्लॉग: गुरुनानक देव की शिक्षाएं दुनिया के लिए जरूरी
By एम वेंकैया नायडू | Published: November 12, 2019 08:41 AM2019-11-12T08:41:06+5:302019-11-12T08:41:06+5:30
गुरुनानकजी ने न केवल सिख धर्म के प्रमुख सिद्धांतों को सूत्रबद्ध किया, बल्कि यह सुनिश्चित करने का भी ध्यान रखा कि उनकी शिक्षाएं हमेशा प्रासंगिक रहें. समानता के आदर्श को समुदाय के भोजन में ठोस संस्थागत रूप दिया गया, जिसे ‘लंगर’ कहा जाता है, जहां जाति, पंथ, क्षेत्र और धर्म के भेदभाव के बिना, सभी ‘पंगत’ में बैठते हैं और एक साथ भोजन करते हैं.
आज जब हम महान आध्यात्मिक संत, गुरुनानक देवजी का 550वां प्रकाश पर्व मना रहे हैं, पूरी दुनिया में शांति, समानता और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए उनके विचार व शिक्षाओं को याद करना प्रासंगिक है. एक ऐसी दुनिया में, जो संकीर्णता, कट्टरता और हठधर्मिता की वजह से तेजी से विभाजित हो रही है, व्यक्तियों, समुदायों और देशों को सतत भयभीत करने वाले अंधेरे को दूर करने के लिए हमें गुरुनानक देवजी और अन्य महान गुरुओं के बताए रास्ते पर चलने की जरूरत है.
गुरुनानकजी जैसे प्रबुद्ध पथप्रदर्शकों के कालातीत संदेशों से हमारा वैश्विक दृष्टिकोण लगातार व्यापक हुआ है. गुरुनानकजी जैसे ‘भविष्यद्रष्टा’ वह देख पाते हैं जो आम लोग नहीं देख पाते. वे अपनी अंतर्दृष्टि और विचारों के माध्यम से लोगों के जीवन को समृद्ध करते हैं. वास्तव में, ‘गुरु’ शब्द का अर्थ ही यही है. गुरु वह होता है जो उजाला प्रदान करता है, संदेह दूर करता है और रास्ता दिखाता है. हममें से हर एक गुरुनानकजी जैसे महान व्यक्तित्व की शिक्षाओं से बहुत कुछ सीख सकता है.
गुरुनानकजी समानता के बहुत बड़े हिमायती थे. उनके लिए जाति, पंथ, धर्म व भाषा के आधार पर भेदभाव और पहचान निर्थक थे. उन्होंने कहा था, ‘‘जाति और जन्म के आधार पर भेदभाव निर्थक है. ईश्वर सभी प्राणियों को आश्रय देता है.’’ उन्होंने एक ऐसा समाज बनाने का लक्ष्य रखा, जहां किसी प्रकार का ऊंच-नीच न हो. महिलाओं के लिए आदर और लैंगिक समानता जैसी महत्वपूर्ण बातें भी गुरुनानक देवजी के जीवन से सीखी जा सकती हैं. महिलाओं के संदर्भ में वे कहते हैं: ‘‘जब वे पुरुषों को जन्म देती हैं तो वे कैसे हीन हो सकती हैं? पुरुषों के समान ही महिलाएं ईश्वर की कृपापात्र हैं.’’ उनके दृष्टिकोण से, पूरी दुनिया ईश्वर की सृष्टि है और सभी समान पैदा होते हैं. उनका सजर्क एक ही परमेश्वर है. ‘‘इक ओंकार सतनाम’’.
गुरुनानकजी ने न केवल सिख धर्म के प्रमुख सिद्धांतों को सूत्रबद्ध किया, बल्कि यह सुनिश्चित करने का भी ध्यान रखा कि उनकी शिक्षाएं हमेशा प्रासंगिक रहें. समानता के आदर्श को समुदाय के भोजन में ठोस संस्थागत रूप दिया गया, जिसे ‘लंगर’ कहा जाता है, जहां जाति, पंथ, क्षेत्र और धर्म के भेदभाव के बिना, सभी ‘पंगत’ में बैठते हैं और एक साथ भोजन करते हैं.
ये संस्थागत संरचनाएं समानता और गैर-भेदभाव की गुरु की कालातीत दृष्टि के स्पष्ट प्रमाण हैं. समानता की यह भावना गुरुनानक देवजी की इस स्पष्ट मान्यता के साथ शुरू हुई कि हिंदू और मुसलमान में कोई भेद नहीं है. उनके लिए कोई भी देश पराया नहीं था. यह ध्यान देने योग्य है कि गुरुनानकजी ने 16वीं शताब्दी में ही विभिन्न धर्मो के बीच संवाद शुरू किया था और अपने समय के अधिकांश धार्मिक संप्रदायों के साथ बातचीत की थी.
दुनिया को ऐसी ही आध्यात्मिक विभूतियों की जरूरत है जो शांति, स्थिरता और सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक सार्थक बातचीत में संलग्न हो सकें.
गुरुनानकजी का दृष्टिकोण व्यावहारिक और समग्र था. यह परित्याग की दृष्टि नहीं बल्कि सक्रिय भागीदारी थी. तपस्वियों और भोगवादियों के बीच, गुरुनानक देवजी ने बीच का मार्ग अथवा गृहस्थाश्रम या एक गृहस्थ के जीवन को चुना. यह एक आदर्श मार्ग था, क्योंकि इसमें हर व्यक्ति को सामाजिक, भौतिक व आध्यात्मिक विकास का अवसर मिलता था.
कीरत करो, नाम जपो और वंद चखो (प्रार्थना, काम और सहभाग) वह आदर्श वाक्य था जिसे उन्होंने अपने शिष्यों के सामने रखा था. उनकी सीख थी कि ईमानदारीपूर्वक परिश्रम से कमाएं और जरूरतमंदों के साथ अपनी कमाई साझा करें.
उन्होंने सुझाया कि सबको अपनी समृद्धि को जरूरतमंदों के साथ साझा करना चाहिए. उन्होंने ‘दसवंध’ या जरूरतमंद व्यक्तियों के बीच कमाई के दसवें हिस्से को दान करने की अवधारणा की वकालत की. वे एक असाधारण संत थे, जिन्होंने विभिन्न धर्मो और आध्यात्मिक परंपराओं के सर्वश्रेष्ठ तत्वों का समन्वय किया.
मुङो खुशी है कि पंजाब में डेरा बाबा नानक साहिब और पाकिस्तान के करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब को जोड़ने वाला गलियारा बनाया गया है, जिससे श्रद्धालु उस तीर्थस्थल का दर्शन कर सकेंगे जहां गुरुनानक देवजी ने अपने जीवन के 18 वर्ष बिताए थे.
गुरुनानकजी की दृष्टि कालातीत है और उसकी आज भी उतनी ही प्रासंगिकता है जितनी पांच शताब्दी पहले थी. यदि हम इन संदेशों को अपने दैनंदिन जीवन में उतारें और अपनी सोच तथा कार्यो को नया रूप दें तो हम निश्चित रूप से शांति और सतत विकास की एक नई दुनिया का निर्माण कर सकते हैं